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________________ (६३) ॥ ढाल थाउमी ॥ हमीरानी देशी॥ ॥विंजावन जंगल वसे । तिहां विंध्याचल गिरि राय॥सखी रे॥जार श्रढार तरुवर तणी। फूलि रही वनराय ॥ सखी रे ॥ सुणो वात सोहामणी। सुणतां आणंद थाय ॥ सखी रे॥१॥ ए आंकणी॥ वाघ सिंह ने रोकमां । साबर वानर रीउ॥सखी रे॥जंगली नर हबसी रहे। काला मोटा निछ॥ सखी रे॥॥॥ रेवा जल खलहल वहे । जेहन निर्मल नीर ॥सा पंखी घणां क्रीमा करे । सारस मोरने कीर ॥ सखी रे ॥३॥ सुणोण ॥ रात दिवस सालिर चरे। हाथीनां बह वृंद सखी रे ॥ रेवा जलें जीले सदा। मन धरता श्रानंद ॥ सखी रे ॥४॥सुणो॥ मातो मद मत्त घूमतो। तेणें वने एक गजराय ॥सखी रे॥सोहाथणीशुं परवस्यो । मोहोटो कोमल काय ॥ स०॥५॥ ॥सु॥ ते गजने एक हाथणी । टोलानो शणगार ॥स॥ तेहथी अलगो नवि रहे । पूरव प्रीति अपार ॥ सखी रे ॥ ६॥ सु० ॥ बेहु जणां जलक्रीडा करे। नेलां चरवा जाय । सखी रे ॥ हाथणी बेसे जेणे थलें । गज बेसे तेणे गय ॥ सखी रे ॥ ७॥ सु०॥ सालीर चरी पाडो फरे। टोला सहित गज राय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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