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नाथ रे । पुस्तक नवु रे लखावियें । साहामी वत्सल प्राणनाथ रे ॥३॥पु॥ पौषधशाला मंमावियें। धरीयें वली धर्मनुं ध्यान रे ॥ एम करतां पियु आपणे। उपजे उत्तम संतान रे ॥४॥ पु० ॥ श्री शत्रुजय गिरिनारनी। कीजियें जात्रा खास रे॥ सूरजकुंममां नाहियें। जेम फले वंबित आश रे ॥॥पु० ॥ साधुने नित्य पडिलानियें। कीजियें परउपकार रे॥ लखमीनो लाहो लीजियें । सफल करो अवतार रे ॥६॥ पु० ॥ करो पञ्चकाण नित्य पोरसी । सांफ्रें करो विहार रे ॥ जगवंतनी पूजा करो। पडिकमणां बे वार रे ॥७॥ पुण् ॥ धर्म सुरतरु सम जाणियें। धर्म चिंतामणि जाण रे॥ अरिहंत समवसरणे करे । धर्मनां सबल वखाण रे ॥७॥ पुणानारी वयण मनमां धरी। धर्मे हुई उजमाल रे ॥ मालीने फूलने कारणें । धन बहु दे ततकाल रे ॥ए॥पु॥ धनदत्तशाह मन थिर करी । धर्म करे दिन रात रे ॥ श्रादरी वस्तु न मूकियें । उत्तम लक्षण जात रे ॥ १० ॥ पु० ॥ श्री जिनधर्म प्रचावथी। बेनी ते शासन देवी रे ॥ तस तणी कुखें उपजावियुं। पुत्ररयण ततखेव रे ॥ ११॥ पु०॥
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