Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ కలలకు అలంటి श्री मंगलकलश कुमारनो रास. oe पुण्यफल महात्म्य मय. ए विवेकी पुरुष- चरित्र समस्त सम्यकदृष्टि सजनोने वांचवालायक जाणीने, श्रावक शा० नीमसिंद माणके, __मुंबईमां निर्णयसागर नामक मुत्रालयमां बाळकृष्ण रामचं घाणेकर पासे मुजित कराव्यु ले. ఉలుకు తలకు 05.0 संवत १९६६-सन १९०९ Jain Education, international For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ॥ ॥श्री मंगलकलश रासः प्रारज्यते ॥ ॥ दोहा॥ ॥ प्रणमुं सरसति स्वामिनी। कविजन केरी माय ॥ वीणा पुस्तक धारिणी। कवियणने वरदाय ॥१॥ काश्मीरें जग जाणीयें। मातार्नु अहि गण ॥ बीजु मरुधर देशमा। अकारीयें मंमाण ॥२॥ मनशुप्रणमी करी। मागुं वयण विलास ॥ जेम मुजने सुख ऊपजे। पूगे मननी श्राश ॥३॥ मंगलकलश कुमारनो । रास रचुमन रंग॥देज्यो वयण शोहामणुं। मुक मन बहु उबरंग॥४॥ वली प्रणमुं निज गुरु सदा जेहनो बहु उपकार ॥ ते गुरु उपकारी सदा । जेम जगमां जलधार ॥५॥ उत्तमना गुण वरणवे। श्राखंडल महाराज॥देवसनामांहे बेसिनें। एम नाखे जिनराज॥६॥ उत्तमना गुण बोलीयें। कीजें तीरथ यात्र॥ दान सुपात्रे दीजीयें। निर्मल होवे गात्र ॥७॥ श्री जिन धर्म पसाउलें । पामी बहुली झझि॥सुख जोगवी संसारनां। अविचल पाम सिहि ॥॥ तेणे कारण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) नविय तुमें । सुजो सरस संबंध ॥ खालस अंगें परहरी । मूकी घरना बंध ॥ ए ॥ जयतां सांजलतां थकां । करतां बहु वखाण ॥ दिन दिन दोलत संपजे । जयलछी कल्याण ॥ १० ॥ कोण नयरी कोण देशमां । कीधां उत्तम काम || सावधान यह सांगलो | जेम पामो सुखधाम ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पहेली | राग काफी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥ जंबुद्धीपमां जाणी यें रे लाल । दक्षिण जरत - जिराम ॥ सुखकारी रे ॥ तिहां मालव देश वखाणी यें रे लाल । डुबलानो आधार ॥ सुखकारी रे ॥ १ ॥ गिरुवो मोहन मालवो रे लाल । सवि देशनो राजान ॥ सु०॥ नदीय नवा जिहां घणां रे लाल । उपजे बहुलां धान ॥ ॥ ० ॥ २ ॥ गिरुवो० ॥ जिहां जिनवरनां सुंदरु रे लाल । मोहोटां सोहे प्रासाद ॥ सु०॥ कलश ध्वजा करी शोजता रे लाल । उंचा गगनशुं मांडे वाद ॥ ॥ सु || ३ || गिरु० ॥ धर्मशाला घणी देशमां रे लाल । सुख पामे पगार ॥ सु० ॥ पुण्यवंत श्रावक जिहां घणा रे लाल | सुधा समकित धार ॥ सुख० ॥ ५ ॥ ॥ गि० ॥ जार ढार तरुवर तणी रे लाल । फूली रही वनराय ॥ सु०॥ नित्य वरसालो जाणीयें रे लाल । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरस घणी अंबराय ॥ सु० ॥५॥ गि॥ नगरीजजेणी जाणीयें लाल । अमरावती अवतार ॥ सुख सुखिया लोक तिहां वसे रे लाल । चोराशी बाजार ॥ ॥ सु० ॥ ६॥ गि०॥ राज्य करे तिहां राजीयो रे लाल । वैरिसिंह नूपाल ॥ सु॥ शूरवीर ने साहसी रे लाल । जीवदया प्रतिपाल ॥ सु०॥७॥ गि० ॥ सोमचंसानिध नारजा रे लाल । राणी गुणमणि खाण ॥सु०॥ राजाना मनमां वसी रे लाल । बोले मधुरी वाण ॥सुणाागिण॥ व्यवहारी मांहे वखाणीयरे लाल । धनदत्त शाह उदार ॥सु॥ जैन धर्मनी वासना रे लाल । नगर तणो शणगार ॥सुणाए॥ गि०॥ सत्यनामा नामें नामिनी रे लाल।शीलालंकृत देह॥ सुतस कूखें डोरु न उपजे रे लाल । मोहोटो अवगुण एह ॥ सु० ॥ १० ॥ गि०॥ पुण्यथ की ते पामशे रे लाल । अति उत्तम संतान ॥सु॥ पुण्यथी सवि सुख संपजे रे लाल । पुण्य नवे निधान ।सु ॥११॥गिण॥ देव गुरुनी बहु रागिणी रे लाल । कोमलजाति स्वन्नाव ॥सु॥ सावधान थ साचवे रेलाल। दान शीयल तप नाव ॥ सु० ॥ १२ ॥ गि०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ॥ दोहा॥ ॥ एक दिन धनदत्त चिंतवे । मुज घरे बहुली इति ॥ मोहोटां मंदिर मालीयां । पण नहीं बालक सिकि॥१॥ गलहबो देश करी। बेगे धनदत्त शाह।ततक्षण सत्यनामा जणे । ए शुं कुःख तुम नाह ॥२॥ के चिंता व्यापारनी। के रुठ्यो माहाराज ॥ वाहण नाव्यां पाधरां । के वली बीजुं काज ॥३॥ साचुं कहेजो साहिबा । फुःखनुं कारण एह ॥कडं बुं दासी तुमतणी । मुज उपर धरी नेह ॥४॥ शेठ नणे सुणो सुंदरी । फुःखनुं कारण तेह ॥ बालक नहिं को तुम तणे । घरनुं मंमन जेह ॥५॥ शेगणी वलतुं नणे । सुण तुं जीवनप्राण ॥ बालक चिं. ता म म करो। तमें बो चतुर सुजाण ॥६॥ ॥ ढाल बीजी ॥राग केदारो॥ ॥ पुण्य करो तमें पीयुजी। पुएयथी फल श्रीकार रे । इह नव परनवें सुख लहे । धरमथी जय जयकाररे ॥१॥ पुण्य करो तमें पियुजी ॥पु॥ देव गुरुनी सेवा करो । यो तमें पंचविध दान रे ॥ जेहश्री जग जस विस्तरे । दान ते मुक्ति निदान रे॥२॥ ॥ पु०॥ दानशाला मंमावियें । पूजीयें श्री आदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाथ रे । पुस्तक नवु रे लखावियें । साहामी वत्सल प्राणनाथ रे ॥३॥पु॥ पौषधशाला मंमावियें। धरीयें वली धर्मनुं ध्यान रे ॥ एम करतां पियु आपणे। उपजे उत्तम संतान रे ॥४॥ पु० ॥ श्री शत्रुजय गिरिनारनी। कीजियें जात्रा खास रे॥ सूरजकुंममां नाहियें। जेम फले वंबित आश रे ॥॥पु० ॥ साधुने नित्य पडिलानियें। कीजियें परउपकार रे॥ लखमीनो लाहो लीजियें । सफल करो अवतार रे ॥६॥ पु० ॥ करो पञ्चकाण नित्य पोरसी । सांफ्रें करो विहार रे ॥ जगवंतनी पूजा करो। पडिकमणां बे वार रे ॥७॥ पुण् ॥ धर्म सुरतरु सम जाणियें। धर्म चिंतामणि जाण रे॥ अरिहंत समवसरणे करे । धर्मनां सबल वखाण रे ॥७॥ पुणानारी वयण मनमां धरी। धर्मे हुई उजमाल रे ॥ मालीने फूलने कारणें । धन बहु दे ततकाल रे ॥ए॥पु॥ धनदत्तशाह मन थिर करी । धर्म करे दिन रात रे ॥ श्रादरी वस्तु न मूकियें । उत्तम लक्षण जात रे ॥ १० ॥ पु० ॥ श्री जिनधर्म प्रचावथी। बेनी ते शासन देवी रे ॥ तस तणी कुखें उपजावियुं। पुत्ररयण ततखेव रे ॥ ११॥ पु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दोहा ॥ ॥ सत्यनामा एकण समे। सूती सेज मोकार ॥ नीरजस्यो रूपातणो। कलश दोगे तेणि वार॥१॥अनुकरमें सुत जनमीयो। जिमामी परिवार ॥ नाम दीधुं रतीयामणुं। मंगलकलश कुमार ॥२॥ आठ वरपनो ते हु।तव मूक्यो निशाल ॥अति रूपें रतीयामणो। कोमल नयन विशाल ॥३॥ पुण्यथी बहु सुख उपन्युं । चिंते धनदत्त शाह ॥वली विशेषे आदरे । धरम करम उत्साह ॥४॥ फूल लेवाने कारणे । जाजं वामी मांहिं॥सज थश्ने नीसस्यो, तव वलग्यो बालक बांहि ॥५॥ पिताजी तमें दिन प्रतें। सिधावो शे काज॥ वामी मांहे फूलने। जिनवर पूजा काज ॥६॥ मंगल साथें नीसस्यो।जाणे देव कुमार ॥ बहु बाजरणे अलंकस्यो । अदजुत रूप अपार ॥७॥ माली देखी चिंतवे । बालक रूप अपार ॥कर जोडी कहे शेग्ने । कोण ए राजकुमार ॥७॥ शेठ जणे ए माहरो। बेटो कुल मंडाण ॥ शुन लक्षणे करी जाणियें । होशे चतुर सुजाण ॥ ए॥ माली वाडीमांहेथी। फल थाप्यां श्रीकार ॥ मंगल मनमां हरखीयो। पहेरी चंपक हार ॥१॥ जिनवरनी पूजा रची। मांडी मोहोटो था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ल ॥ जमवा बेग बेह जणा। बाप बेटो सुरसाल ॥ ॥ ११॥ हवे मंगलकलश कुमार ते। नित्य नित्य वामी मांहि ॥ फूल लावे अति फूटरां । मन धरतो उत्साहि ॥ १२ ॥ एम धरम करम करतां थकां । दिन दिन अधिको वान ॥ आगल अचरज उपजे । ते सुणज्यो सावधान ॥ १३ ॥ आगल अति रलीयामणी । वात घणी रंग रोल ॥ सांजलतां चतुरा मने। उपजे अधिक कबोल ॥ १४ ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥जरतदेत्र तिहां चंपापुरी। धन कण कंचन सुनरेंजरी॥राजा तिहां सुरसुंदर नाम । राज्य करेजाणे श्रीराम ॥१॥ गुणें करीने अति अनिराम । राणी गुणावली जेहनुं नाम ॥ स्वप्नमांहि ते निज उत्संग। कल्पवेलि दीठी मन रंग॥॥देखीने जागी ततकाल। तिहां श्रावी जे ज्यांहि नूपाल। राजाने ते वाहाली घणुं । वयण कहे ते रलीयामणुं ॥३॥ स्वामी सुपन तणो सुविचार । मुजने कहेजो प्राण आधार ॥ राजा कहे सुपन परमाण । पुत्री होशे गुणनी खाण ॥४॥ नव मासे ते पुत्री जणी। आशा पूगी माता तणी॥ दिवस बारमे अति अनिराम । त्रैलोक्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ज ) I सुंदरी दीधुं नाम || || शोल वरसनी कुंवरी हवि । चोसठ कला जाणे जिनवी ॥ के जाएं पाताल कुमारि। विद्याधरी अमरी अवतार ॥६॥ घरने आंगणे करती के लि। जाणे साची मोहन वेलि ॥ सवी राणीने वाहाली तेह | ते उपर सहुनो बहु नेह ||७|| राजायें इसी दीवी जाम । वरचिंता मन पेठी ताम ॥ ए सरखो वर जोतां मले । तो मनवंबित सघलां फले ॥ ८ ॥ तव राजा अंतेरमांहि । पाउ धारया मन घरी उत्साहि ॥ सघली राणी नेली करी । पूढे राजा मन हित धरी ॥ ए ॥ त्रिलोक्यसुंदरी कुमरी जेह | तरुणपणुं पामी गुण गेह || ते माटे करवो वीवाद | खरची धनने लीजें बाद ॥ १० ॥ रुडं जाणी करज्यो काज | अमने शुं पूढो माहाराज ॥ सुरसुंदर राजा एम जणे । बेटीनुं कारण तुम तो ॥ ११ ॥ राणी सघली जोमी हाथ। कहे सांजलो तुमें प्राणनाथ ॥ डूर म देज्यो एहने सही । श्रमजीवितथी ए वालही ||१२|| महाराजानो बडो प्रधान । तेहनो बेटो रूप निधान ॥ तेहने जो ए दीकरी । जेम नित्य नयणे निरखुं खरी ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सुबुद्धिने तेडी करी । एम बोले राजान ॥ तुम सुत For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने मुज नंदिनी । दी, कन्यादान ॥१॥मंत्री कहे तुमें शुकडं। ए अणजुगतुं काज॥देज्यो मोहोटा रायने। सुणो तुमें महाराज ॥२॥ राजा कहे सुण मंत्रवी। माहारं वयण प्रमाण ॥ करवं सही तमने घटे । म करो ताणो ताण ॥ ३ ॥ मंत्री मनमांहे चिंतवे । ए केम थाशे काज ॥ एकण दिशे तटिनी वही। एक दिशे मृगराज ॥४॥ मुज नंदन डे कोढियो । सटित पटित जस देह ॥ रूपें रंजा ऊर्वशी । नृप पुत्री गुण गेह ॥ ५॥ एहने ए परणावतां । केम रहेशे मुज लाज॥कांश्क मतिबुद्धि केलवी । बुझें करशुंकाज॥ ॥६॥ श्राराधुं कुल देवता । साधु ए शुज काम ॥ जेम तेम करीने माहरी । रुमी राखं माम ॥७॥ ॥ढाल चोथी ॥ कुंबखमानी देशी॥ ॥एमचिंतवी निज मंदिरें रे।श्राव्यो सुबुझि प्रधान॥सोजागी सांजलो। श्राराधी कुल देवता रे।बेगे एकण ध्यान ॥सो॥१॥ अहमनुं तप आदरी रे। जाप जपे सुविचार ॥ सो० ॥ कृमागरु उखेवीयें रे। दीप धूप घृत धार ॥ सो० ॥२॥ बीजे दिन ते देवता रे । भावी रहि तस पास ॥ सो॥कहो किण कारणे मुज समरी रे ॥ बोली मनने उदास ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ( १० ) सो० ॥ ३ ॥ मंत्रीश्वर कहे मातजी रे । तुमें जाणो सवि वात ॥ सो० ॥ रोग रहित बेटो करो रे । देही आणो धात | सो० ॥ ४ ॥ चौद पबेडी दिन प्रतें रे । जीनी रहे दिन रात ॥ सो० ॥ रक्तपित्त व्याप्यो घणुं रे । रोगनी विषमी जात ॥ सो० ॥ ५ ॥ पर जव एणे जीवडे रे । कीधां कर्म अघोर ॥ सो० ॥ कर्म न बूटे देवता रे । जीवने कर्मनुं जोर ॥ सो० ॥ ॥ ६ ॥ कर जोडी करूं विनति रे । लली लली लागुं पाय ॥ सो० ॥ लगन लीधुं दिन सातमे रे । तेहनो करवो उपाय || सो० ॥ ७ ॥ रुमो ने रलीयामणो रे । जातिवंत गुणवंत || सो० ॥ एहवो वर तुमें आणज्यो रे । जेम दुर्जन न हसंत ॥ सो० ॥ ८ ॥ राजकन्या परपावीने रे । पशुं मंदिरमांहि ॥ सो० ॥ पढें कल विकल करी काढशुं रे । एहने साहि बांहि || सोनाणा वलतुं कुलदेवी वदे रे । सुण तुं सुबुद्धि प्रधान ॥ सो० ॥ चंपापुर पूरव दिशें रे । चंपकनामें उद्या - न ॥ सो० ॥ १० ॥ घोमा शीखे राजला रे । तेह तपा रखवाल || सो० ॥ ते पासें तुमें जाणज्यो रे । नानमीयो सुकुमाल || सो० ॥ ११ ॥ टाढें थर हर धुजता रे । सुंदर कोमल काय ॥ सो० ॥ मंदिरमां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) हे लावज्या रे। ए कह्यो तुमने उपाय ॥ सो० ॥१२॥ एम कहीने गोत्रज वली रे। हरख्यो सुबुकि प्रधान ॥ सो ॥ विवाहनां कारण नणी रे।मंडप रचे असमान ॥ सो ॥१३॥ घोडाना रखवालने रे । जे डे विश्वावीश ॥सो॥ तेहने तेमीने कहे रे। शुज वयणें मंत्रीश ॥सो० ॥ १४॥ तुम पासें एक श्रावशे रे। बालक रूपनिधान ॥सो॥ते मुज मंदिर लावज्यो रे। एम बोले परधान ॥ सो० ॥ १५ ॥ मंत्रीश्वरनी गोबजा रे । रुडं रचीने विमान॥सो॥ वर जोवा आवी तिहां रे। उलेणी उद्यान ॥सो॥ १६ ॥ जिहां वामी राजातणी रे। फूल घणां महकाय ॥ सो॥ ते परिमल लेवा नणी रे। बेठी रुमे गय ॥ सो ॥१७॥ तेहने को देखे नहीं रे। ते देखे सब लोय ॥सो॥ तिहां आवे नरवर घणारे।जे जोगीसर होय ॥सो॥ ॥१॥ धमी बे घमी बेसी रही रे । दीग जनना बंद ॥ सो० ॥ एहवो को निरख्यो नहीं रे।जे हुए नयनानंद ॥ सो ॥ १५ ॥ मंगल आव्यो मलपतो रे। जाणे देव कुमार ॥सो॥ ततहण हरखी देवता रे । वर पाम्यो निरधार ॥सो॥२०॥ ए कन्याने योग्यता रे । ए वर रूपनिधान ॥ सो॥ जोडा वेमो सरिखो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) मले रे । जगमा वाधे वान ॥ सो॥ १॥ फूल लेश पाडगे फिस्यो रे। नगर तणी अंतराल ॥ सो० ॥ तव बोली कुलदेवता रे।एणि परें वयण विशाल सो॥ ॥॥ फूल नलां जस हाथमां रे। जे जे चतुर सुजाण ॥ सो॥ ते राजकन्या परणशे रे। नाडे सहि करी जाण ॥ सो० ॥२३॥ ॥दोहा॥ ॥ एह वयण श्रवणे सुएयुं । पण नव दीतुं कोय ॥ मंगल मनमां चिंतवे । ए केहेनी वाचा होय ॥१॥ अरहुँ परहुँ जोतो थको।मनमां घणो संज्रांत ॥मंदिर जश् निज तातने। कहेशुं एह वृत्तांत ॥॥ जणवा केरे कारणे । वीसरी गश् सा वात॥ बीजे दिवसें देवता। बोले एहीज वात ॥३॥चकित थ चित्त चिं. तवे । मंगल जोई जाम ॥वादल वाली थइ घणुं । घोर घटा घन ताम ॥४॥ वाजली ते जोरें चढी। अति उंची असमान ॥ कुमरने लेश नीसरी।जाणे देव विमान ॥५॥ चंपापुरने परिसरें। ते श्राएयो सुकुमाल ॥ मूकीने ते वही गई। ततदण थक्ष विसराल ॥६॥ नूख तृषा लागी घणुं । मंगलने तेणि वार ॥ जमतां नमतां पेखीयुं । सरोवर वनह मकार ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥ढाल पांचमी॥ गोयम घमिय म करे प्रमाद॥ए देशी॥ ॥सरोवर पालें अति घणाजी। फल फूख्या सहकार ॥ सजल सरोवर देखिनेजी। पाम्यो हर्ष अपार ॥॥सुगुणि नर पुण्य करो सुखकार ॥ए श्रांकणी॥ पुण्यें सवि सुख उपजेजी जेम जलधरथी जल सार ॥सु॥२॥ नीर गलीने वावगुं जी। एश्रावक श्राचार॥कष्ट पडे धीरज धरेजी। धन्य तेहनो अवतार ॥सु०॥३॥ बेसीने फल वावस्यांजी। पाकी आंबा साख ॥ करणां दाडिमनी कलीजी। वली कसमसिया प्राख ॥ सु० ॥४॥ उजेणी नगरी किहांजी। किहां ते मालव देश॥ किहां जाऊं कोणने कहं जी। ए दीसे परदेश ॥ सु॥५॥ एम करतां रवि साथम्यो जी। चंदो करे सुप्रकाश ॥वमतरुवर उपर चढ्यो जी। जीववानी बहु आश ॥ सु० ॥ ६॥ ए उपर नही उपजेजी।वाघ सिंहनी रेनीति॥ए उपर रजनीरहुंजी। दैव थयो विपरीत ॥ सु॥॥ वमशाखा उपर चढ्यो जी। चिहुं दिशें निरखे रे तेह ॥ दीगे उत्तर दिशि जणी जी। विश्वानर गुणगेह ॥सु०॥७॥ वमवमतां रजनी गजी। परगटीयो परजात । वड तरुवरथी उतस्यो जी। ते ने शुरू सुजात ॥सुगाण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) उत्तर दिशि जणी श्रावतांजी। अग्नि तणे अनुसार ॥ चंपापुरी देखी करी जी । हरख्यो हैया मकार ॥सु॥१॥ घोडा तापे राउला जी। तेह तणा रखवाल॥पासें बेठो तापवा जी॥धूजंतोते बाल ॥सु॥१९॥ ॥दोहा॥ ॥हती नलामण जेहने । ते हरख्यो मनमा हि॥ को न देखे तेहने।तेम पाण्यो मंदिरमांहि ॥१॥ अवसर जाणि आणीयो । मंत्रीसरनी दृष्टि॥ उठीने उनो थयो, जलें पधारया श्रेष्ठ ॥२॥नूमि मंदिरमा तेमीने ।श्रति घण आदर कीध ॥ नवरावीने तेहने । मी जोजन दीध ॥३॥ गनो राख्यो तेहने। कोश्न जाणे नेद। पासें जश्ने एम कहे। मनमा म आणीश खेद॥४॥ एक दिन पूजे तातजी। बानो राख्यो केम ॥ कुल नवि जाणो मारुं । मुज उपर केम प्रेम ॥५॥ एक दिन पूजे मंत्रीने । कवण पुरि कोण देश ॥ कोण राजा कोण मंत्रवी । ए नांखो सुविशेष ॥६॥ ॥ ढाल बही॥ नणदलनी देशी ॥ तथा ॥ एणे अव सरें चंपक माला ॥ ए देशी॥ ॥अमीय समाणे वयणमे।बोले सुबुकि प्रधान हो ॥मंगल ॥वात सुणो एक माही। अंग देश चंपापुरी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) सुरसुंदर राजान हो।मंगल॥१॥राजछि अति तेहने,सुणतां अचरिज थाय हो।मासुबुद्धि नामें प्रधान ढुं। राजाने सुखदाय हो ।म॥२॥ नृपनी राणी गुणावली । रूपतणो जंडार हो ॥मं॥ बेटी त्रैलोक्यसुंदरी । रंजतणो अवतार हो ॥ मं॥३॥ एक दिन माहरी नारया। में दीठी दिलगीर हो ॥मं॥ः खनुं कारण पूबतां । नयणे करे बहु नीर हो।मंग ॥४॥ गदगद सादेंजी बोलती। तुम घर नहिं संतान हो॥मंणा बीजुं फुःख मुजने नहिं । ए उःख असमान हो ॥मं॥५॥ आराधी कुलदेवता। कीधा त्रण उपवास हो ॥ मं० ॥ प्रगट थर कुलदेवता ॥ बोली वयण विलास हो ॥ मंग॥ ६॥ समरण कीधुंजी माहरु । कोण कारण परधान हो ॥मं॥बोख्यो हुँ कर जोडीने।यो मुज पुत्रनुं दान हो ॥॥॥ वलतुं ते देवी जणे, नही तुज जाग्यमां पुत्र हो ॥ मंग कुल दीपक कुल मंगणो । जे राखे घरसूत्र हो ।मंग ॥७॥ एक लख्यो ने ताहरे । कोढीने कुरूप हो ॥ म॥ रक्तपित्त रोगे जस्यो । जाणे नूत स्वरूप हो ॥ मं० ॥ ए ॥ पोतानी महिला प्रतें । वात कही चित्त लाय हो । मं॥तेह कहे एहवो जलो । वांजणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाल न खमाय हो ॥ मं०॥ १० ॥ वाचा देश गइ देवता । पेट रह्यं उधान हो ॥॥ पूरे मासे जनमीयो, कोढ व्या पित संतान हो ॥ मं० ॥११॥ घर घर हुां वधामणां । वाग्या जांगी ढोल हो ॥ मंग ॥राजा प्रजायें जाणीयु। पुत्र हु रंगरोल हो ॥ मं० ॥१२॥ राजसनामांहे मूरखें । में कही वात विचार हो ॥ मं० ॥ मुज नंदन अति फूटरो । जाणे देव कुमार हो ॥ मं० ॥ १३ ॥ बानो राख्यो में मंदिरे। किणे नवि दीगे एह हो ॥ मंग॥ बाहेर वात सहु करे। मंत्रीसुत गुणगेह हो ॥मंग॥१४॥ हठ करी नृप सुरसुंदरे । निज पुत्री गुणवंत हो ॥मा दीधी मुज नंदन प्रतें । जे जे बहु रोगवंत हो ॥मं॥१५॥ वली धाराधी गोत्रजा ।जापें आवी तेह हो ॥मं॥ तेणिये तुजने श्राणियो।मुज उपर धरी नेह हो॥मं० ॥१६॥ ए कन्या परणी करी। मुज सुतने द्यो सार हो ॥ मं॥ पाय पहुं विनति करुं। ए करो तुमें उपकार हो॥ मंग॥ १७॥ मंगलकुंन वलतुं वदे । ए नहिं उत्तम काम हो ।मंग॥परणीने केम दीजीयें। कन्या गुणनुं धाम हो॥मं०॥ १७ ॥ रोष करीने मंत्रवी, हाथे ग्रही तरवार हो ॥मंग॥ नहीं परणे तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मारशुं । कोण करशे तुज सार हो ॥॥१॥ उजेणी पूरे रही। किहां माहारो परिवार हो।मासिंह सबल पण सांकच्यो। किश्यो करे उपचार हो ॥ मं० ॥२०॥ नवितव्यता योगें करी। हुं आव्यो एण देश हो ॥मायाकाशवाणी सांजली। तेणें करी सुविशेष हो।मंग ॥१॥ मंगल कहे मंत्री सुणो । ए नहिं रुमानुं काम हो ॥ मं ॥ पण तुम प्रतें चाले नहिं । तुमने कीजें प्रणाम हो ॥ मं० ॥ २२ ॥ कर मेलावण राजवी । जे मुजने ये दान हो ॥ मंग॥ घोमा हा. थी रथने नेजा। बीजी वली वस्तुवान हो।मं०॥२३॥ ए तुमें मुजने श्रापजो।तो तुम करशुं काज हो॥॥ उजायणीने मारगें। ते तुमें मूकजो राज हो ।मंगाश्॥ तब मंत्री हरखें करी।कीधुं वयण प्रमाण हो।मावचमांदे घालीगोत्रजाते जे चतुर सुजाण हो।मं॥५॥ ॥दोहा॥ ॥ मंगलकलशे हा जणी। करवा उत्तम काज ॥ मनमां हरख्यो मंत्रवी । मुज बेगे माहाराज ॥१॥ उंचे शब्द हुतिसें । वली वाग्यां नीशाण ॥ गीत गाउ सोहासणी। विवाहनां मंडाण ॥२॥धे | नोबत गमगमी। वली वागी किरतालढोल ददामा दडदडी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) मेरी ताल कंसाल ॥३॥ सघलां वाजां वाजियां। हा जणी जेणी वार ॥ मंगल वाणी उबली। हरख्यो सवि परिवार ॥॥ तंबू डेरा ताणिया,अति उंचा आकाश। लाल कथीपा चंथा। मोदोटा मंगप खास ॥५॥ बांध्या मोती फूमणां । गोखतणी वली श्रोल ॥ सखर समारी नूमिका । चिहुं दिश पोढी पोल ॥६॥ फूल घणां पथरावियां । मांड्या सोवन पाट ॥ वरराजा शहां बेसशे । मलशे माणस थाट ॥॥ चिहुँ दिशि गाये गोरमी । नाचे नवला पात्र ॥ सहु जोवाने त्यां मन्युं । करवा वरनी जात्र ॥ ॥ राजायें पण मांडियुं । विवाहनुं मंमाण ॥मच्या मोहोटा महिपति। माणस राणो राण ॥णा घर घर गुडी उबला । बांधी तोरण माल ॥ सहेर सविशणगारियुं। दीसे काक ऊमाल ॥ १० ॥ आडंबर सबलो करी। मांड्यो मोटो जंग॥(हवे) वर जोवाने कारणे । सहुने मन उबरंग ॥ ११॥ नवरावी निज हाथशुं। पहेरावी शणगार ॥ हवे पधरावी कुंवरने । साथै सहु परिवार ॥ १५ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ मधुकरनी देशी ॥ ॥ ललनां रे वात सुणी मन हरखीयो । सुरसुंदर राजान॥ल॥वर जोवाने कारणे । मोकल्या निज प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) रधान ॥॥ला मस्तक मुकुट हीरे जड्यो। कंठे ए. कावल हार लगाकरणानूषण फलहले । बाजू । मनोहार ॥२॥ल ॥ हाथे सोवर्ण सांकलां । मणिमय जडित जडाव ॥ ल० ॥ अंगें वाघो विराजतो। केशरमें गरकाव ॥३॥ लगानीली पटोली पहेरणें । पहेरी सवि शणगार ॥लाचरणे नेपुर रणकणे । घूघरना घमकार ॥४॥लण॥ कुमरने वेगें वधावीयो। मोतीडे जरी थाल लगागोरीगावे सोहले । नानडली सुकुमाल ॥५॥ ल० ॥ नर नारी मोही रह्यो । देखा कुंवरनु नूर ॥ला सामु जोशको नाव शके । जाणे ऊग्यो सूर ॥६॥ला साजन सवि जन नोतरी । जमाडी जरपूर ॥ ल० ॥ फोफल पान दिये घणां।वाजे मंगल तूर ॥जालाघोमा हाथीसज करी । जुगतें चलावे जान लारुमी परें धन वावरे। मन हरखे परधान ॥ ॥ल॥ श्रागल कीधी गजघटा । सांबेलां नहीं पार ॥ ल० ॥ पोतें वरघोडे चढयो । जाणे इंजकुमार ॥ ए॥ल ॥ जान जोवाने तिहां मख्यां । नरनारीनां वृंद ॥ल०॥ देखी रूप कुमारनुं । मन धरता आनंद ॥ १० ॥ल॥धन्य ते त्रैलोक्यसुंदरी । धन्य एहनो अवतार ॥ला पूरवने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) पुण्यें करी। पाम्यो ए जरतार ॥११॥ल॥जान थावीने तिहां रही, वाजंते निशान ॥लण॥ कुंवर स्वरूप देखी करी, राजा थयो महराण ॥१॥ लम् ॥ राजा मनमांहे चिंतवे, मल्यो जमाश् चंग ॥ ल० ॥ सोना केरी मुजमी। उपर जमीयुं नंग ॥१३॥ल॥हरखी त्रैलोक्यसुंदरी । राणी मन उत्साह ॥ ल० ॥ गातां वातां हरखशुं । आएयो माहिरामांहि ॥१४॥ल॥ लगन तणी वेला हुई। जोषी मेलावे हाथ ॥ल॥ मंगलकलशें मोजमां । काल्यो जमणो हाथ ॥ १५ ॥ लण ॥ दण पासुं मेले नही। सुबुधि नाम प्रधान ॥ ल०॥ रखे ए कोश् आग, वात करे अज्ञान ॥ ॥ १६॥ ल॥अदर लखीया हाथमां। सुंदरीयें तेणी वार ॥ ल०॥ मुज पिताकने मागजो, पंच तरंगम सार ॥ १७ ॥ल०॥ मंगल लखे उतावलो। कुंवरीना करमांहि ॥ ल ॥ नाडे परणुं हुं सही, ते धरज्यो मनमांहि ॥ १७ ॥ ल० ॥ एह स्वरूप जाणी करी। कुंवरी मन दिलगीर ॥ लम् ॥ लाजें बोली नवि शके । नयणे नाखे नीर ॥ १५॥ लम् ॥वाजां वाजे अति घणां। गाये गोरी गीत॥ल॥दानजदीजें अति घणां। ए विवाहनी रीत॥२०॥ल॥कर मेहलाव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ण कुंमरने । दीधा धन जंडार लमंगल कर मेले नहिं । मागे पंच तोखार॥२॥ लगा ते पण लीधा हरखशुं। दीधां आदर मान ॥लापरणीने उतावली । पानी फरी ते जान ॥ २२ ॥ ल० ॥ मंगल साथे पदमिणी । दासीने परिवार लागातां वातां श्रावीयां । प्रधानने दरबार ॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ पंच तुरंगम जल पंथा।बीजा अर्थ नंमार॥न. जायणीने मारगें । ते मूक्या तेणि वार॥१॥ मंदिर श्राव्यां इकडां। (जव) पोलें कियो प्रवेश ॥ए नर श्हांथी काढियें । तो जाये परदेश ॥२॥ कुंवरी कर मेहले नही।चलचित्त जाणी जाम ॥ देह चिंता मुज उपनी। मंगल बोले ताम ॥३॥ रथथकी ते उतस्यो । साथै कुंवरी जाय ॥ पाणी नरी जारी ग्रही। मनमां चिंता थाय॥४॥क्षण बेसीने उठीयो ।आवे कुंवरी पास॥ ततक्षण श्रावी परवरी। ससरानी सवि दास ॥५॥ कुंवरी मनें धीरज धरी । पूजे प्राणाधार ॥ नूख लागी बे तुम तणे । में जाण्यं निरधार ॥६॥ सिंह केसरा लामुआ ।सुंदरीयें ततकाल ॥ आणी बाप्या प्रेमशुं। अति मीग सुरसाल ॥७॥ वावरतां ते लामुत्रा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) मंगल बोल्यो धीर ॥ उजयणी नगरी तणुं । जो होय क्षिप्रानीर ॥ ७ ॥ तो करे ए लामुथा। एह बोले जाम॥ततक्षण नर परधानना।श्राव्या तेणें गम ॥॥ वयण सुणीने सुंदरी। मनशुं करे विचार ॥ उजायणी मांहि जाणियें। कांहिक सगपण सार ॥ १० ॥ देह चिंता मुज उपनी । वली उठ्यो जेणि वार ॥ ते पण साथै उत्तरी।दासीने परिवार ॥ ११ ॥ कहे मंगल सुजो सुंदरी। कारी आपो हाथ॥लाज घणी मुज उपजे । जो तुमें श्रावो साथ ॥ १२ ॥ चार घमी रजनी ग । तव ते नाशी जाय ॥ जिहां घोडा रथ आपणा। तिहां ते नेला थाय ॥ १३ ॥ ॥ढाल अाठमीकोयलो परवत धूंधलोरेलालाए देशी॥ उडेरे प्रयाणे त्यांहां थकी रे लाल। मन धरतो उबाहरे॥ सुगुण नर।घोडा रथ लेश्करीरे लाला आव्योउजायणी मांहि रे॥सुमंगलकलश घरावीयो रेलाल । गुणह तणोनंडार॥सुगातेदने कोणे नवि श्रोलख्यो रे लाल। रूप कला अंबार रे॥सुगामा॥ पोताना मंदिर कने रेलाल । श्राव्यो ते जेणि वार रे ॥सु॥ धनदत्त शाह हवे चिंतवे रे लाल । ए कोण राजकुमार रे ॥सुमंग ॥३॥ ततदण रथथी उतरी रे लाल । पाय ते ला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ग्यो जाम रे ॥ सु०॥ धनदत्तशाहें नीमीयो रे लाल। उलखीयो सुत ताम रे ॥ सु॥ मं०॥४॥ माताने वली जर मल्यो रे लाल।वरसे थांसुधार रे॥सु॥ हरखें बोली नवि शके रे लाल । माता तेणी वार रे॥ सु० ॥ मं॥ ५॥ हरख्यां ते मनें अति घणुं रे लाल।नारीने जरताररे ॥ सुणा के मन जाणे आपणुं रे लाल । के जाणे किरतार रे॥ सु०॥ मं॥६॥ घोमा बांध्या पायगे रे लाल ।रथ मेल्यो शुन गमरे॥सु धनदत्तशाहने धन सोंपियुं रे लाल । जणवा बेगे ताम रे ॥ सु० ॥ मं ॥७॥ ॥दोहा॥ ॥वात कही निज तातनें। एकांतें धरी प्रेम ॥घोमा धन रथ राखजो। एहथी लेहेझुंखेम॥१॥ मन चिंते नृपनंदिनी। नाव्यो प्राण श्राधार॥शंकीतो नासी गयो। शुं की, किरतार ॥२॥ पेटपीक तणे मिशें । ते बेठी तिणगय । मनमां रे श्रति घjीयांसुमां उन्नराय॥३॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग केदारो॥ गोमी॥ ॥श्रेणिकराय एहवो हुँ रे निग्रंथ ॥ ए देशी ॥ पियु नागे जाण्यो जिस्य । वागीरे लहेर अपार ॥ पेट तणी वेदना मिशें । नाखे रे आंसुमां धार॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) जीवनजी तुं मुज प्राण आधार । कांश मेहेलीरे मु. जने निरधार । तुं डेरे माहारा हैडानो हार ॥ जीव॥ तुज विण शूनो रे सहु संसार । तुं ले रे माहारो सवि शिणगार॥जी॥॥अदर लखिया परणतां।ते तें साचा कीध ॥ एणे अवसर मुज गेमतां । तें बहु पुःख रे अबलांने दीध ॥जी॥३॥ जल विना जेम माबली। टलवले तेह अपार ॥ ततक्षण दासी परवरी। त्यां आवीरे मंत्रिनी नार ॥ जी० ॥४॥ रसजर रह्यां रे माणसां। ते फुःख सबढुं थाय ॥ रस लेश कूचा करे । ते फुःख रे थोडेरं थाय ॥ जी० ॥५॥ उसड वेसड सवि कस्यां, शीतल बांट्यु नीर ॥ वींजणे वायु वीजतां, तस वान्युं रे चेतन शरीर ॥ जी०॥६॥रुदन करती बालिका । को नवि जाणे नेद ॥ विरह व्यथा तस जबसी। अति घणो रे मनें आणे खेद ॥ ॥जी॥७॥ गीरिवर उदर चढावीने । तें धरीनाखी ध्रसकाय ॥ जोजन सरस पीरसी करी । तें लीधी रे थाली उगय ॥ जी० ॥ ७॥ वात न को पूछि शकी। मुज हुती घणी आश ॥ को न करे ते तें कह्यु, तो तुजने देख रे साबाश ॥ जी० ॥ ए ॥ पालखीयें बेसारीने।श्राणी मंदिरमांहि ॥सासु ससरो त्यां करे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) श्रोसड वेसडरे वली मनने उत्साहि ॥जी॥१०॥ ॥दोहा॥ ॥कोढी शय्या नपरें। आवी बेगे जाम ॥ततक्षण ते देखी करी। कुंवरी निरखे ताम ॥१॥ हवे कोढी ते सज थ। पहेरी मंगल वेशालडथमतो आवी तिहां। मोहोलें कियो प्रवेश ॥२॥ तिहां श्रावी उनी रही। जिहां वे सखी परिवार ॥ देखी श्रामणमणी। बोलावी तेणि वार ॥३॥रुदन करती बालिका । कहे ते सघली वात ॥ रजनी क्रूरतां गए। परगटियो परनात ॥४॥ रथ बेसी उतावली, श्रावी जिहां निज माय ॥ श्रावी केम तेड्या विना। मुज मन अचरिज थाय ॥५॥ पुःखजर बगती फाटती। रुए ते सरले साद ॥ माता कहे सुणो सुंदरी । एवडो श्यो विखवाद ॥६॥ गद गद सादें ते कहे । रात तणुं वृत्तांत ॥ ते निसुणी सवि वारता । मात हुश् नयनांत ॥ ७॥ बुचकारीने बालिका । बेसारी धरी नेह ॥ श्रासन वासन सहु करे । राणी गुणावली तेह ॥७॥ कोढी कुंवरने कारणे। एहवो करी प्रपंच ॥ परनर करतां पामुवो। नीच नाणे खलखंच ॥ए॥प्रात समे परधान ते।श्राव्यो राजा पास ॥ मुखें निसासा मेलतो।म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) नमा थई निराश ॥१॥ राजा पूजे मंत्रीने। बेसारी सुसनेह ॥ मुज पागल साचुं कहो। पुःखD कारण जेह ॥ ११॥ मुज नंदन कंचन जिस्यो। तुमें दीगे महाराय । श्राजूनी श्रधरातिमां । विणठी तेहनी काय ॥१॥ रक्तपित्त तस उपन्यो । दैव थयो विपरीत ॥ विनय करीने वीनवे । एह वमानी रीत ॥ १३ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ काची कली अनारकी रे हां ॥ सुमा रह्या रे बुजाय ॥ ए देशी ॥ ॥राजा कहे मंत्री सुणो रे हो । जीवनें कर्मप्रमाण ॥कर्म विमंबना॥वीतराग एम उपदिसे रे हां। जे त्रिजुवननो जाण ॥ कर्म ॥१॥ कर्म करे ते होय कणा विणलोगव्यां बूटे नहींरे हां। मंत्री विचारीजोय ॥ क० ॥॥ निमित्त कारण मुज नंदनी रे हां। विष कन्यानी जाति ॥ क० ॥ जे माटे एम जाणीय रे हां। उपन्यो रोग अधराति ॥ कण॥३॥ जिनशासन मांहें जाणिये रे हां। निश्चय ने व्यवहार का निश्चय जाणे केवली रे हां। लोक जाणे व्यवहार ॥ क० ॥४॥ जो तनया तुज पुत्रने रे हां। जो नवि देतो एह ॥का रोग रहित देवी दासनी रे हो । विणसत नहीं शुज देह ॥ कण् ॥५॥ मंत्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) कहे माहाराजजीरे हां। तुम पुत्री नहीं दोष ॥॥ कर्मनी परिणति जाणीये रे हां । म करो तुमें बहु शोष ॥ कण् ॥ ६॥ कपट न जाणे नूपति रे हां। जेहनो सरल खन्नाव ॥ कण ॥ हलु करमो जीव जाणिये रे हां। धर्म उपरें बहु नाव ॥ कण॥ ७॥छषनदेवने जाणिय रे हां। वरसी तप उपवास ॥का महिनाथ नारीपणे रे हां। कर्म न मेहेले तास ॥ ॥ क० ॥ ॥ ढंढण नामें मुनीसरु रे हां । मेतारज वली जेद ॥ क॥ एला पुत्र वखाणिय रे हां । कमें नड्या बहु एह ॥ कण्॥ए॥ सीता सुनना औपदी रे हो । इषिदत्ता सुकुमार ॥ क॥ अंजना दमयंती सती रे हां। कलावंती वति नार ॥क०॥१०॥ तेम ए त्रैलोक्यसुंदरी रे हां । श्रावी तेहनी जोम ॥क० ॥ एहने कलंक ए उपन्यु रे हां । दैवें दीधी खोम ॥ कम् ॥ ११॥ सांजली मंत्री तिहांथकी रे हां। निज घर आव्यो तेह ॥ कण ॥राजा पण राणी जणी रे हां । श्राव्यो ते गुणगेह ॥॥१॥ तिहां कणे एहज सांजव्यु रे हां । बेगे थश्ने निराश ॥क॥ पुण्यथकी पुण्यवंतने रे हां । फलशे सघली आश ॥ क० ॥ १३॥ जे हती सहुने वालहीरे हां । हुश् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () अलखामणी तेह ॥ क०॥ माय विना को नवि धरे रे हां । तेहशुं अधिक सनेह ॥ क० ॥ १४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ परएयो पति मेली गयो। कलंक चढ्यु जगाहि ॥ एम बेठी फूरे घणुं । रात दिवस घरमांहि ॥१॥ पूरवले नव में किश्यां । कीधां कर्म अघोर ॥ किहां जावं कुणने कहुं । कर्म प्रतें नहीं जोर ॥२॥ ॥ ढाल अग्यारमी ॥ वीर वखाणी राणी चिक्षणा जी ॥ ए देशी ॥ ॥मन विलखाणी नृप नंदनीजी॥मनमांहे घणुं दिलगीर ॥ मायने एणी परें वीनवेजी।नयणे करे बह नीर ॥मनः॥१॥नयणें न आवे निजमी जी । उदक न जावेजी अन्न ॥ चित्तमां आमण मणी जी। कोयशुं न वि मले मन्न ॥मना॥ निज देशना परदेशनाजी। लोको मलशे लाख ॥ मंत्रीनी वात सहुमानशेजी। माहारी कोण नरे साख ॥मन॥३॥ मात ने तात वैरी थयां जी। वैरी थयो परिवार ॥कमै कलंक चढावियुं जी। करवो कवण विचार ॥ मन॥४॥ कहो हवे कोण आगलें कहुं जी। ए फुःखडानी रे वात॥रातनी कपटनी वारता जी । सांजलो माहारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) मात ॥मन॥५॥लामुआ खातां मुजने कडं जी।जो होये क्षिप्रानुं नीर॥तो करे सरस ए लाया जी। ते सुणी हु दिलगीर ॥ मन ॥६॥ तेवारें में मन चिंतव्युं जी।किहां चंपाने उजेण॥मोशालादिक तिहां हशे जी । सांजघु कारण तेण ॥मन ॥॥ लाजें करी सुणो मामली जी। पूड़ी न शकी कां वात ॥ शरीर चिंतानो मिश करी जी। नागेजी तुज जामात ॥ मनः॥॥॥रजनी मध्य गया पली जी। आव्यो नर कोढियो एक ॥ ते देखी हुँ नासी गई जी।सुण जामणी सुविवेक ॥मनाए ॥ आप हत्या करी जो मरूं जी। तो जीव उर्गतें जाय ॥ पण ते कर्म न बुटीयें जी। एम नांखे जिनराय ॥ मन ॥१॥ क्षण सुवे क्षण रुवे बेठमी जी। कण एक धरे रे वैराग ॥ एम करी निज तनु आवटे जी । कांचलीयें आव्यो रे नाग ॥मन॥ ११॥ एम नित्य फूरतां तेपीयें जी। कांश्क वोख्या रेदीह ॥ उजेणी मांहे हो. शेजी। मुज परण्यो वरसिंह मन॥१॥ तो हवे जाजं उजेपीयें जी। जो हुवे तात आदेश॥ निज वरने जोवा जणीजी । पहेरी पुरुषनो वेश ॥मन० ॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ॥दोहा॥ ॥ चंपावती मांहि जाणियें।जे होय ज्योतिषराय॥ तेहेने तेमी पूबीयें। सुण तुं मोरी माय ॥१॥ लगन रुडं जो करी, कीजें उत्तम काम ॥ सिद्धि चढे उतावबुं। रहे पोतानी माम ॥॥ निमित्तियाने तेडवा। सुंदर चतुर सुजाण ॥ दासी एक त्यां मोकले। जेहनी सुललित वाण ॥३॥ ततक्षण आएयो ज्योतिषी। पेहेत्या सवि शणगार ॥ गज जेम आव्यो मल. पतो। राणीने दरबार ॥४॥ श्राव्यो देखी तेहने । राणी करे प्रणाम ॥ पूढे आसन देश्करी । श्रीफल आपी ताम ॥५॥ ॥ढालबारमी॥जोसियमातुं ज्योतिष जोय ॥ ए देशी॥ जोसियमाजी॥जो जो लगन विचार । रुडी परें चित्त राखजोजी॥जोसियडाजी ॥ क्यारें थाशे मुज काम ॥ ते तुमें साचुं जांखजो जी ॥१॥जोसीयमाजी जो सरशे मुज काज । देशुं जीन सोनातणी जी॥ जोसियडाजी ॥ देशू हैमानो हार । देशुं रयण रुमा मणिजी ॥२॥ जोसि॥ देशुं सवि शणगार । हीरे जडित सोवन सांकलां जी ॥ जोसि ॥ सोनेरी शिरबंध । हरमिज केरां मोती जलांजी॥३॥ जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) सि॥ जो लगन विचार। जोसियडो एणि परे जणे जी॥ बार काम होशे निरधार । शास्त्रे लख्युंजे अम तणे जी ॥४॥ जोसियमानी रुमी निसुणी हो वात ।श्राणी हो हरख हैये घणो जी ॥ जोसियमा जी ॥ उणीए मुज मन्न।जोवाने जननी सुणोजी ॥५॥ माडी मारी पहेस्या सवि शणगार । खयेर अंगार परें जाणजो जी ॥ मामी मोरी फूल ते शूल समान । जवन जाखसी सम मानजो जी ॥६॥ माडी मोरीते दिन सफल गणीश जे दिन तेहने निरख\ जी॥मामी मोरी ते दिन लेखे जाण।जे दिन कलंक उतारशुंजी ॥॥ मामीमोरी विण अवगुण विण वांक। सुमति प्रधाने मुज दाखवीजी॥मामी मोरी एकपखी सुणी वात। रोष राखे रुमो राजवीजी ॥ ॥ माडी मोरी ए फुःखमानी वात। कोश् श्रागले नविनांखीये जी ॥मामी मोरी एफुःख नांजे जेह । ते श्रागडे कुःख दाखियें जीए॥ माडी मोरी जेतां तरगस तीर। मुलतानी मुगल तणेजीमाडीमोरी तेतांपुःख शरीर। सहियें पण कही नहींजीरणामामी मोरी जोतां हो देश परदेशानणदीनो वीरो मुजजो मलेजी॥मामी मोरी कहे सुंदरी घणे नेहामनना मनोरथ सवि फलेजी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) ॥ दाहा ॥ ॥ एक दिन मनमां चिंतवे । नयर उझेषी मांहि ॥ जे में परएयो प्रेमशुं । ते मलशे मुज नाह ॥ १॥ मोदक वावरतां कयुं । यणो दिप्रा नीर ॥ उणी नयरी तणुं । तो विकसे मुज हीर ॥ २ ॥ खोली का तेहने । कांक करी उपाय || जो हुं जाउं उजेपीयें । तो मुजनें सुख थाय ॥३॥ एक दिन जननीने कहे । जो तात सुणे मुज वात ॥ एकांतें बेसी करी । तो वे सवि धात ॥ ४ ॥ एकदिन सिंह सामंतनें । रापीयें एकांत ॥ वात कही पुत्री ती । जेथी होय शुभ शांत || || अवसर जाणी वीनवे । सिंह नाम सामंत ॥ तमें वो मोहोटा राजवी । वली बो बहु गुणवंत ॥६॥ पुत्री त्रैलोक्यसुंदरी । दुःख धरे समान ॥ तेने तेडावी करी । द्यो प्रभु यादरमान ॥ ७ ॥ वया सुपि सामंतनुं । राजा हुने दीलगीर ॥ हैयुं नराणं नृप तणुं । नयऐं नाखे नीर ॥ ८ ॥ कुंवरीएं पेहेले जवे । दीधुं होशे कलंक ॥ ते कारणें एम जाणियें । पामी एह कलंक ॥ ९ ॥ नृप याज्ञा लेई करी । तेडावी सा बाल || लाजंती मा तेडिने । ते आवी ततकाल ॥१०॥ देखीने दुःख उपन्युं । ते त्रणने तेणि वार ॥ घडी बे घ I Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) डी बोब्यां नहीं। नाखे आंसु धार ॥११॥ कुंवरी कर जोमी कहे। द्यो मुजने नरवेश॥ कांहिक मोटे कारणे। हुं चालीश परदेश ॥ १५ ॥ राजा सिंह साहामुं जुवे। ए श्युं बोले बाल ॥ सिंह नणे खामी सुणो। ए न्याय वयण सुरसाल ॥१३॥ पुत्री हुश् राजा तणी । पहेरी पुरुषनो वेश ॥ निज कुंवरीने एम नणे । जो जो देश विदेश ॥१४॥ सिंह सामंत साथें दियो। दीधा धननंमार॥रुडी परें ए राखजो । वली दीधा असवार ॥१५॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ घरें श्रावोजी आंबो मोहोरीयो ॥ए देशी ॥ . ॥राजकुंवरी शुज मुहूरतें। पहेरी पुरुषनो वेशो रे॥ तात जननी पाय लागीने । सिछि करी परदेशो रे ॥ रा॥१॥ कुंवरी को जाणे नहीं। एक जाणे सामंतो रे ॥ शूर वीरने साहसी । गिरुबोने गुणवंतो रे ॥रा ॥२॥ शिरबंध सोहे सोना तणो । गले मोतीनी मालो रे ॥ ढालज मेहेली ढलकती। नानडीयो सुकुमालो रे ॥ राण॥३॥ तरगस बहु तीरें नयुं । सोनेरी तरवार रे ॥ लाल कबान हाथें धरी। मोही रह्यां नर नार रे ॥रा ॥ ४ ॥ लीलडे घोडे ते चढ्यो। लीलो वेश बनाइ रे ॥ सामंतने पागल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) कस्यो ।जली वागी सरणा रे ॥रा ॥५॥ काग करहा मजीठिया । गले घूघरनी मालो रे ॥मन मानी नूयें चालता । एक न लागे तालो रे ॥रा ॥६॥ राजकाज सवी साचवे । सिंह ते सिंह समानो रे ॥ वात विचार तेहशुं करे। ते जे बुछिनिधानो रे ॥रा॥ ॥७॥ अखंग प्रयाणे श्रावियां । क्षिप्रा नदीने तीरो रे॥ न्हा धो पावन थयां । जेहनुं निर्मल नीरो रे ॥रा॥॥ वैरीसिंह राजा सुणी । मोकल्या निज परधानो रे ॥ मन हरखें तेमी करी। दीधां श्रादर मानो रे ॥रा०॥ ए॥ कुंवर नले तुमें श्राविया । वूग अमीमय मेहो रे॥ सुरसुंदर राजा तणो। अम उपर बहु नेहो रे ॥ रा० ॥ १० ॥ उतारा सखरा दीया । मनमोहन आवासो रे ॥ गोंख जाली शत बारणां । ते जे अति सुप्रकाशो रे॥ रा०॥ ११ ॥ शुन लगनें शुन मुहूरतें । मोहलें करे प्रवेशो रे॥खबर लीये दिन दिन प्रतें । वैरीसिंह नरेशो रे ॥ रा० ॥१२॥ सत्तर नेद पूजा रची। नेव्या श्रीजगवंतो रे॥ अति हरखे पमिला जिया। सूधा साधु महंतो रे॥रा० ॥ १३ ॥ जीव बोडाव्या अति घणा । ये पंचविधनुं दानो रे ॥रात दिवस गुणिजनतणां । सांजले गीतने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) गानो रे || रा० ॥ १४॥ वनवामी जोयां घणां । वली जोयां बाजारो रे || अन्य दिवस जोतां थकां । दीठा पंच तुखारो रे ||रा||१२|| ए घोडा मुज तातना । निरधारी सुविवेको रे ॥ नाम ठाम जोवा जणी । तिहां मूक्यो नर एको रे ॥ ० ॥ १६ ॥ ते जोईने एम कहे । धनदत्त शेठ सुजाणो रे ॥ नामें धनवती जारजा । मंगलकलश सुत जाणो रे ॥ रा० ॥ १७ ॥ धनदत्त सुत पंड्या कनें । करे नित्य कला अन्यासो रे ॥ ते पण तिहां में निरखीयो । रूप कला यावासो रे ॥