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(५)
॥ दोहा॥ ॥ एक दिन धनदत्त चिंतवे । मुज घरे बहुली इति ॥ मोहोटां मंदिर मालीयां । पण नहीं बालक सिकि॥१॥ गलहबो देश करी। बेगे धनदत्त शाह।ततक्षण सत्यनामा जणे । ए शुं कुःख तुम नाह ॥२॥ के चिंता व्यापारनी। के रुठ्यो माहाराज ॥ वाहण नाव्यां पाधरां । के वली बीजुं काज ॥३॥ साचुं कहेजो साहिबा । फुःखनुं कारण एह ॥कडं बुं दासी तुमतणी । मुज उपर धरी नेह ॥४॥ शेठ नणे सुणो सुंदरी । फुःखनुं कारण तेह ॥ बालक नहिं को तुम तणे । घरनुं मंमन जेह ॥५॥ शेगणी वलतुं नणे । सुण तुं जीवनप्राण ॥ बालक चिं. ता म म करो। तमें बो चतुर सुजाण ॥६॥
॥ ढाल बीजी ॥राग केदारो॥ ॥ पुण्य करो तमें पीयुजी। पुएयथी फल श्रीकार रे । इह नव परनवें सुख लहे । धरमथी जय जयकाररे ॥१॥ पुण्य करो तमें पियुजी ॥पु॥ देव गुरुनी सेवा करो । यो तमें पंचविध दान रे ॥ जेहश्री जग जस विस्तरे । दान ते मुक्ति निदान रे॥२॥ ॥ पु०॥ दानशाला मंमावियें । पूजीयें श्री आदि
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