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(२६) नमा थई निराश ॥१॥ राजा पूजे मंत्रीने। बेसारी सुसनेह ॥ मुज पागल साचुं कहो। पुःखD कारण जेह ॥ ११॥ मुज नंदन कंचन जिस्यो। तुमें दीगे महाराय । श्राजूनी श्रधरातिमां । विणठी तेहनी काय ॥१॥ रक्तपित्त तस उपन्यो । दैव थयो विपरीत ॥ विनय करीने वीनवे । एह वमानी रीत ॥ १३ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ काची कली अनारकी रे हां ॥
सुमा रह्या रे बुजाय ॥ ए देशी ॥ ॥राजा कहे मंत्री सुणो रे हो । जीवनें कर्मप्रमाण ॥कर्म विमंबना॥वीतराग एम उपदिसे रे हां। जे त्रिजुवननो जाण ॥ कर्म ॥१॥ कर्म करे ते होय कणा विणलोगव्यां बूटे नहींरे हां। मंत्री विचारीजोय ॥ क० ॥॥ निमित्त कारण मुज नंदनी रे हां। विष कन्यानी जाति ॥ क० ॥ जे माटे एम जाणीय रे हां। उपन्यो रोग अधराति ॥ कण॥३॥ जिनशासन मांहें जाणिये रे हां। निश्चय ने व्यवहार
का निश्चय जाणे केवली रे हां। लोक जाणे व्यवहार ॥ क० ॥४॥ जो तनया तुज पुत्रने रे हां। जो नवि देतो एह ॥का रोग रहित देवी दासनी रे हो । विणसत नहीं शुज देह ॥ कण् ॥५॥ मंत्री
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