रा० ॥ १८ ॥ तेना तुरंगम जाणजो । ए मांहे मी - नन मेषो रे ॥ वात सुणी दरखी घणुं । सुंदरी ते सुविशेषो रे || रा० ॥ १७ ॥ 1 ॥ दोहा ॥ ॥ सुंदरी सिंह सामंतने । तेमीने सुविचार ॥ धन पीने लीजियें । ए पांचे तुखार ॥१॥ सिंह वदे सुं दरी सुणो । नापे बालक तेह ॥ जेम तेम तस मन कवी | लेशुं घणे सनेह ॥२॥ सुंदरी कहे सामंतने । सुजो वयण रसाल ॥ उजेपी नगरी तणी । जिमाकियें निशाल ॥ ३ ॥ धनदत्तनो सुत श्रावशे । देशुं श्रादरमान ॥ घोमा लेशुं रीऊवी । आपी तस बहु दा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) न ॥॥ जमण सजाश्सहु करी। बांध्या मंम्प खास ॥ मोहोल रचाव्या अति घणा । जाणे देव आवास ॥५॥ सिंह सामंतने मोकल्यो । नोतरवा निशाल ॥ पंड्या सहित सहु आवजो।नोजनने सुविशाल ॥६॥ जोजन वेला अवसरें। पहेरी सवि शणगार ॥ मंगल श्राव्यो मलपतो । बोकराने परिवार ॥ ॥ मोहोल थकी ते उतरी । सुंदरी सवि परिवार ॥ निशालियाने निरखवा । हैडे हरख अपार ॥ ७॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ देशी रसीयानी ॥ ॥सुंदरी श्रावेहो निजपियु नीरखवा। पहेरी पुरुषनो वेष॥सुनयनी ॥ शिरपर सोहे हो पंचरंगपाघमी। कलंगी विराजे रे विशेष ॥सुासुंगा॥केसरियोरे अंगें वाघो बन्यो। कस्तूरी महकाय ॥सु॥ फूल चंबेली हो पहेस्यां अति घणां। सहेजें सकोमल काय ॥॥सुं॥ ॥२॥ धनदत्त सुतने हो तेणीयें उलख्यो । ए सहि मुज जरतार ॥ सुवदनी ॥ पूरव पुण्यें हो ए श्रावी मदयो । हवे मुज त्रूट्यो रे किरतार ॥सुणासुं॥३॥धनदत्त सुत हो तिहां उनो थ। कीधो तेहनें प्रणाम ॥ सु० ॥ मंगलकलशें हो ते नव उँलखी। नृपनंदिनी श्रनिराम ॥ सुनयनी ॥ सुंदरी०॥४॥निशा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) लीयाने सवि जोजन नणी । मांड्या सादा रे थाल ॥सुणा मंगलकलशने तेणिये मंमावियो । रूमो रूपानो रे थाल ॥ सुनयनी ॥ सुं०॥५॥बाजोउ मांड्यो रेसाव सुवन तणो । ते पीरसे पकवान ॥ सुनयनी॥ जमी करीने ते सवि उठिया । दीधा फोफल पान ॥ सुनयनी ॥ सुंदरी० ॥६॥ निशालीया प्रतें दीधी पाघमी । धनदत्त सुतने शणगार ॥ सु॥ वाघो थाप्यो हो अतिघणा मूलनो । आप्या वली अलंकार ॥ सुन॥ सुंदरी॥७॥ निशालीया हो सवि जांखा थया । देखी पंक्तिनो रे नेद ॥ सु०॥ पण कुंवरीनी लाजें बोली नवि शके । आएयो मनमांहि खेद ॥ सु० ॥ सुंदरी० ॥ ॥ पंड्याने हो कहे नृपनंदिनी। तेहने तेमी रे एकांत ॥ सु० ॥ वात अनोपम सुणवा मुज घणी । सरस कथानी रे खांति ॥ सुवदनी ॥ सुंदरी० ॥ ए॥ ते माटे हो जटजी तमें घणो। द्यो कोश्बात्रने आदेश॥सुवदनी ॥ मोहनगारी रे देश परदेशनी । कहाणी सुणावे सुविशेष ॥ सुनयनी ॥सुंग ॥१॥बेत्रण गत्रने पंडितजी कहे। कहो तमें कथारे सुसवाद ॥ सु० ॥ ते बोल्या हो मुखें त्रटकी करी। श्राणी मने रे उन्माद ॥ सुनयनी ॥ सुं० ॥ ११॥ ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) कहेशेजी कहाणी हरख घणे । जेहने श्रति घj मान ॥ सु ॥ मंगलकलशने तेड्यो ततकणे । जे बे गुणनो रे निधान ॥ सु ॥ सुंदरी ॥ १५ ॥ शेग्नो नंदन हो हरखें श्रावियो।नृप तनयाने पास ॥ सुनयनी ॥ रुडी परें हो रूप जोतां थकां । उलखी कुंवरी उदास ॥ सुनयनी ॥ सुंदरी० ॥ १३ ॥ ए राजकन्या हो कोश्क कारणे । पहेरी पुरुषनो वेश ॥ सुनयनी ॥ चंपापुरीमांहि में परणी हती। ते आवी एणे देश ॥ सुवदनी ॥ १५ ॥ सुंदरीश्रावे हो निज पियु निरखवा ॥ ढाल पूरी थक्ष रसीया वालमनी। प्रथम पूरो थयो खंग ॥ सु० ॥श्रवणें सुणतां हो अति सुख उपजे । पामियें लील अखंड ॥सु० ॥सुंग॥१५॥ रुडीने हो अति रलियामणी । सरस कथा सुविलास ॥ सु०॥ मंगल कहेशे हो बीजा खंडमां । सफल फली सवी श्राश ॥ सु० ॥ सुं० ॥ १६ ॥ श्री विजय मान सूरीसरगल धण।। श्रीमान विजय बुधराय॥सु० ॥ तेहनो विनयी दीप्तिविजय कहे। पुण्यथी बहु सुख थाय ॥ सु० ॥ सुं० ॥ १७ ॥ इतिश्री मंगलकलशरासे प्रथम खंडः संपूर्णः ॥ १॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ॥अथ द्वितीयखंम प्रारंजः ॥ ॥दोहा॥ ॥ मंगल कहे कथा तणा। नेद चार सुविचार ॥ कल्पित अकल्पित वली।अपरा पर सुविचार ॥१॥ मंगल कहे तुमें कुवरजी। सांजलजो धरी नेह॥ पुरुष चरित्रतणी कथा । सरस सुणावं तेह ॥२॥ पुरुषचरित्र माहे कह्यो। शील तणो गुण सार ॥ नर नारी सहु सांनलो। लाखानो अधिकार ॥३॥ कोण गामें कोण देशमां । केणी परें पादयुं शीलराज शछि पामी घणी। शीलें पामी लील ॥४॥ गणिकाने कुलें उपनी। पामी यौवन धन ॥ धन्य ए लाखा सुंदरी जेणे पादयुं शील रतन्न ॥५॥दीदा देशमुगतें गापामी केवलनाण॥ शील तणा गुण गावतां । होवे जय कल्याण ॥६॥ ॥ ढाल पहेली ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ काबेरी नामें एक पुरी। धण कण कंचन सुनरें जरी॥श्रजितसेन नामें राजानं । बहु गुणवंतो सुमति प्रधान ॥१॥ राजाने राणी शत चार । रूपें रंजा तणो अवतार ॥ पण अवगुण एक तेहने घणो। पुत्र नही को कुलमंडणो ॥ ५ ॥ तेणे कारण ते बहु फुःख धरे । मेह परेंते आंसु करे ॥ राणी सघली रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) सही। करम प्रतें को चाले नहीं ॥३॥ श्रोसड वे. सड कीधां घणां । श्राराधन कीधां सुर तणां ॥ था. राधी वली कुलदेवता । पण नवि दुवो सुत सेवतां ॥४॥ तेह निमित्त धन खरच्युं बहु । सुतनी वांडा करे ते सहु॥सुत कारण नला उपचार।बहु नित्य करे नारी चरतार॥५॥ एम करतां हुवां वरषज बार । राजा वृक्ष हु तेणि वार ॥ रातें मध्य निता परहरे । पुत्र तणी चिंतामन धरे ॥६॥ मनमांहिं चिंते राजान । को राणीने न हुई संतान ॥ धनें करी बहु नस्या नंडार । अव्य तणो नवि लाने पार ॥७॥ कृपण पणुं हवे नवि आदते धन काढीने वावरु॥राणी सघलीने शणगार। पहेरावू मुक्ताफल हार ॥॥राणी. ने नित्य नवला वेश।वडी राणीने वली विशेष॥दान देखें मनधरी उत्साह।मानव नवनो लेउ लाह ॥ ॥ चतुराइते तेहनी खरी।जस उपराजे धन व्यय करी॥ एम चिंतवतां उग्यो सूर । तव वाग्यां मंगल वर तूर ॥१॥राजायें तेड्यो परधान। दीधुं तस बहु थादरमान॥लाख एक सोनश्या सार। नित काढो म म करजो वार ॥११॥ वामीमांहिं जिननो प्रासाद । उँचो गगनशुं मांडे वाद॥ श्रीकृषनदेवनी मूरति जिहां। पूजा र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) चावो दिन प्रतिहां ॥१॥दल वादल नामें सुविशाल। डेरा तणावो रंग रसाल॥अति रूडी तिहां रचना करो। आसन बेसण तिहां वली धरो ॥ १३॥ फूल पथरावो तिहां वली घणां । अगर तणां मांगो धूपणां॥बांधो मोतीनां कुमणां । रंगें रूपें रलीयामणां ॥ १४ ॥ देश परदेश तणा जन वृंद । जोवा आवे धरी थाणंद ॥ जे देखीने करे वखाण । तेह करजो चतुर सुजाण ॥ १५ ॥ राजा पहेरी सवि शणगार । सवि राणी साथे परिवार ॥ श्रावी बेग मंझप तलें। इंज जुवन आव्युं नूतलें ॥१६॥ मोहोटा मूंगला नूपति। चोकी करे ते निज खिजमती॥ ततदण तिहां तेमावे पात्र । मंमावे जोवानी जात्र ॥ १७ ॥ रूपें रूमी गणिका जेह । रुडुं नाची जाणे तेह ॥ तेहने राजा दे आदेश । नाचे नवलो पहेरी वेश ॥ १७ ॥ कंचुक कसीया लीडे अंगानाटक करवानो बहुरंग॥ पाये घूघरना घमकार । कांफरनो रम ऊम रणकार ॥ १॥ श्रावी नृपने करे प्रणाम।निज गुरुतुं तिहां ले नाम ॥ तिहां किण मांडे नाटारंन । आगल जेम नाचे रंन ॥ २० ॥ मधुरां वाजे आठ मृदंग । नाचे पात्र तिहां मनरंग ॥ ताल विणाने वली वांस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) ली । शरणाइ नफेरी वली ॥ २१ ॥ धप मप धोंधों मद्दल नाद । श्रालापे हुसेनी नाद ॥ को किल सरिखो जेहनो साद । रंज सरिसो करशे वाद ॥ १२॥ थेइ थेइ कार करती रमे । कांकरकां पगे रमऊम ऊमे ॥ परियच बांधी एक दिशि । तिहां राणी देखी उल्लसि ॥ २३ ॥ राजा मोज दिए अति इसी । राणी धन यापे मन खुसी ॥ २४ ॥ लाख सोनश्यानो व्यय करी । राजा मंदिर आव्यो फरी ॥ बीजे दिन पण वाडी मांहि । जमी करीने मन उत्साहि ||२५|| राजा नृत्य करावे प्रेम | लाख सोनश्या खरचे तेम ॥ एम दिन दिन तेंधिको रंग । राजा दान दिये जबरंग ||२६|| एक दिवस तिहां योगी एक । बेगे अलख कहि सुविवेक || अधिष्ठायक ए जिनवर तणो । रूपें रुडो रवियामणो ॥ २७ ॥ काने मुद्रा हीरे जमी । काठ ती परी पावमी ॥ सवा मए पढेरी गोदमी । हाथे सोवनी लाकडी ॥ २८ ॥ हेम कमंडल पाणी जरी | बांटे सजा ते नीरें जरी ॥ वाघांबर जूयें पाri | बेटो खासन निश्चल करी ॥ २५ ॥ राणी सहित राजा मन रंग । पाय नमे जोगीना चंग ॥ अवधूत नृपने दे आशीष | बावा लहेज्यो सबल जगीश ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) ॥ ३० ॥ घमी बेघमी अणबोल्यो रही। बोले वाणी अमृत सही ॥ तमने देखिने मुज मन्न । थयुं सदा होजो सुप्रसन्न ॥३१॥ ॥दोहा॥ ॥किस कारण तमें राजवी। दीसो वदन विछाय ॥ ते कारण मुजने कहो ।मुज मन अचरिज थाय ॥ ॥ १॥ जोश्य बे प्रनु माहरे । बेटो रूप रसाल ॥ कुलदीवो कुल मंडणो । राज्य तणो रखवाल ॥२॥ श्राय उपाय कस्या घणा । पण नाव्यो एक पुत्र ॥ तेहनी आशा ने घण। जे राखे घरसूत्र ॥३॥ योगी बोल्यो चमवडो।सुण होतुं राजान॥पुण्ये शुद्ध विद्या लहे । पुण्यें यश संतान ॥४॥ मन हित आणीने करे।जे विद्यानो जाण ॥जेम रिपुमर्दन रायनें। वाध्यु कुल मंडाण॥५॥रिपुमर्दनते किहां हवो।केमहतस काम॥ महेर करी मुजने कहो।तेहनी कथा श्रनिराम ॥६॥ सिफ कहे नृप वागलें। रिपुमर्दननी वात ॥ राजा राणी सांजले । जेहनो यश विख्यात ॥७॥ चंदेरी नगरी धणी । रिपुमर्दन गुणखाण ॥ राणी एकशो तेहनें । जेहनी मधुरी वाण ॥७॥ मंत्र यंत्रा. दिक बहु कस्या। मान्या देवोने नोग ॥ पण नवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) अंगज उपजे । कर्म तणे संयोग॥॥ सीमामा सवि नूपति। चांपे तेहनी सीमामांहो मांहे नित्य लडे।जेम कौरवने नीम ॥ १० ॥ सिक एक नृपने मल्यो। श्राप्युं फल श्रीकार ॥ राणीने खवरावजो। गर्न होशे निरधार ॥१९॥ सिफ गयो निज थानकें । हरख धरी राजान ॥ राणीने खवरावीयुं । पेट रह्यं उधान ॥१॥ ॥ ढाल बीजी ॥ हमीरीयानी देशी ॥ ॥ते राणीने नूपति । राखे नयरामांहि॥राजन जी॥ दासी एक पासें उव।। खिजमत करे उचाहि । राजनजी ॥१॥ वात सुणो एक अभिनवी, सुणतां अचरिज थाय ॥ राजनजी रसीया जन जे सांजले। तेहने बहु सुख थाय ॥रा ॥ ५ ॥ यत्न करे राणी तणां । सुतनो जाणी लाल ॥ रा॥ शोक्य घणी तेहने । रखे गलावे गान ॥ रा० ॥३॥राणी पासें ते राजवी। दिनमांहे बे वार राणाखबर लेवाने कारणे । हैडे हरख अपार ॥ रा॥४॥ चोकी मेली चिहुं दिशे । यत्न करे जली नांति ॥ रा० ॥ राजाने राणी तणी। दिन दिन अधिकी कांति ॥रा॥५॥ एक दिन राणी विनवे। पूरण हुश्रा नव मास ॥रा॥ प्राणनाथ तुम पुण्यथी। पूगी मननी श्राश ॥रा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ॥६॥ बेटो के बेटी होशे । करमें लख्युं फल जेह॥ ॥रा॥पण वधामणी सुत तणी । मोकलज्यो धरी नेह ॥ रा० ॥ ७॥ दासीने नृप शीखवे । देखाडजो सुविवेक ॥राण॥ कुंवरी तणी बे बांगली। कुंवर तणी जली एक ॥ रा ॥७॥ राजसनामांहि राजवी। ज बेगे दरबार ॥ रा॥ शुज वेला शुभ मुहूरतें। पुत्री जणी तेणि वार ॥रा० ॥ ए॥ बे ांगली देखामती ।श्रावी नृपनी पास ॥रा॥ साहेब देज्यो वधामणी । पुत्र तणी कहे दास ॥ रा०॥ १० ॥ ॥दोहा ॥ ॥ मनमांहि समजी रह्यो। वजमावे नीशाण ॥दीधी लाख वधामणी। मेहव्या बंधीवान ॥१॥ घर घर हुआं वधामणां।बांधिबंधनमाल ॥सहेर सवि शणगारीयु। दीसे काक जमाल ॥२॥राजा ततण तिहां थकी। श्राव्या राणी पास॥औषध नेषज देकरी। शिथिल करीते दासि ॥३॥ राज्य रखोपा कारणे। बानी राखी वात ॥जोए बाहिर विस्तरे।तो नव श्रावे धात ॥४॥ गम गमना राजकी। मलवा श्राव्या जेह ॥ तेहने जिमाडी करी।पधरावे सुसनेह॥५॥ते राजा खिजमत करे । राणीनी दिन रात ॥ बाहिर राजा नीसरे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ताला देश सात॥६॥सुतनुं नाम सोहामणुं। दीधुं देव कुमार ॥ कुंवरी यौवन वय हु । रूप तणो नहीं पार ॥॥ देवकुंवर गुण सांगली।हवे मोटा राजान ॥धन साथें हरखें करी। दे बहु कन्यादान॥ ७॥ रिपुमर्दन माने नहीं। मुज सुतने लघु वेश ॥योग्य जाणी परणावसुं।एम कहे वमो नरेश ॥ए॥ सोपारा पुरनो धणी। मोकले धरी सनेह ॥ निज तनया अमरावती। शकि सहित गुणगेह ॥ १० ॥ आवी जाणी तेहने।मनमां चिंतवे राज ॥ पाली मोकलतां थकां। न रहे सुतनी लाज ॥११॥ वेश करी तिहां पुरुषनो। नूमिमंदिर धरी नेह। शुज लगनें परणावियां। नृप कुंवरी गुणगेह ॥१२॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ नावननी॥ ॥ कागलीयो किरतार जणी॥ ए देशी॥ ॥मातपितायें अति जोलापणे रे।ए शुंकी, काम॥ ए मुग्धाने मुज परणावतां रे । केम रहेशे मुज माम ॥९॥कुंवरी राजानी एम चिंतवे रे। करवो कवण वि. चार ॥ ए फुःख जाणे मनडुं माहरु रे । के जाणे किरतार ॥ कुम॥२॥ ए आंकणी॥हांथी गाज चालीश सांजल्यो रे।मोहोटो एक पहाम॥ते वच्चें मोटुं सरोबर जलें जमु रे । पाट जाजां जामकुमगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) चांपा प्रांबाने बहुं थांबली रे । नालेरी नव रंग ॥ ताल तमाल अगर चंदन घणा रे । नागर वेली सुरंग ॥कुमाअखोग बदाम चारोली आरबी रे । सोपारी ने जाख॥ केलि खजुरी नारंगी दामिमी रे। करमदी केरा लाख ॥कुम॥५॥ ते वनमां हि वनचर अति घणा रे। कदेतां नावे पार ॥ नदीयें पाणी नित्य खलहल वहे रे । तरुवर नार अढार ॥कुम०॥६॥ ते वनमांहिं सावज अति घणारे। वाघ सिंह विकराल॥ऊरख सुवरने अजगर चीतरा रे। नाहार रीब शीयाल ॥ कुम० ॥७॥ ते गिरि उपरें एक जगवंतनो रे। मोहोटो ले प्रासाद ॥ मांहि मूरति श्रीआदिनाथनी रे। दीठे मन आल्हाद ॥कुमणाजा तिहां जर फूल लश् जावें करी रे। पूजी श्रीवितराग ॥ पड़ी ते सरोवर पालें आवीने रे । करवो देहित्याग ॥ कु०॥ ए॥ सावज वनना बहुं त्यां श्रावशे रे । सरोवर पीवा नीर ॥ ते वनचर गिरिगह्वर लेश्जशे रे। कोमल कुंवरी शरीर ॥ कुण् ॥ १० ॥ सांढ पलाणी रातें नीसरी रे । पहेरी नर शणगार ॥ राजा राणी कोश जाणे नहीं रे । नवि जाणे परिवार ॥ कु० ॥ ११ ॥ सूर उगमते ते नृप सुंदरी रे।श्रावी तेह वनमांदि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) फूल ले जिनवरने नेटवा रे। जिन मंदिर जे ज्यांहि ॥ कु० ॥ १५ ॥ देव जुहारीने पाठी फरी रे । नाही निर्मल नीर ॥ जहेर पलाली वन फल वावरी रे । बेठी चंपक तीर ॥ कु० ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ . ॥ विद्याधर विद्याधरी। धणी धणीयाणी जोम॥ श्रावी जिनवर पाय नम्यां । स्तवन करे कर जोड ॥ २॥ गिरिथी श्राव्यां बेहु जणां । दीगं सरोवर पाल ॥ वनराजी फूली रही। फूली चंपक डाल ॥२॥ चं. पक तरु तलें तेहगें । देखी अजुत रूप ॥ विद्याधर पूछे तदा । कोण तमें कवण वरूप ॥३॥ बोलाव्यो बोले नहीं । हैडे फुःख अपार ॥ नयणे नीर करे घणुं । जाणे त्रूट्यो मोतीहार ॥ ४ ॥ रुदन करतो देखीने। विद्याधर तेणिवार ॥ मनमांहिं ते अटकले। ए कुंवरी निरधार ॥ ५ ॥ प्रायें एवं जाणियें । नारीने लघु बाल ॥ दुःख श्रावे नयणां करे। आंसुमां ततकाल ॥ ६ ॥ विद्याधर निज नारिने । कहे नारी निरधार ॥ कोश्क मोटे कारणे। कीधुं रूप कुमार ॥७॥ स्त्री जाणी विद्याधरी पूले सघली वात ॥धुरथीमांमीने कद्दे । पोतानो श्रवदात ॥ ७॥ यतः॥ हंसा रच्चं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (Yu) ति सरे । जमरा रच्चंति केतकी कुसुमे ॥ चंदनवने जुयंगा । सरिसा सरिसेहिं रच्चं ति ॥ १॥ विद्याधरी कहे कंथनें | करो इनो उपगार ॥ ए बे मुग्धा बालिका । कोमल रूप अपार ॥ ५ ॥ परउपकारह कारणें । पान चूनानो संग ॥ खाप करावे टूकडा । पर उपजावे रंग ॥ १० ॥ विद्याधर एक औषधि । खवरावे मन रंग ॥ तेहने महिमायें करी । नर हुई रूप अनंग ॥ ११ ॥ निज मंदिर पोहोंचा मिने । विद्याधर निज देश ॥ नारी फीटी नर थयो । अतिघण पुण्य विशेष ॥ १२ ॥ राजा राणी हरखियां । वरत्यो जय जय कार ॥ ते नरथी बहु उपन्यो । राज्य तो अधिकार ॥ १३ ॥ एह कथा निसुणी करी । मन यानंयो नूप ॥ करजोडीने वीनवे । तुमें बो देव स्वरूप ॥ १४ ॥ ते राजाने तेणें कस्यो । कुल मंरुण उपकार ॥ (तेम) महेर करी मुज उपरें । यो मुज सुत श्रीकार ॥ १५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ चोपाइनी देशी ॥ । ॥ सिद्ध कहे निसुणो नरराज । सीध्युं एह तमारुं काज ॥ वाडी मांहिथी श्रीफल चार । आणी आपो मुजने निरधार ॥ १ ॥ फल आणी नृप हाथे दीघ । मंत्री पे तिहां कणे सिद्ध ॥ खवरावज्यो ए फल ल ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) ही तुथा। चारे राणीने जूमुश्रां ॥२॥एम कहीने ते व्यंतर गयो।जाणे अति आनंदज थयो॥ श्रनुकरमें हुश्रा नव मास । राजाने मन पोहोती श्राश ॥ ३ ॥ एक वेला एक लगन जदार।कुल मंमण सत प्रसव्या च्यार ॥ जयराज ने धनराज कुमार । कीर्तिराज चोयो वत्सराज ॥४॥ चारे नाई सरखी जोग । अंगें को न दीसे खोम ॥ शोल वरसना ते जव थया। माता पिता परलोकें गयां ॥५॥ शूरो पूरो ने जयराज । धन संपूरण धनराज ॥ कामण टुमण मोहनराज । ते सवि जाणे जे कीर्तिराज ॥ ६॥ पुरुष तणी जे बहोतेर कला । जाणे शास्त्र तणा आमला ॥ नर नारी सहु करे वखाण । वत्सराज ते चतुर सुजाण ॥ ७ ॥ एकेको गुण तेहने होय । तेहने गंजी न शके कोय ॥एम जाणी नवि सोंप्युं राज। राजा साधे आतम काज ॥जा खांमाने बलें ले\ राज । एम बलथी बोले जयराज ॥ धनराज क्रोधे धडधडे । लेशुं राज अमें धन वडे ॥ ए ॥ कीर्तिराज बोल्यो मन हसी।मोहनी विद्या माहारे वसी॥तेहनें बलें अमें लेगुं राज । सुण हो ना तुं वत्सराज ॥ १० ॥ वत्सराज तव बोले बोल । तमें त्रण बो मूरख निटो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) ल ॥मांहोमांहे करी संग्राम । तमें नव राखो कुलनी माम ॥ ११॥ कुंकण देश अ श्रनिराम । सोपारा पुर पाटण नाम ॥ तिहां राजा ने चंद नरेश । न्याय करे नरना सुविशष ॥ १५ ॥ साथें लेश सोनश्याघणा। तिहां जश्य ते चारे जणा॥ तेह राजा देशे जस राज। ते जाई होशे नरराज ॥१३॥ वत्सराजनां वयणां सुणी । मनसा कीधी कुंकण नणी ॥ सोपारापुर पाटण जिहां । ते चारे आव्या तिहां ॥१॥ बहु परिवारे ते परवस्या । उतारे जुजुवा उतस्या ॥ राजसनामां चार कुमार । जश् राजाने कीध जुहार ॥ १६ ॥ देखी चकित थया सवि लोक । जोवा मलिया थोके थोक ॥ देखी कुंवरनां सरखां रूप।मनमां अचरिज पाम्यो नूप॥१६॥राजा पूजे प्रेमें करी । केहेना बेटा कोण तुम पुरी॥ ते नृपनी तिहां श्राणा लही। वात पूरवनी मामी कही ॥१७॥ राजा पासे श्राव्या बुं श्रमें । न्याय करीने श्रापो तुमें ॥ कहे राजा तुमें सरिखा सही। अवगुण अंगें दीसे नही ॥१॥ ते माटे अमें करी विचार । देशुं राज्य तणो शिर जार ॥ देवा राज्य तणी करे वात। पण राजाने नावे धात ॥१॥ एम करता हूथा खट मास । ते सवि नाश्हुआ नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) राश || राजा कहे निसुणो मुज वात । नगरमा हि लाखा विख्यात ॥२०॥ रूपवंत धनवंत गुणगेह । गकिामांहि मी वे तेह | सात पोलिने सात प्राकार। हाथी घोमा पायक सार ॥ २१ ॥ घरमांहिं वाडी आराम | आंबा चांपा अति अभिराम ॥ गाम पांचरों ते जोगवे । ति यानंदें दिन जोगवे ॥ २२ ॥ सात भूमि तो आवास | लाखा तिहां रहे मन उल्लास ॥ मंदिर उपर ध्वज हलहले । सो दासी तस पासें रहे ||२३|| शीलतणो गुण तेहने बहु । राजा राणा माने सहु ॥ एक पोहोर राखे पुरुषने । लाख टंका लेइ तेहने ॥ २४ ॥ चार पहोर तस पासें रहे। राज्य पोतानुं ते सुत लदे ॥ ते दिवसें जयराज कुमार । तिहां रहेवानो करे विचार ||२५|| सात पोल समजावी करी । लाख टकानी थेली जरी ॥ लाखा वेश्याने दरबार, वी जो रह्यो तेणि वार ॥ २६ ॥ ढलकती ढाल करें किरपा | मोटां वजडाव्यां निशाण ॥ लाखाने कहे चंपकमाल | एक नर श्राव्यो जाक ऊमाल ॥ २७ ॥ लाखा कहे नरवाहन करी । ते नर लावो मन हित धरी ॥ ततक्षण सामी जश्ने दासि । थायो तेहने लाखा पास ||२८|| लाखा तेहने करी प्रणाम । श्रासन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) बेसण आपे ताम ॥ लाख टका तस आगल धरे । लाखा वचन एवं उच्चरे ॥ ए ॥ लाखा नाम कहाq एम।लाख टका लेईने प्रेम ॥ पोहोर एक राखीजे एहने । पढें पाडो मूकुं तेहने ॥ ३० ॥ एह विचार जो तमने गमे । तो मुज मंदिर रहो रंगमें ॥ एम न रुचे तो सुण महाराज । नथी अमारे तुमशुं काज ॥३१॥ वारु कहे तव राजकुमार । लाखाने मन हर्ष अपार ॥ टका अर्ध नंमारें धरे। नोगकाजें अरधा वावरे ॥ ३२ ॥ नीपाश् मीठी रसवती । बोली लाखा बहु गुणवती॥ जमवा बेसो राजकुमार। पिरसे पाणी हर्ष अपार ॥ ३३ ॥ जमी करी रह्यामन रंग । आप्यां फोफल पान सुरंग ॥ लाखा नाहवाने मंदिरें। मृ. गमदनां उगटणां करे ॥ ३४ ॥ लाखा नाही निर्मल नीर।पहेरी आबांदणी चीर ॥ करी शणगार जिसी उर्वशी । राजकुंवरना मनमां वसी ॥३५॥ कुंवर पासें श्रावी सा जाम । रजनी पोहोर गई तस ताम॥ लाखा कहे निसुणो महाराज। निज मंदिर पधारो राज ॥३६॥ एहएं बोली लाखा नार । ततक्षण तेणें काढी तरवार ॥ में तुजने वेचाती लीध । धन थापीने दासी कीध ॥ ३७॥ कल विकलें लीधी तरवार। तेने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) साही काढ्यो बार॥ बिरुद पोतार्नु राख्युं सही। शील थकी ते चूकी नहीं ॥ ३० ॥ कोकि टका लेई बह साज । बीजे दिने श्राव्यो धनराज ॥ दास दासीने श्रापी धन । सहुनुं राजी कीधुं मन ॥ ३५ ॥ तेहनी सहु प्रशंसा करे । कोमिटका तस आगल धरे॥ जेहने जे आप्यानी रीत । ते देतां मुज वाधे प्रीत ॥४॥ दासीने उलंजो दीध । आप्युं धन सवि पाळ लीध॥ लाख टका तस राखी करी। बीजं पाडं दी, फरी ॥४१॥ तेहने पण काढ्यो कर साहि । पोहोर एक राखी उहाहि ॥मोहिनी मंत्र धरावे जेह । कीर्तिराज श्राव्यो वली तेह ॥२॥ विद्या पाट परंपर तणी। नणी कीधी तेहनी रेवणी ॥ पोहोर एक राखी ते0 गय ।पठी पोताने मंदिर जाय ॥४३॥ ए त्रये सवि विलखा थया । राजाने दरबारें गया ॥राजा जाणी सघली वात । तेमाव्यो तव चोथो जात ॥४॥ वत्सराजने कहे राजान । तुम हाथे बहु विज्ञान॥ ते माटें तमने.कहुं अमें । लाखामंदिर जाज्यो तमें ॥ ४५ ॥ वत्स बोल्यो तव करी प्रणाम ।माहारे प्रनु मोहोटुं काम॥मास दिवसनी मेतल दियो । एम कहीने बीडो कर लियो ॥ ४६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) ॥ दोहा॥ ॥ मंदिर आवी आपणें । मन चिंते वत्सराज ॥ पुरुषचरित्र कोश केलवी । निश्चें लेगुं राज ॥१॥ वेश बनावी जगतनो । गले तुलसीनी माल ॥ हरण चर्म नांख्युं खन्ने । ढलता मूक्या वाल ॥२॥ मधुरो राग बालापतो । हाथे ले वीण ॥ पहेली पोलें पोलिया। ते कीधा लयलीन ॥३॥ अति चतुरा केलवी । लंधी साते पोल ॥ चिहुं दिशि नीतें ऊलहले।आरिसानी ओल ॥४॥ते श्रागल एक पोलियो । लाखाने दरबार ॥ तेहनी हाकें को तिहां जश् न शके नर नार ॥ ५॥ रीकाव्यो रीके नहीं । ते अति कठिण कठगेर ॥रात दिवस रहे जागतो । पण विश्वासी जोर ॥ ६॥ ते आगल धूणी करी। बेगे थइ महांत ॥ वचन विलासे रीजवी। ते कीधो शुन शांत ॥७॥ वातें तेहने रीजवी । पूलाखानी वात ॥ धुरथी मांमी ते कहे। लाखानो अवदात ॥७॥ गाम पांचशे नोगवे । शछि तणो नही पार ॥ यथा तथा बोले नहीं। सूधी समकित धार ॥ ए॥ चांपा नामें मालणी। नित्य जाये तस पास ॥ फूल पगर ले करी। वात करे उदास ॥१०॥ चांपाने एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) दीकरो । अंबराज तस नाम ॥ लघुपणथी को लश गयो । नवि जाणे तस गम ॥ ११॥ पुत्र वियोगें मालिणी । मरवा उत्सुक थाय ॥ दिलासा देश घणा । राखे तस समकाय ॥ १२॥ नारे चांपा मालणि तेह ॥ खरच बरच सवि पूरवे । लाखा गुणनी गेह ॥ १३ ॥ प्रातसमे हवे तिहां थकी । श्रावे निज घर तेह ॥ तजी वेश तापस तणो । अभिनव रचे गुणगेह ॥ १४ ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ घरें आवोजी आंबो मोहो रीयो ॥ए देशी॥ ॥राजकुंवर चित्तचिंतवे । कोश्क करीने उपायो रे॥राज्य ले निज तातनुं । ते दिन सफल गणायो रे ॥रा॥१॥ कानफटो योगी थयो। विनूति लगावी अंग रे ॥ नाव्रे पाडे वही। आव्यो मनने रंगरे ॥ रा॥२॥धूणी घाली बेगे तिहां। चांपाना घर पासें रे ॥ लाख लोक जोवां मल्यां । पाय नमे उबासें रे ॥रा॥३॥ चांपानी पाडोसणी। तिहां श्रावी एक नारी रे॥ श्राखी पोल तणी तेणें।वात सुणी सुविचारी रे ॥ रा॥४॥ चांपा आवी पूबवा । निज नंदन वृत्तांतो रे॥ योगी कहे दिन तीसरे । मलशे सुत गुणवं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५७ ) तो रे ॥ रा० ॥ ५ ॥ वणजारो लेइ गयो । तुज सुतने सुणो माइ रे ॥ कुशल खेम बे तेहने । मलशे तुम सुखदायी रे ॥ रा०॥६॥ गां सणीजां तस तणां । नाम ठाम सविधारी रे ॥ बीजे दिनें निज मंदिरें । श्राव्यो ते जयकारी रे ॥ ० ॥ ७ ॥ नाही धोइने करे । वणजारानो वेशो रे ॥ बुद्धिघणी बे तेहने । पण बे ते लघु वेशोरे ॥ रा॥॥॥ माते घोडे ते चड्यो । घूमे घूंघरमालो रे ॥ वाघो पस्यो जिनवो । गलें मुक्ताफल हारो रे ॥रा० ॥ए॥ तरगस बहु तीरें जयुं । हाथे लाल कबाणो रे ॥ ढाल मेली ढलकती । बोले मेवाडी वाण्योरे ॥रा०॥१०॥ घोडे चमीने उतावलो | आव्यो वड बाजारो रे ॥ जिहां वणजारा उतस्या । ते आव्यो तेपि वारो रे ॥रा०॥११॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जाडे वणजारा तथा । बीधा बलद हजार ॥ बो नाम धरावतो । नायकमां शिरदार ॥ १ ॥ डेरा दीधा बागमें । बलद सरोवर पाल | पायक सकि चोकी करे | चिहुं दिशें मूकी नाल ॥ २ ॥ वत्सराज वली केलवे | पुरुष चरित्र रंग रोल ॥ सांजलतां चतुरा मनें । धिक उल्लोल ॥ ३ ॥ वत्सराज - जिनव करे । पुरुष चरित्र सुविशेष || लेशे राज्य पिता 1 वे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) तणुं । तेमांहि मीन न मेष ॥ ४ ॥ बाब जरी फल फूलनी। माली लाव्यो एक ॥ तेहने देखीावतो। चरित्र करे सुविवेक ॥ ५॥ ॥ ढाल ही॥ वींलीयानी देशी ॥ ॥ लाल लघु लाघवी कला करी। आंखमां घाले तेल रे ॥ लाल मुखें नीसासा मेलतो । नयणे करे जलरेल रे ॥१॥ लाल वाहाली लागे मुज माडली। जेम वाहाली मुज देह रे ॥ लाल रात दिवस मुज सांजरे । जेरुं अति घण नेह रे ॥ लाल वा ॥२॥ लाल संसारमा सगपण घणां । पण स्वारथीयां सब को रे ॥ लाल नरनारी सहु जाणजो। मात समो नही को रे ॥ लाल वा० ॥३॥ आर्या वृत्त म् ॥ जणणीए जम्मनूमि । पछिम निदा सुजासियं वयणं ॥ मण माणुकं । तिन्निवि गिरुयाई गिर श्राइं॥१॥ ढाल पूर्वली ॥ लाल जन्म नूमि मुज सांजरी आव्यो यौवन वेश रे ॥ लाल कुटंब यात्र करवाजणी।हुं श्राव्यो एणे देश रे॥ लाल वाणालाल कर जोडी माती नणे । एवउँ पुःख तुम कां रे ॥ लाल नालेरे पाडे रहे। चांपा मालण मुज मा रे॥ लाल वाणा॥ लाल वणजारा मुज ले गया। नान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( पाए ) पणाथी तेमी रे ॥ लाल विरह पढ्यो माता तणो । कोणें नव कीधी केमी रे ॥ लाल वा० ॥६॥ लाल बेटो करी मोहोटो कस्यो । वणकारे अभिराम रे || लाल श्राव्यो हुं मलवा जणी | अंबराज माहारं नाम रे ॥ लाल वा० ॥ ७ ॥ लाल जइने दीधी वधामणी । चांपाने ते शिवार रे || लाल चांपा यावी दोमती । श्रव्यो सवि परिवार रे || लाल वा० ॥८॥ लाल सहु श्रावी तेहने मल्यां । कोइ न जाणे नेद रे ॥ लाल पुरुष तबी बहोंतेर कला । जाणे सघला नेद रे || लाल वा० || लाल चांपा देखी रे आवती । सामो गयो ततका व रे || लाल मा बेटो सांई मव्यां । जोवे ते बाल गोपाल रे || लाल वा० ॥ १०॥ लाल रुद्धि देखी बेटा तणी । वली देखी तस नुर रे ॥ लाल चांपा मालण चित्तचितवे । प्रगढ्यो पुण्य अंकूर रे ॥ लाल वा०॥ १२ ॥ लाल चांपा सुत तेमी करी । घरे आयो धरी राग रे ॥ लाल नर नारी सदु एम कहे । चांपानं वम जाग्य रे ॥ लाल वा० ॥ १२ ॥ लाल पाडा पा डोशी सहु मध्यां । सबो कहे एह रे || लाल नायक सहुने श्रोलखे । नाम गम गुण गेह रे ॥ लाल वा० ॥ १३ ॥ लाल थांबो कड़े सुपो मातजी । में । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) श्राएयु बहु धन रे ॥ लाल खार्ड पी विलसो घणुं। वालो देही वान रे ॥ लाल वा ॥ १४ ॥ लाल नोजन करी उतावली । लेश चंपकनो हार रे ॥ लाल लाखाने मलवा जणी। हैडे हरख अपार रे ॥ लाल वा० ॥ १५ ॥ बेटो कहे सुणो माडली। शीद पधारशो राज रे लाल ॥ ते तमें साचुंनांखजो । शे कामें शे काज रे ॥लाल वा०॥ १६॥ लाल जाशं लाखाने मंदिरें। जेहशुं अतिघण प्रेमरे ॥ लाल देशु तेहने वधामणी । ते सुख पामे जेम रे ॥ लाल वाण ॥ १७ ॥ लाल लाखा ते कोण जाणियें । सुत कहे कहो मुज वात रे ॥ लाल चांपा मांडी धुरथी कहे। लाखानो अवदात रे ॥ लाल वा ॥ १०॥ ॥ दोहा ॥ ॥अंबराज पोतें रचे। फूल तणो एक हार ॥माताजी तस श्रापजो । कहेजो माहारो जुहार ॥१॥ ह. रख धरती नीसरी। आवी लाखा पास ॥ दीधी पुत्र वधामणी। लाखामन उदास ॥२॥ हार देखीने अ. जिनको । लाखा मन बहु रंग ॥ कहो बेनी केनो रच्यो। अति सुरजी ने सुरंग ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१ ) ॥ ढाल सातमी ॥ राग केदारो ॥ ॥ मुज नंदन अंबरा जिये रे । ए गूंथ्यो वर हार ॥ लाखा कहे माली नही रे | बे को राजकुमार रे ॥१॥ बेनी सुप तु माहारी वा । तुं मुज सखी विख्यात रे ॥ dol सु०॥ यो गयो परदेशमां रे । रुमो ने रूपवंत ॥ ए बाई सही जाणज्यो रे । मुज सुत बहुगुणवंत रे ॥ बनी सु०॥२॥ जलें बाइ तुज उपन्यो रे । सुत थाव्ये आनंद | ताहारी सवि आशा फली रे । दूर गयां दुःख द्वंद रे ॥ बे० ॥ ३ ॥ चांपा यावी निज मंदिरें रे । सुतने कहे सवि वात ॥ त्र्यंबराज वलतुं जणे रे । जलुं कीधुं तमे मात रे ॥ ० ॥ ४॥ नायक विज्ञानें करी रे । फूल तणो वरवेश ॥ फूल तणी सामी रची रे । कंचुक र सुविशेष रे ॥ बे० ॥ ५ ॥ पंच रंग फूल तणी करे रे । रचनानी जली जांत । नरनारी मोही रहे रे । तेहनी देखी जात रे ॥ बे० ॥ ६ ॥ मृगमद अमरने जलें रे । ते वास्यो जली रीत ॥ माताने कहे आपजो रे । लाखाने घरी प्रीत रे ॥ वे ० ॥ ७ ॥ लाखा अंगें पढ़ेरीने रे । तुजने देशे गाम ॥ के यार तुम निनवं रे । के देशे बहु दाम रे ॥ बे० ॥ ८ ॥ ते मत लेजो माताजी रे । द्रव्य तपी नहीं खोड ॥ जो हुं बेटो ता 1 For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) हरो रे । खाणुं धननी कोड रे || बे० ॥ || लाख टका लेश करी रे | नरने राखे तेह | पोहोर लगी केणे कार रे । ते तमें पूबजो एह रे ॥ बे० ॥ १० ॥ चांपायें गल धरयो रे । फूल तो शणगार ॥ पढेरी मन रीजी घएं रे । हैडे हरख पार रे ॥ बे० ॥ ११ ॥ माग माग लाखा जो रे । तुजने देतं बहु दाम || के भूषण देजं जिन रे | के कोह रुकुं गाम रे ॥ बे० ॥ १२ ॥ चांपा कहे मुज नंदने रे । आएयुं द्रव्य अपार ॥ पण एक पहोर नरने तमें रे । राखो कवण विचार रे ॥० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पोर पढी राखो नहीं । नरने लाखा राय ॥ एह वात मुजने कहो | मुज मन चरिज थाय ॥१॥ ए माउं बूं तुम कने । ते तमें करो पसाय ॥ महेर करी मुज उपरें । मुज मन वंबित थाय ॥ २ ॥ फिट तुं मूंगी बहेनमी । तें शुं माग्यं एह ॥ एम करतां तुजने रुचे । तो हुं संजला तेह ॥ ३ ॥ एक दिन मुज ज्ञानी मब्यो । में पूर्वी तस वात ॥ पूरव जवनो माहरो । को सघलो अवदात ॥ ४ ॥ ज्ञानीयें मुजने कह्या । पूरव जव संबंध । ते सुणजो मन थिर करी । मूकी घरना धंध ॥ ५॥ I Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) ॥ ढाल थाउमी ॥ हमीरानी देशी॥ ॥विंजावन जंगल वसे । तिहां विंध्याचल गिरि राय॥सखी रे॥जार श्रढार तरुवर तणी। फूलि रही वनराय ॥ सखी रे ॥ सुणो वात सोहामणी। सुणतां आणंद थाय ॥ सखी रे॥१॥ ए आंकणी॥ वाघ सिंह ने रोकमां । साबर वानर रीउ॥सखी रे॥जंगली नर हबसी रहे। काला मोटा निछ॥ सखी रे॥॥॥ रेवा जल खलहल वहे । जेहन निर्मल नीर ॥सा पंखी घणां क्रीमा करे । सारस मोरने कीर ॥ सखी रे ॥३॥ सुणोण ॥ रात दिवस सालिर चरे। हाथीनां बह वृंद सखी रे ॥ रेवा जलें जीले सदा। मन धरता श्रानंद ॥ सखी रे ॥४॥सुणो॥ मातो मद मत्त घूमतो। तेणें वने एक गजराय ॥सखी रे॥सोहाथणीशुं परवस्यो । मोहोटो कोमल काय ॥ स०॥५॥ ॥सु॥ ते गजने एक हाथणी । टोलानो शणगार ॥स॥ तेहथी अलगो नवि रहे । पूरव प्रीति अपार ॥ सखी रे ॥ ६॥ सु० ॥ बेहु जणां जलक्रीडा करे। नेलां चरवा जाय । सखी रे ॥ हाथणी बेसे जेणे थलें । गज बेसे तेणे गय ॥ सखी रे ॥ ७॥ सु०॥ सालीर चरी पाडो फरे। टोला सहित गज राय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) सखी रे ॥ अन्य दिवस ते हाथीयो । मदवश महातो थाय ॥सणासुणोते हाथणी मेहली फरी। बीजी केडे धाय ॥ सखी रे॥मुलगी जे जे हाथणी। विरहें व्याकुल थाय ॥ सखी रे ॥ ए॥ सुणो० ॥ कोतरमांहि क्रोधे पमी। वाहलो ते वैरी थाय॥सखी रे॥ क्रोध तणां फल कमुवां। क्रोधे फुगतें जाय॥सखी रे ॥ १०॥सु॥ कोतरमांहि पमतां थकां । प्राण गया तेणी वार ॥सखी रे॥तेह हाथणी शुज नावथी। हुं हु३ लाखा नार ॥ सखी रे ॥ ११॥ सुणो० ॥ हाथीनो जीव तिहां थकी। मरीने माणस थाय ॥ सखी रे ॥ मलशे ते तुजने सही। एम करतां सुखदाय॥ स० ॥ १२ ॥ सुणो० ॥ खावा पीवा नित्य नव नवां। नित नित नवला मित्त ॥सखी रे ॥ पण ते गज नवि विसरे । दण दण श्रावे चित्त ॥ सखी रे ॥ १३ ॥ सुणो ॥ शील पालुं मन दृढ करी। बेठी देखें दान ॥ सखी रे ॥ रात दिवस रहुं मोहोलमा । हाथी. नुं मुज ध्यान ॥ सखी रे ॥ १४ ॥ सुणो० ॥ ॥दोहा॥ ॥ वात सुणी लाखा तणी। मालण आव। गेह ॥ बेटाने कहे धुरथकी। संजलावे धरी नेह॥१॥ वे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) चण वस्तु तणे मिशें । घोडे थइ असवार ॥ तांडु साथें वेश्ने । जिहां श्राव्यो बाजार॥२॥नाउँचोडं चूकवी। निज घर आव्यो तेह। हरख धरीने वली करे । पुरुष चरित्र वली एह ॥३॥ चितारो थर संचरे । श्राव्यो चहुटामांहि ॥ अभिनव रूप चित्री तिहां। मांडे धरी उछाहि॥४॥ फिरंगी कीधा फूटरा । विलंदा अति लाल ॥ शिर टोपी मदफू तणी। ढलता कानें वाल ॥५॥ लाखानी दासी तिहां । चंबेली जस नाम । चहुटे दीगे तेणीएं। चित्र कला अनिराम ॥ ६ ॥ लाखाने दासी कहे । तेहनां बहु वखाण॥चित्रशाली चित्रावीए । ते जे चतुर सुजाण ॥७॥ तेमी श्राएयो तेहने । मंडाव्यां चित्राम ॥ चतुरचितारा चित्रजे। देशुं तुज बहु दाम ॥ ७ ॥ चितारो निज चातुरी । प्रगट करीने ताम ॥ विंकावन रेवा लिखे । विऊगिरि श्रनिराम ॥ ए॥ ॥ढाल नवमी॥ ॥रामचंडके बाग, चांपो मोरी रह्योरी ॥ ए देशी॥ ॥श्रांबा चांपा केलि ।रायण रुकवली ॥ नालेरीने प्रग। लोल लविंग ललीरी॥१॥ अगर तगर नारिंग। दामिम प्राख खजूरी ॥ नाग पुन्नाग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) प्रियंगु । करमदी फणत बीजूरी॥॥ ताल तमाल हिताल । बोर कदंब हरी ॥ चंबेली रायवेली । बहुफली फूली नरी री ॥३॥ वाघ सिंहनां रूप । सावर रोज ससा री॥हरिण मानवनां रूप । साथै तेहवी वसा री॥४॥रेवा जलमांहि जोर । गज बहु केलि करे री॥निज निज टोला साथ । सालीर सरस चरे ॥५॥मोहोटो काजल काय । जीते हाथी करे री॥सो हाथणी परिवार । कुतूहल केलि करे री। ॥६॥ एक हाथणीने तेह । निज मुख कवल दीये री॥ हाथणी आपे जेह। निज मुख कवल लीये री ॥७॥ ते हाथणी\ नित्य। गजनेप्रीति घणीरी॥अन्य दिवस गज राज । आवे गण नणी री॥॥पाणी पीवा काज।गजथी पूर टली री॥रजसपणे गजराज। जाणे टोलें मलीरी॥णा मदमातो गजराज । बेह पखे दान करे री॥देखी निज परिवार।मनमां गर्व धरेरी ॥१॥ मेहली गयो मुज नाह। खबर न कांश करी री॥ रोवे गजणी तेह । नयणां नीर नरीरी ॥१९॥ रेवा नदीने तीर। उनी तेह रडेरी॥जीनीनेखड साथ । खड हड तेह पडे ॥१२॥ पमतां सम ततकाल । तेहनां प्राण गयारी॥ नमकपणाने जाव । शुन परिणाम थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) यारी ॥ १३ ॥ हवे ते चित्रक राय। निज चतुराश्करी री॥गजणी पासें गज रूप । लु पड्यानुं करे री॥ ॥ १४॥ एहवो जीते जाव।लखीने तेह गयो री॥निज मंदिर जणी तेह ।मनमां हर्ष थयो री ॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥विंध्याचल रेवा नदी । तेहनां करी चित्राम ॥ घरे श्राव्यो पोता तणे । विण मागे तस दाम॥॥हुई चरित्र करतां थकां। अनुकरमें एक मास ॥राज स. नायें श्रावीने। नृपने करे अरदास ॥२॥जाजं लाखा मंदिरें। जो तुम होय श्रादेश ॥ बीडं श्रापी तेहनें। हुकम करे सुनरेश ॥३॥श्राव्यो लाखा मंदिरें। जुगतीशंकरी जुहार ॥ लाख टका आगल धरी। बोल्योराज कुमार॥॥श्राव्या दक्षिण देशथी। जोता पुर वन गाम ॥ सोपारापुर पाटणे। सुएयु तमारं नाम ॥५॥तेणे कारण जोवा नणी । तुम घरे कस्यो प्रवेश ॥ दर्शन दीतुं तुम तणुं । अमने हर्ष विशेष ॥६॥मंदिर दीगं तुम तणां । दीळ तुम मुख नूर ॥ एम कहीने पालो फरे । अमने थाय असूर ॥ ७॥ लाखा मनमां चिंतवे । ए नर चतुर सुजाण ॥ घमी बे घडी जो ए रहे। तो मुज सफल विहाण ॥ ७॥ देखी तेहनी चातु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) री। श्रने वली वयण विलास ॥ चकित थ५ लाखा जणे । स्वामी सुणो अरदास ॥ ए॥ ॥ ढाल दशमी ॥चोपाश्नी देशीमां ॥ ॥ लाखानामंदिर उपरें। चित्रशाली नर एक चितरे ॥ लाखा बोली सुण तुं नूप । जोवा सरिखां उपर रूप ॥१॥ लाखानो ते साही हाथ । कुंवर कहे तमें श्रावो साथ। राजकुंवरने लाखा नार ॥ बेहु श्राव्यां साथे परिवार ॥॥ चित्र देखीने करे वखाण । लाखा मनमां थश्हेराण॥दीवा करी साथै बेचार। लाखा निरखे वारो वार ॥३॥ विध्याचलने रेवा नदी। हाथी नव विसारे कदी ॥ ए जोतां आवे जेटले। एक पोहोर वाग्यो तेटले॥णालाखा मनशंथरएकांतचित्र जोवानी सबली खांत।गज टोबुंदी चितस्युं। लाखा मन जोवानुं कयुं॥५॥हाथी टोनुं निरखी करी।मन हरखी लाखा सुंदरी॥गजणी साथें गज एक पड्यो । ते देखी कुंवर लम थड्यो॥६॥ध्रुजीने ते धरणी ढले । लाखा नयणे यांसू करे॥पुरुष चरित्र का, तान। हुउ अचेतन नाठी शान ॥ ॥ लाखा मनमां चिंते एम॥राजकुंवरने थाई देम॥सज थावाना करे उपाय। फूल वींजणे वीजे वाय ॥ ॥ उसम वेसड की Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) धां घणां । मंत्रयंत्रनी नही कश्मणां ॥ एम करतां तेहने उपचार।त्रण पहोर वाग्या तेणि वार ॥॥ लाखाने तव चिंता थइ । ए शुं दैवें कीधुं न ॥ आंख उघामी जो जाम । लाखा मनमा हरखी ताम॥१॥ मुखे मेहले मोहोटा निःश्वास । राजकुंवर मन थयु उदास ॥ लाखा कहे खामी तमे सुणो । एहनो मुज अचंजो घणो ॥१९॥पोहोर त्रण्य वाग्या जेटले ।राजकुंवर बोल्यो तेटले ॥ पूरव नव मुजने सांजस्यो। ए गज मरीने हुँ अवतस्यो॥१॥ते हाथणी मुज विरहे मुश् । हुँ नवि जाणुं कोण गति ग३॥ कहे लाखा सुणो कुमार । ते हाथणीनो मुज अवतार ॥१३ ॥ लाखा कहे मुज हरख अपार, पूवनो तुं मुज जरतार ॥ मन दृढ करीने पाट्युं शील । तेणें कारण हुँ पामी लील ॥१४॥ मन मान्या मनोरथ फल्या।मुह माग्या पासा मुज ढल्या ॥ हश्मामांहे धरी घणो उत्साह । चिहुं कलशे कीधो विवाह ॥ १५ ॥ लाखा परणी मन रंग रखी। बेहुनी आशा सघली फली॥प्रातसमे बेसी गजराज। राजसजायें आव्यो वत्सराज ॥१६॥ लाखाने ते तेडी करी।