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________________ (१४) शिरदार तो ॥ श्री देव विजय वाचक वमा ॥ सा॥ उस वंश शिणगार तो ॥१७॥ उस वंश कुलें उपना ॥ सा० ॥ निज गुरुने सुखदायी तो ॥ श्रीमान विजय पंडित वरु ॥ सा॥ दोलत अधिकीसवा तो ॥१॥ गुरुनामें सुख उपजे ॥ सा० ॥ मति बुधि सघली आवि तो ॥ तस शिष्य दीप्ति विजय नलो ॥ सामा रास रच्यो शुन नाव ता ॥ १॥ ॥ निज शिष्य धीर विजयतणुं ॥ सा ॥ वांचवानुं मन जाणी तो ॥ रास रच्यो रलियामणो ॥ सा० ॥ मनमा उलट आणी तो ॥ २० ॥ संवत सत्तरें जाणजो॥ सा ॥ वरस ते उगण पचास तो ॥ श्राशो शुदि पूनम दिने ॥ सा॥ ए में कीधो रास तो॥१॥ ॥ इतिश्री मंगल कलशरासे पुरुषचारत्र लाखा शीलवर्णनोनाम द्वितीय खंडः संपूर्णः ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ उोणी नगरी तण।।(अने) चांपापुरीनी जेह॥ मूलथकी पोता तणी । वात कही सवि तेह ॥१॥ सुरसुंदर राजा तण।। त्रैलोक्यसुंदरी नाम ॥ में नामे परणी करी। मूकीआव्यो आम ॥२॥वात सुणी ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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