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(२०) पुण्यें करी। पाम्यो ए जरतार ॥११॥ल॥जान थावीने तिहां रही, वाजंते निशान ॥लण॥ कुंवर स्वरूप देखी करी, राजा थयो महराण ॥१॥ लम् ॥ राजा मनमांहे चिंतवे, मल्यो जमाश् चंग ॥ ल० ॥ सोना केरी मुजमी। उपर जमीयुं नंग ॥१३॥ल॥हरखी त्रैलोक्यसुंदरी । राणी मन उत्साह ॥ ल० ॥ गातां वातां हरखशुं । आएयो माहिरामांहि ॥१४॥ल॥ लगन तणी वेला हुई। जोषी मेलावे हाथ ॥ल॥ मंगलकलशें मोजमां । काल्यो जमणो हाथ ॥ १५ ॥ लण ॥ दण पासुं मेले नही। सुबुधि नाम प्रधान ॥ ल०॥ रखे ए कोश् आग, वात करे अज्ञान ॥ ॥ १६॥ ल॥अदर लखीया हाथमां। सुंदरीयें तेणी वार ॥ ल०॥ मुज पिताकने मागजो, पंच तरंगम सार ॥ १७ ॥ल०॥ मंगल लखे उतावलो। कुंवरीना करमांहि ॥ ल ॥ नाडे परणुं हुं सही, ते धरज्यो मनमांहि ॥ १७ ॥ ल० ॥ एह स्वरूप जाणी करी। कुंवरी मन दिलगीर ॥ लम् ॥ लाजें बोली नवि शके । नयणे नाखे नीर ॥ १५॥ लम् ॥वाजां वाजे अति घणां। गाये गोरी गीत॥ल॥दानजदीजें अति घणां। ए विवाहनी रीत॥२०॥ल॥कर मेहलाव
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