राजा आगल नेट बहु धरी॥राजायें तस दी, राज।सबल वधारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) तेहनी लाज॥१७॥ लाखाने तेमी निज पुरें। नित नित नवला उत्सव करे॥लाखाने पटराणी करी जाणे ईजाणी अवतरी ॥ १७॥ पंच इंडियना विलसे लोग। सरखे सरखो लहे संयोग॥ वत्सराज मोहोटो पाल। अहोनिशधर्म तणो ने ढाल ॥१५॥ लाखायें प्रसव्यो एक पुत्र । जे राखे निज घर- सूत्र ॥ पुत्र हु बहु गुगर्नु धाम। हंसराज तसदीधुं नाम ॥२०॥ लीधुं राज्य प्रपंचें करी। जसनी वात जगमां विस्तरी॥ वत्सराज बेबुझि निधान । अनम सवे प्रणम्या राजान ॥१॥ एक दिन वत्सनृप लाखा नारि । बेह बेग गाँख मजार॥ वात विनोद करे मन रंग। हंजराज बेटो जत्संग॥२२॥ लाखा कहे स्वामी सुणो वात। शास्त्रे स्त्री चरित्र विख्यात ॥ अनेक शास्त्र दीगं में नएयां । पुरुषचरित्र दीग नवि सुण्यां॥ २३॥ तव राजा मरकलडे हस्यो।राणी कहे ए कारण किश्यो॥ कहे राजा तमें राणी सुणो। नर नारीथी अधिको गणो ॥२॥ पुरुष चरित्र में बहु केलवी। में तुज प्रत्ये घणुं जोलवी ॥ तुजने पण में धूती खरी। परणीने पटराणी करी ॥ २५॥ तुज श्राव्ये आव्युं मुज राज । सिक थयां मुज सघलां काज॥वात पूरवनी मांझी कही। तेहना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) चित्तमां बेठी सही ॥ २६ ॥ वात सुणीने थइ हेराए । लाखा नृपनां करे वखाए ॥ चतुराई कीधी अति जली । मुज लाखानी आशा फली ॥ २७ ॥ कूड कपट में कीधां घणां । में धूतायां मन जन तणां ॥ मृषावादनां कीधां पाप | राणी गले कहे निज पाप ॥ २८ ॥ लाखा कड़े स्वामी वमवीर । दरियानी परें थया गंनीर ॥ एटला दिन तमें न कही वात । धन्य पिताने धन्य तुज मात ||१|| त्रण काल जिन पूजा करे । अहो निशि ध्यान धरमनुं धरे ॥ दानें पोषे पात्र छानेक । चतुरा अधिक विवेक ॥ ३० ॥ श्रुत सागर बे नामें गणधार । ते बे विद्याना नंगार ॥ वन पालक श्रीने कड़े । ते निसुणि राजा गहगहे ॥ ३१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ राजा सबल याडंबरें | तेमी सवि परिवार || राजा गजथी उतरी । प्रणमे वारोवार ॥ १ ॥ लाखा राणी रंगशुं । प्रणमी गुरुना पाय ॥ श्रापोपुं धन्य मानती । बेठी रुडे वाय ॥ २ ॥ जवि जनने हित कारणें । गणधर ये उपदेश || राजा राणी सांजले । मन धरी धर्म विशेष ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) ॥ ढाल अगीयारमी ॥ साहेलडीनी देशी ॥ ॥हवे श्रावी निज मंदिरें॥सादेलमी रे॥राणीने कहे सुविचार तो॥हंसराज मोहोटो थयो।साहवे सीजें व्रतनार तो ॥१॥ राज कि सुख जोगव्यां ॥ सा ॥ ते सवि पुण्य पसाय तो॥ धर्म कुटुंब थावी मल्युं ॥ सा० ॥राणी सुत सुखदाय तो ॥२॥ जे अवसर नव उलखे ॥ सा० ॥ ते नर कहीयें गमार तो ॥ अवसर श्राव्यो जालवे ॥ सा ॥ ते नर घर शणगार तो ॥३॥ शुज लग्ने शुभ मुहरतें। सा० ॥राज्य थापी हंस राज ता॥ धर्म धन खरची घj ॥ सा० ॥ व्रत लीए नृप वत्सराज तो ॥४॥ लाखा पण व्रत आदरे ॥ सा० ॥ बहु नारीनी साथ तो॥ माया ममता परदरी॥सा॥ लोच करे निज हाथ तो ॥५॥निज गुरुनी सेवा करे ॥ सा ॥जणी. यां अंग अग्यार तो॥ जूऊयां बूजयां उगस्यांसा॥ सफल कीधो अवतार तो ॥६॥ अति माहापण जाणी करी ॥ सा ॥ सोंप्यो गबनो जार तो ॥ बहु परिवारें परवस्या ॥सा ॥ करे अनियत विहार तो॥ ॥ ॥ चतुराश् एहनी खरी॥ सा०॥साध्युं श्रातम काज तो ॥ दडे अणसण श्रादरी ॥सा ॥ मुक्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) पोहोता रुषिराज तो ॥ ८ ॥ लाखा पण तप जप करी ॥ सा० ॥ पोहोती स्वर्ग मकार तो ॥ अवसर सघलो साचवे ॥ सा० ॥ सुणजो सदु नर नार तो ॥ ॥ गणिकाने कुल उपनी ॥ सा० ॥ पामी धन यौवन्न तो ॥ धन्य ते लाखा सुंदरी ॥ सा० ॥ राख्युं शील रतन्न तो ॥ १० ॥ उत्तमना गुण गावतां ॥ सा० ॥ प्रह जगमते सूर तो ॥ एम जाणी में वरणव्या ॥ सा० ॥ लाखाना गुण पूर तो ॥ ११ ॥ पंमितें ते वखाणीयें ॥ सा०॥ जे होय अवसर जाए तो ॥ अवसर आव्यो जालवे ॥ सा० ॥ ते कही एं चतुर सुजाण तो ॥ १२ ॥ कप्पम वाणिज्यमा रही ॥ सा० ॥ में कयुं पुरुष चरित्र तो ॥ लाखानी पण वारता ॥ सा० ॥ मंगलें कही सुवि चित्र तो ॥ २३ ॥ श्री विजयसेन सूरी सरु ॥ सा० ॥ तपगछनो शणगार तो ॥ तेने राजे रंगें करी ॥ सा० ॥ वात कही सुविचार तो ॥ १४ ॥ श्री विजयदान सूरीसरु ॥ सा०॥ उत्तम जेहनुं नाम तो ॥ मुनिवरमांदे वखाणी एं ॥ सा० ॥ जाग्यवंत गुणधाम तो ॥ १५ ॥ तेहना शिष्य सोहंकरु ॥ सा० ॥ श्रीराज विमल उवजाय तो ॥ तेना शिष्य वखाणी एं ॥ सा० ॥ श्री मुनि विजय उवकाय तो ॥१६॥ तेना शिष्य सोहामणा ॥ सा० ॥ संवेगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) शिरदार तो ॥ श्री देव विजय वाचक वमा ॥ सा॥ उस वंश शिणगार तो ॥१७॥ उस वंश कुलें उपना ॥ सा० ॥ निज गुरुने सुखदायी तो ॥ श्रीमान विजय पंडित वरु ॥ सा॥ दोलत अधिकीसवा तो ॥१॥ गुरुनामें सुख उपजे ॥ सा० ॥ मति बुधि सघली आवि तो ॥ तस शिष्य दीप्ति विजय नलो ॥ सामा रास रच्यो शुन नाव ता ॥ १॥ ॥ निज शिष्य धीर विजयतणुं ॥ सा ॥ वांचवानुं मन जाणी तो ॥ रास रच्यो रलियामणो ॥ सा० ॥ मनमा उलट आणी तो ॥ २० ॥ संवत सत्तरें जाणजो॥ सा ॥ वरस ते उगण पचास तो ॥ श्राशो शुदि पूनम दिने ॥ सा॥ ए में कीधो रास तो॥१॥ ॥ इतिश्री मंगल कलशरासे पुरुषचारत्र लाखा शीलवर्णनोनाम द्वितीय खंडः संपूर्णः ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ उोणी नगरी तण।।(अने) चांपापुरीनी जेह॥ मूलथकी पोता तणी । वात कही सवि तेह ॥१॥ सुरसुंदर राजा तण।। त्रैलोक्यसुंदरी नाम ॥ में नामे परणी करी। मूकीआव्यो आम ॥२॥वात सुणी ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) रखी घणुं । करी कारिमो क्रोध ॥ एहने बांधी राखजो। जे होय सबलो जोध ॥३॥ जय ब्रांत नीशालिया।नाग दह दिशें जाय ॥ धनदत्तसाहें सांजट्यु। करे ते हाय वराय ॥॥ एह अमारा घर तणी। एह. वी हलवी वात ॥करे विटलज वाणीयो। एहने मारो लात ॥५॥ सुनट सघला तिहां धस्या।साहवाने ततकाल ॥ सामंतने कहे सुंदरी। तमें साहो सुकुमाल ॥६॥ मंगल मन बीहिनो घणो । (मुज) पूरव लाग्यां पाप ॥ है है ए शुं थायशे। रोशे मायने बाप ॥॥ हाथ कालीने कुमरनो।सुंदरीने सामंत॥ ए त्रणे उपर चढ्यां । उरडामांहि एकांत॥॥ सुंदरी कहे सामंतने। सुणजो तमें निरधार ॥जे में परण्यो प्रेमशुं। ते सहि ए जरतार॥ए॥जा तमें एहने घरे । द्यो वधामणी सार ॥ मात पिताने सुख करी।श्राणो पंच तुखार ॥ ॥ १० ॥ सामंतने तस मंदिरें, वरतावी जयकार ॥ रथनूषण राजा तणा। लावो पंच तुखार ॥११॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ बिंदलीनी देशी॥ __॥ सिंह सामंत एम बोले।सुंदरी नहीं को तुम तोले हो ॥ सुंदरी वयण सुणो ॥ तुम हैमानो नहीं पार, तमें बुद्धि तणां नंमार हो ॥ सुं॥ १॥ एटला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) दिन गर्नु राख्युं । हवे मुज आगले तमें नाख्युं हो ॥ सुं० ॥ तमे मुजने जस बहु दीधुं, पोतानुं कारज सीधुं हो ॥ सुं॥२॥ तमें दासी लीउ दशवीश । जे खीजमत करे निश दीस हो ॥ सुं॥ हवे मेहलो तमे नरवेश, पहेरो कामिनीनो वेश हो ॥ सुं०॥ ॥३॥ तेणी वेला तेणी वार। सुंदरीये कीधोशणगार हो॥सुंगासासु ससरा पासें आवे । जरी थाल मोतीडे वधावे हो ॥ सुं०॥४॥देखी सासु ससरो मन हरणे । हरखें आंसुमां वरसे हो ॥सुं०॥ राजाएं करीय प्रसाद । दीधा मोहन प्रासाद हो।सुं॥५॥लही मातानो श्रादेश । ते मोहलें करे प्रवेश हो॥सुं०॥ हवे विषय तणा सुख विलसे । तन मन तेहy वली उबसे हो ॥ सुं॥६॥पुण्यें मन्यो संयोग । पुण्यें मन वंडित जोग हो ॥सुं०॥ कीजें पर उपगार । पाम्यानुं एहिज सार हो ॥ सुं० ॥ ७ ॥घर सारं दानज दीजें । मानवजव लाहो लीजें हो ॥सुं॥पुएयें श्रावे चतुराई। पुण्ये विलसे उकुरा हो।सुंाज॥धनदत्त सुत नित्यमेव । करे मात पितानी सेव हो ॥ सुं॥नृप तनया घर काज । करती नाणे मन लाज हो॥सु०॥ए॥ हवे धनवती धनो साह। नित धरम करे उछाह हो॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥सुं० ॥ धरम कुटुंब सहु मलिलं । परनवनुं पुण्य फलियुं हो ॥सुं॥१॥ ते सासु तणे परिवारें। दिन प्रतें देव जुहारे हो ॥ सुं० ॥ मुनिवरने दीए दान । शुरू नावें पढ़ें जमे धान हो।सुं॥११॥उत्तम कुल अनुसारें।धरणीधर लाज वधारे हो॥सुं॥दीप्तिविजय एम बोले। नहीं को गुणवंतने तोले हो ॥सुं०१२ ॥दोहा॥ ॥श्रापी सिंह सामंतने । पुरुष तणो ते वेश ॥ घोमा हाथी दत्तना । मोकलावे निज देश ॥१॥ मणिमय थाली वाटका । रथ नूषण जे दान ॥ए देज्यो मुज तातने । एम कही कुंवरी निधान ॥२॥ धनदत्त सुत कागल लखे। देशबहु उपमान ॥ सिंह कहे ते मानजो । तमें बो बुझिनिधान ॥३॥ संप्रेमवाने निसख्या । नारीने जरतार ॥ सिंह सामंतने सोंपीया । साथै बहु परिवार ॥ ४॥ कुंकुमनुं टीबुं करी। पापी श्रीफल सार ॥ नृप तनया एम वीनवे। नांखे आंसु धार ॥५॥ ॥ ढाल बीजी॥ नावननी ॥ कागलीयो किरतार नणी। शी परें लखुं रे ॥ ए देशी॥ ॥ चंपापुरीना देव जुहारजो रे । तिहां लेजो मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ज नाम ॥ पडे राजापासें जाश्ने रे । करजो चरण प्रणाम ॥ १॥ सिंह सामंतने कुंवरी वीनवे रे।कहेजो मुज आशीष॥पीयरीयां मुज कण कण सांजरे रे। ते जाणे जगदीश ॥२॥ सिं० ॥ ए आंकणी ॥ घोमा हाथी नजरें देखामजो रे । कहेजो सकल विचार ॥ वली कहेजो तमें मारा तातने रे। तम पुण्ये मल्यो जरतार ॥३॥ सिं०॥ माहारी माताने पगे लागीने रे। कहेजो एक संदेश॥मात प्रसादें मुज सुख उपन्युं रे। पुःखळुनहीं लवलेश ॥४॥ सिं० ॥ धन्य वेला वली धन्य तेहज घडी रे । जे नजरें देखीश माय ॥ संकट आवे राखी रुडी परें रे। ते केम मात विसराय ॥५॥ सिंग ॥ बीजी सघली उरमान मायने रे। कहेजो तमें आशीष ॥ तेह तणा गुण मुजने सांगरे रे । संनाहं निशदीस ॥६॥ सिंग ॥ सहियर सघली. ने सुख पूरजो रे । कहेजो कुशल ने खेम॥मुज हैडाथी तमें नवि वीसरो रे । तमें धरजो बहु प्रेम॥७॥ ॥ सिं० ॥ ढुं अनागिणी सरजी पापणी रे । नहीं मुज बांधव कोय । जे बांधव आवे मुज तेमवा रे। हरख धरीने सोय ॥ ॥ सिं० ॥ तमें तिहां जश आणुं मोकलावजो रे। पियर आवे चित्त॥सिंहजी सूडा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (SU) जला निज देशना रे । नहीं परदेशी मित्त ॥ ए ॥ ॥ सिं० ॥ सिंह सामंत हवे तिहांथी सिद्धि करे रे । आव्यो चंपावती मांहि ॥ राजा सुरसुंदरने नेटियो रे । हैडे घणो उत्साह ॥ १० ॥ सिं० ॥ सहुने दीधी रुमी वधामणी रे । हरख्यो सवि परिवार । पुरुषवेष प्यो कुमरी तणो रे । देखाड्या तूखार ॥ ११ ॥ सिं० ॥ दिन दश राखी राजा वीनवे रे ॥ तमें सिद्ध करो उद्रेण ॥ मंगल जमाइ ने मुज नंदीनी रे । तेवा कारण तेण ॥ १२ ॥ सिं० ॥ लेइ वधामणी सिंह सामंत वढ्यो रे । उझेपी जणी ताम ॥ वाटें जातां शकुन जला थया रे । मन हरख्यो - जिराम ॥१३॥ सिं० ॥ अनुक्रमें श्राव्या नयरी उजेपीएं रे । धनदत्त साह ने गेहे ॥ धनदत्तसाद सुत सहु आवी मल्या रे । नृप कुंवरी गुणगेह ॥ १४ ॥ सिं० ॥ नृप कुंवरी मनमां दरखी घणुं रे । निसुणी आणानी वात | हवे मलशुं जश्ने निज तातने रे । वली नजरें देखिश मात ॥ १५ ॥ सिं० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ धनदत्तसाह ने वी नवे । सिंह नामें सामंत ॥ वहू सहित तमे मोकलो। तुम बेटो गुणवंत ॥ १ ॥ तुम Jain Educationa International - For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ज) सुत मुख जोवा तणे । राजाने बहु कोम ॥ ते माटे तमे मोकलो। विनति करूं कर जोम॥२॥शेने तव तिहां हा जणी । सुतनुं जाणी मन्न ॥ एहने सुमनें राखजो। करजो पुत्र जतन्न ॥३॥सुरसुंदर राजा प्रतें। कह्यो घणो जूहार॥ मली करी वेहेला श्हां। पधारजो निरधार ॥४॥वैरिसिंह राजाप्रते, मंगल मलवा जाय ॥ श्राझा मागी तेहन।। नम्या तातने माय॥ ॥५॥ माताने चरणे नम्यो। माता दिये श्राशीष॥ पुत्रजी वेहेला आवजो। वह सहित सुजगीश ॥६॥ जला शकुन ले करी। शुजलगनें शुजवार ॥चंपावती नगरी जिहां । श्राव्या हरष अपार ॥ ७॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥रे बेल बबिला नेमजी ॥ ए देशी॥ ॥वात सुण। मन हरखीयो । सुरसुदर राजानोरे हो॥सामैयुं सबढुं करे।गोरी करे गीतगानो रे हो॥१॥ सहेर सवे शणगारीयुं। शणगास्यो बाजारो रे हो। घर घर इयां वधामणां । जाट नणे जयकारो रे हो॥वाण ॥॥स्वदेशनां परदेशनां । नरनारीनां वृंदो रे हो।धन दन्ट मानने निरखवा । उपन्यो अति आनंदो रेहो॥ वा ॥३॥ मंगल गजश्री उतस्यो । नृपने कीधोप्रणामो रे हो ॥ मंगलकलशने देखीने। नृप मन ह. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) I 1 रख्यो तामो रे हो ॥ वा० ॥ ४ ॥ निज घरमांहि पधरावीयो | वाजते निशाणो रे हो | कुंवरी कलंक उतारीयुं । वत्र्त्यो जयजयकारो रे हो ॥ वा० ॥ ५ ॥ कुबुद्धिने मारवा तणो । राजायें दीधो आदेशो रे हो ॥ धनदत्त सुतें मूकावीयो । उत्तम पुरुष सुविशेषोरे हो ॥ वा० ॥ ६ ॥ यतः ॥ उत्तम अतिहि पराजव्यो । हैडे न धरे डंश ॥ बेद्यो नेद्यो डुव्यो । मधुरो वाजे वंश ॥ १ ॥ सऊन ते सही जाणजो। जो रुसे सो वार । यं न होवे लींबो । जे जाति सहकार ॥ २ ॥ अगर त अनुसार | पी लंतां परिमल दीये ॥ ते सजन संसार । जोया पण दीसे नहिं ॥ ३ ॥ ढाल पूर्वली ॥ समकित धारी जे होवे । तेतो सूधुं विचारे रे हो | जीवने सुख दुःख उपजे । कर्मत अनुसारें रे हो ॥ वा० ॥ ७॥ नृप कहे एह कुबुद्धिनुं । मुख दीठे बहु पापोरे हो ॥ विष अवगुण ते पापीयें । कुंवरीने कीध संतापो रे हो वा ॥ ॥ ते माटे श्रम देशमां । रहें न पामे एहो रे हो ॥ सुरसुंदरें निज देशथी । काढ्यो साही तेदो रे हो ॥ वा० ॥ ए ॥ वे अपुत्री नृप चिंतवे | देश मंगलकलशने राज्य रे हो ॥ पंच महाव्रत श्रादरी । साधुं श्रातम काज रे हो ॥ वा० ॥ १० ॥ धनद । " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) त्तशाह अने धनवती। सपरिवार तेडावी रे हो॥व्रत खेवाने सङ थयो। सहुनुं मनहुँमनावी रे हो॥वा० ॥ ११ ॥ मंगल कलशने प्रेमशुं । थाप्यो पोताने पाटें रे हो । सुरसुंदर राजाजणे।तुमें चालजो धर्मनी वाटें रे हो ॥वा ॥१॥श्रीयशोज सूरि कने । नृप व्रत लीए उबरंगेंरे हो।धनदत्त शाहने धनवती।तेह पण व्रत लीये रंगें रे हो ॥वा० ॥ १३॥ गुरु आदेश लही करी। सुरसुंदर ऋषिराय रे हो । तीरथ यात्रा करवा नणी। ते परदेशे जाय रे हो ॥ वा० ॥१४॥नगर पिंमोल ते थक्ष रहे । ते केम कहीयें साधो रे हो ॥ एक गमें रहेतां थकां । थाये संजमनो बाधो रे हो ॥ वा ॥ १५ ॥ राणी त्रैलोक्यसुंदरी । पुण्यवती श्रनिरामो रे हो ॥ प्रसव्यो पुत्र पुरंदरु। जयशेखर जस नामो रे हो ॥ वा० ॥ १६ ॥ व्रत ली, सुरसुंदरे। देशमंगलने राज्यो रेहोसीमामा राजा कहे । ए शुं कीधुं अकाजो रे हो ॥ वा ॥ १७ ॥ ए परदेशी वाणियो । अंग देशनो रायो रे हो॥नाम धरावे एहq । श्रम जीवित धिग थायो रे हो ॥ वा॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ अंग देश सेवा नणी आव्या मोहोटा राय.॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) कटक सह ने करी। मंगलने नमवाय ॥१॥सिंह नाम सामंतने। कीधो वम राजान ॥आगल कीधो तेहने। देश बहु श्रादरमान ॥२॥ गुर्जर मरुधर मालवो। मेवाडना नूपाल ॥ धनदत्त सुतने सवि मदया। श्रापी सार रसाल ॥३॥ धनदत्त सुत वज. मावियो । नाव नाम निशाण ॥ थरहर कांपे तव धरा । कायर कंपे प्राण ॥ ४ ॥ मोरच रचिया नली परें । ऊंचा जुगर जेम ॥ नाल चढावी उपरें । शूर तणे मन प्रेम ॥५॥ पूजी श्रीनगवंतने । प्रणमी श्रीगुरुपाय ॥ ध्यान धरी जगवंतनुं । ते जे श्रावक राय ॥६॥ महामूख्य मोहोटो अ। घोडो जलधि तरंग॥ मंगल नृप उपर चढ्यो । आणी मननो रंग ॥ ७॥ फोजें फोज सामी मली। तव वाग्यां रणतुर ॥मंगल कलश तेणें अटकल्यो । जाणे जग्यो सूर ॥॥ रूप देखी मंगल तणुं । ते प्रणम्या नूपाल ॥ ततक्षण ते पाबा फस्या । श्रापी सार रसाला हवे श्रावी निज मंदिरें । ममाव्या प्रासाद ॥ शत्रुकार मंडाविया। हु तेजयजयकार ॥१॥श्री विजयसिंह सूरीसरु । समवसस्या उद्यान ॥ बहु परिवार परवस्या । ते जे ज्ञान निधान ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __() ॥ ढाल चोथी ॥राग गोमी ॥ ॥सबल आनंबर सज करी । नवि प्राणी रे ॥ तेमी सवि परिवार । लाल नवि प्राणी रे ॥ आव्या सहगुरु वांदवा ॥ न० ॥ पहेरी सवि शणगार ॥ला ॥१॥पांचे अनिगम साचवी ॥ नविण ॥ वांद्या श्रीगुरु पाय ॥ ला ॥ प्रणमी वली बहु साधुनें ॥ ज०॥ बेग रूडे गय॥ला॥॥श्रीसिंहसूरि उपदिसे ॥ न०॥ जाणी सरल खनाव ॥ ला० ॥ साकर मधुरी वाणी ॥ न० ॥ दान शीयल तप नाव ॥ लाग ॥३॥धर्मनी देशना सांजली॥न ॥ हरख्यो मन नूपाल ॥ ला० ॥ जैन धर्म मनमां वस्यो ॥ न० ॥ जीवदया प्रतिपाल ॥ ला०॥४॥ कर जोमी उनो रहेन॥ पूजे मंगल नरेश॥ ला॥ विवाहनी विनंबना ॥नापामी केण विशेष ॥ला॥॥नामें त्रैलोक्यसुंदरी ॥ना मुज प्रिया विण वंक ॥ ला० ॥कर्म कठण कीधां किस्यांना जे पामी एह कलंकला ॥६॥ सूरि कहे राजा सुणो ॥ ॥ पूर्व नवनी वात ॥ला विण सांजव्ये ए कर्मनी ॥ना कथा न आवे धात ॥ ला०॥॥अंगें आलस परिहरो, सुण राजन रे॥ पूरव नव वृत्तांत ॥ लाल सुण राजन रे ॥ पुण्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) की, ते वखाणीयें ॥ सु० ॥ मूकी मननी ब्रांति ॥ ला ॥ ७॥ दक्षिण जरतें जाणियें ॥सु ॥ दितिप्रतिष्ठित नाम ॥लापाटण मोहोटुं वखाणीय॥सु॥ कळं करी अनिराम ॥लाणाए। सोमचंद तिणे पाटणे ॥सुणा एक रहे कुलपुत्र॥ला ॥ शूरचंद तेहना पिता ॥सु॥ राखे घरनुं सूत्र॥ला॥१॥श्रीदेवी तस नारजा ॥ सु० ॥ दंपती प्रीति अपार ॥ ला ॥ चतुरा तास वखाणीयें ॥ सु० ॥ जेहने वश जरतार आला ॥ ११॥ सरख खजावे पण करी ॥ सु ॥ माने सहुँ तस लोक ॥ ला ॥ धरमने गमें वावरे ॥सु॥ बहु सोनश्या रोक ॥ला ॥१॥ तेह पाटणमां जाणीयें ॥सु॥ सुश्रावक जिनदेव नाम ॥ला ॥ते बेहुनुं मन एक डे ॥ सु॥ जेम लखमणने राम ॥ ला॥१३॥ पूर्वबुं पण बहु अ॥ सुणाजिनदेवने बहु धन्न ला॥ बहु वली उपराजवा ॥सु०॥ वाहण चढवानुं मन्न । लागारा एक दिन ते सोमचंजने ॥ सु०॥ मित्रने कहे मन वात ॥ला॥ परदेशे मनसाय ॥ सु०॥ 'तुं शुरू सुजात ॥ ला ॥ १५ ॥ सोनश्या मुज रोकमा ॥ सु० ॥ सोंपुं बार हजार ॥ ला० ॥ विश्वास जाणी मित्रनो ॥॥धर्म बांधव तुं सार ला॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ए धन माहारं तुं सहि ॥ सु० ॥ वावरजे शुनगम ॥ ला ॥ लान घणो ने तुमने ॥ सु०॥ ए जे उत्तम काम ॥ ला॥ १७ ॥ ते धन सोंपी मित्रने ॥ सु॥ तेणे सिकि करी परदेश ॥ ला॥ जिनदेव सरिखो को नहीं।सु॥ऐ ऐ पुरुष विशेष॥ ला० ॥१७॥मानव जव लाहो लीजीयें ॥ सु॥दे दान सुपात्र ॥ ला॥ सोमचं अनुमोदतो॥सुणाकरे निज निर्मल गात्र॥ बा॥१ए। सोमचं नर सारिखो। सुणा कोडिमांहि कोशएकलाप होय के न होय वली।सुते सुणजो सुविवेक ॥लागार॥ जिनदेवनुं धन वावरे॥सु॥ मन नाणे अहंकार ॥ ला ॥ निज मित्रने अनुमोदतो ॥ सु परने करे उपगार ॥ ला० ॥१॥ घर सारूं धन वावरे ॥ सु०॥ पोतानुं पण सार । ॥ ला॥ जैन धर्म वली आदरे ॥ सु०॥ नारीने जरतार ॥ ला ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ श्रीदेवी मन चिंतवे । धन्य ए मुज जरतार॥ धन्य जिनदेव वखाणीयें जैन धरम जग सार॥१॥ नंद शेग्नी दीकरी। देवदत्तनी नारि । ते पण एहिज पाटणे । जमानामें नारि॥॥ श्रीदेवीने सखिपएं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) घणुं ते ना साथ ॥ ना पण नेहें करी । मन थापे तस हाथ ॥३॥ देवदत्तना देहमां। रक्तपित्तनो रोग ॥ व्याप्यो करम तणे वशें । ना करे बहु शोक ॥४॥ श्रीदेवी आगल कहे। कोढी हु जरतार॥ हवे बा शुं कीजीएं । ए फुःखनो नहीं पार ॥५॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग केदारो गोमी ॥ ॥ मुह मचकोडीने कहे रे । नमाने तेणी वार ॥ देवदत्तने तुज संगधी रे । उपन्यो रक्त विकार रे ॥१॥ बेहेनी॥म करीश मुजरांवात। वेगली रहे कर सात रे ॥ बे० ॥ नहिं जलो ताहारो संघात रे ॥बे॥ वंट्यं ताहारुं गात्र रे॥ बेहेनी ॥म ॥२॥ नजाने तव उपन्यो रे । मनमां घणो विखवाद ॥ ते चिंतवे एह शुं लवे रे।मन पाणी उन्माद रे॥बहेनी० म० ॥३॥ उठी ते श्रामण मणी रे । नयणे करती नीर॥वलती बोलावी हरखशुंरे। कांश बार हुई दिलगीर ॥बेहे मानसा कहे तुजनविघटे रोएहवो कहेवो बोल॥श्री कहे में हांसी करी रे। तुज तनु कुंकुम घोल रे॥बदेण्मा ॥श्रीदेवीयें ततहणे रोबेसारी धरी बांहि ॥ माहरे तुं सहि जाणजो रे । वाव्ही नगरी मांहि रे ॥ बहे० म०॥६॥ रोषहतोते उतस्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) रे । विलय गयो विखवाद॥श्रीयें करम बाध्यु हतुंरे। तेहनो रह्यो सवाद रे॥बहेण्म॥॥जीव बांधेते अति घणुं रे। रसनाथी बहु कर्म ॥ जेणे रसनाने वशे करी रे।तेहने पोते धर्म रे ॥बदेण्म ॥७॥ जे पंचेंजिय वश करे रे। तेहने लागुं पाय ॥ दीप्तिविजय कहे जाणजो रे। तेदने बहु सुख थाय रे॥ बहेण्म । ए॥ ॥दोहा॥ ॥ मुनिवरना संजोगथी॥पामी समकित सार॥ ते पाले बेहु जणां । श्रावकना व्यवहार ॥१॥ अतिहि शुन जावें करी । ते पोहोतां परलोक ॥ पंच पक्ष्योपम आउखे। सौधर्मे सुरलोक ॥२॥ सौधर्मा देवलोकथी। सोमचंजनो जीव ॥ चवीने तुं जूपति हुई । पुण्यवंत अतीव ॥३॥ देवीनुं सुख जोगवी । पूरण पूरी आय ॥ श्रीदेवीनो जीव ते । त्रैलोक्यसुंदरी थाय ॥४॥ परजव्ये उपराजीयुं । पुण्य घणुं गुण खाण ॥ नाडे परणी सुंदरी तेतुं सहि करी जाण ॥५॥हांसी पहेले नवे। वयण कडं विण वंक ॥ ते माटे ए सुंदरी। पामी मोहोटुं कलंक॥६॥रुमां जूंमां जीवडा । जे हसतां बांधे कर्म ॥शुल अशुज ते जोगवे।साचो श्रीजिन धर्म॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ ढाल ही ॥ साहेलडीनी देशी॥ ॥ देशना सुणी मन हरखीयो ॥साहेलडी रे। मंगलकलश नूपाल तो ॥ श्राजुनो मुज दिन नलो॥ सा० ॥ सांजल्यां वयण रसाल तो॥१॥ वांदी निज घरे श्रावीया ॥ सा ॥ मन आव्यो वैराग तो । ए संसार कारिमो॥ सा० ॥ साचो धर्म वीतराग तो ॥२॥ हरख धरी धन वावरी ॥ सा० ॥ करे पोतानुं काज तो ॥ जयशेखरने तव दीये ॥ सा ॥ चंपावतीनुं राज तो ॥३॥ सिंहसूरि पासें लीये ॥सा॥ पंच महाव्रत जार तो॥अति उत्सव बाबरें॥सा ॥ नर वली एक हजार तो ॥४॥ श्रीगुरुनी सेवा करे ॥ सा ॥ तेणें नण्यां अंग अग्यार तो ॥ योग्य जाणी पदवी दीये ॥ सा ॥ सिंहसूरि गणधार तो ॥५॥ सुखिया जीव ते सुख लहे ॥ सा॥ ते सही पुण्य प्रमाण तो ॥ पुण्यवंतनां सहु करे ॥ सा ॥ जगमां सबल वखाण तो ॥६॥ सुंदरी पण दीदा लीये ॥ सा ॥ हरखे नृपने साथ तो ॥ बहु नारीशु परवरी॥ सा॥ लोच करे निज हाथ तो ॥७॥ चतुर ते तेहने जाणीयें ॥ सा ॥ जे अव सरनो जाण तो ॥ संसारी सुख विलसी करी ॥ सा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एव ) संजम लीये गुणखाण तो ॥ ८ ॥ संजम पाली निमलुं ॥ सा० ॥ पोहोता ब्रह्मसुरलोक तो ॥ तिहांथी चवीने उपज्या ॥ सा० ॥ पाम्या नरजव थोक तो ॥ ए ॥ तिहां पण दीक्षा लेइ करी ॥ सा० ॥ पामशे केवल ना तो । अनुकर में मुगतें गया ॥ सा० ॥ तेहनुं करवुं वखा तो ॥ १० ॥ गुणवंतना गुण गाइयें ॥ सा० ॥ जाखे श्री जगवंत तो । निर्मल थाये आतमा ॥ सा० ॥ पामीयें सुख अनंत तो ॥ ११ ॥ श्री मंगलकलश सूरी तणो ॥ सा० ॥ रास रच्यो सुविलास तो ॥ जणे गणे जे सांजले ॥ सा० ॥ जेम होय परम विलास तो ॥ १२ ॥ रास करंतां एहनो ॥ सा० ॥ मुज मन यति रंगरोल तो ॥ कहेतां रंग मुज उपन्यो ॥ सा० ॥ जेम मजीवनो चोल तो ॥ १३ ॥ सुपन मांहि गज उपरें ॥ सा० ॥ बेठा हुइ रुद्धि राज्य तो ॥ तेम ए रास करतां थकां ॥ सा० ॥ सिद्धि चढे सवि काज तो ॥ १४ ॥ श्री विमलबोध सूरीश्वरें ॥ सा०॥ दीधो ए उपदेश तो ॥ शांतिनाथ पहेले नवें ॥ सा० ॥ श्रीखेण नामे नरेश तो ॥ १५ ॥ ते आागल मन रंगशु ॥ सा० ॥ संबंध कह्यो सुरसाल तो ॥ शांतिनाथ पढ़ेले नवें ॥ सा० ॥ मंगलकलश भूपाल तो ॥ १६ ॥ जैन < Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) धर्म श्राराधियो ॥ सा ॥ सास्यां श्रातम काज तो ॥ परमानंद पद पामीयो ॥ सा ॥ जोगवी बहु दिन राज तो ॥ १७ ॥ धन सारथवाहें साधुने । सा ॥ दीर्छ अढलक दान तो । तीर्थकर पदवी लही ।। सा० ॥करे बहु मानबो ॥ १०॥ यतः॥ जैनधर्म समाराध्य । जूत्वा विजवनाजनं। प्राप्ताः सिछिसुख ह्ये ते । श्लाघ्या मंगलकुंजवत् ॥ १५ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ म म करो मायारे काया कारमी॥ ए देशी॥ ॥पुण्य करो तमें प्राणीया। पुण्ये नवे निधान रे। पुण्यथी सवि सुख उपजे । गहुँथी जेम पक्कान्न रे ॥१॥ पुण्य ॥ श्रीविजयमान सूरीसरु । तपगन्छनो शणगार रे ॥ तेहने राज्ये रंगें करी । रास रच्यो सुविचार रे ॥२॥ पु० ॥ श्रीविजयदान सूरसरु । उत्तम जेहन नाम रे ॥ मुनिवरमांदे वखाणीयें । जाग्यवंत गुणधाम रे ॥३ ॥ पु० ॥ तेहना शिष्य सुहं करु । श्रीराजविमल उवकाय रे। तेहना शिष्य वखाणी । श्रीमुनि विजय उवकाय रे ॥४॥ पुण्॥ तेहना शिष्य वखाणीयें ।संवेगी शिरदार रे । श्रीदेवविजय वाचक वरु । उस वंस शणगार रे॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पु०॥ प्राग वंश कुल उपना । निज गुरुने सुखदायी रे ॥ श्रीमान विजय पंडित वरु । दोलत अधिकी सवारे ॥६॥ पु० ॥ गुरु नामे सुख उपजे । मनें बुद्धि सघली आवे रे । दीप्तिविजय सुख कारणे । रास रच्यो शुजन्नावें रे ॥७॥ पु० ॥ निज शिष्य धीर विजयतणुं । वांचवानुं मन जाणी रे ॥ रास रच्यो रलीयामहे । मनमांहि उलट आणी रे॥॥ पु० ॥संवत सतरे जाणजो।वरसते उंगणपच्चासो रे॥ जणे गणे जे सांजले । कवि दीप्तिनी फलजो आशो रे ॥ ए॥ पु० ॥ इति श्रीमंगलकलशरासे तृतीयः खंमः समाप्तः ॥१॥ समाप्तोयं मंगलकलशरासः ॥ 000000000000000000000 ॥ इति श्रीमंगलकलशनोरास संपूर्णः॥ 8066588888888888888560 C Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educatona international For Personal and Private Use Only www jainelibrary.org