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________________ (७५) रखी घणुं । करी कारिमो क्रोध ॥ एहने बांधी राखजो। जे होय सबलो जोध ॥३॥ जय ब्रांत नीशालिया।नाग दह दिशें जाय ॥ धनदत्तसाहें सांजट्यु। करे ते हाय वराय ॥॥ एह अमारा घर तणी। एह. वी हलवी वात ॥करे विटलज वाणीयो। एहने मारो लात ॥५॥ सुनट सघला तिहां धस्या।साहवाने ततकाल ॥ सामंतने कहे सुंदरी। तमें साहो सुकुमाल ॥६॥ मंगल मन बीहिनो घणो । (मुज) पूरव लाग्यां पाप ॥ है है ए शुं थायशे। रोशे मायने बाप ॥॥ हाथ कालीने कुमरनो।सुंदरीने सामंत॥ ए त्रणे उपर चढ्यां । उरडामांहि एकांत॥॥ सुंदरी कहे सामंतने। सुणजो तमें निरधार ॥जे में परण्यो प्रेमशुं। ते सहि ए जरतार॥ए॥जा तमें एहने घरे । द्यो वधामणी सार ॥ मात पिताने सुख करी।श्राणो पंच तुखार ॥ ॥ १० ॥ सामंतने तस मंदिरें, वरतावी जयकार ॥ रथनूषण राजा तणा। लावो पंच तुखार ॥११॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ बिंदलीनी देशी॥ __॥ सिंह सामंत एम बोले।सुंदरी नहीं को तुम तोले हो ॥ सुंदरी वयण सुणो ॥ तुम हैमानो नहीं पार, तमें बुद्धि तणां नंमार हो ॥ सुं॥ १॥ एटला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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