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________________ (५५) ॥ दोहा॥ ॥ मंदिर आवी आपणें । मन चिंते वत्सराज ॥ पुरुषचरित्र कोश केलवी । निश्चें लेगुं राज ॥१॥ वेश बनावी जगतनो । गले तुलसीनी माल ॥ हरण चर्म नांख्युं खन्ने । ढलता मूक्या वाल ॥२॥ मधुरो राग बालापतो । हाथे ले वीण ॥ पहेली पोलें पोलिया। ते कीधा लयलीन ॥३॥ अति चतुरा केलवी । लंधी साते पोल ॥ चिहुं दिशि नीतें ऊलहले।आरिसानी ओल ॥४॥ते श्रागल एक पोलियो । लाखाने दरबार ॥ तेहनी हाकें को तिहां जश् न शके नर नार ॥ ५॥ रीकाव्यो रीके नहीं । ते अति कठिण कठगेर ॥रात दिवस रहे जागतो । पण विश्वासी जोर ॥ ६॥ ते आगल धूणी करी। बेगे थइ महांत ॥ वचन विलासे रीजवी। ते कीधो शुन शांत ॥७॥ वातें तेहने रीजवी । पूलाखानी वात ॥ धुरथी मांमी ते कहे। लाखानो अवदात ॥७॥ गाम पांचशे नोगवे । शछि तणो नही पार ॥ यथा तथा बोले नहीं। सूधी समकित धार ॥ ए॥ चांपा नामें मालणी। नित्य जाये तस पास ॥ फूल पगर ले करी। वात करे उदास ॥१०॥ चांपाने एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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