Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 91
________________ ( एव ) संजम लीये गुणखाण तो ॥ ८ ॥ संजम पाली निमलुं ॥ सा० ॥ पोहोता ब्रह्मसुरलोक तो ॥ तिहांथी चवीने उपज्या ॥ सा० ॥ पाम्या नरजव थोक तो ॥ ए ॥ तिहां पण दीक्षा लेइ करी ॥ सा० ॥ पामशे केवल ना तो । अनुकर में मुगतें गया ॥ सा० ॥ तेहनुं करवुं वखा तो ॥ १० ॥ गुणवंतना गुण गाइयें ॥ सा० ॥ जाखे श्री जगवंत तो । निर्मल थाये आतमा ॥ सा० ॥ पामीयें सुख अनंत तो ॥ ११ ॥ श्री मंगलकलश सूरी तणो ॥ सा० ॥ रास रच्यो सुविलास तो ॥ जणे गणे जे सांजले ॥ सा० ॥ जेम होय परम विलास तो ॥ १२ ॥ रास करंतां एहनो ॥ सा० ॥ मुज मन यति रंगरोल तो ॥ कहेतां रंग मुज उपन्यो ॥ सा० ॥ जेम मजीवनो चोल तो ॥ १३ ॥ सुपन मांहि गज उपरें ॥ सा० ॥ बेठा हुइ रुद्धि राज्य तो ॥ तेम ए रास करतां थकां ॥ सा० ॥ सिद्धि चढे सवि काज तो ॥ १४ ॥ श्री विमलबोध सूरीश्वरें ॥ सा०॥ दीधो ए उपदेश तो ॥ शांतिनाथ पहेले नवें ॥ सा० ॥ श्रीखेण नामे नरेश तो ॥ १५ ॥ ते आागल मन रंगशु ॥ सा० ॥ संबंध कह्यो सुरसाल तो ॥ शांतिनाथ पढ़ेले नवें ॥ सा० ॥ मंगलकलश भूपाल तो ॥ १६ ॥ जैन < Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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