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________________ (१७) मारशुं । कोण करशे तुज सार हो ॥॥१॥ उजेणी पूरे रही। किहां माहारो परिवार हो।मासिंह सबल पण सांकच्यो। किश्यो करे उपचार हो ॥ मं० ॥२०॥ नवितव्यता योगें करी। हुं आव्यो एण देश हो ॥मायाकाशवाणी सांजली। तेणें करी सुविशेष हो।मंग ॥१॥ मंगल कहे मंत्री सुणो । ए नहिं रुमानुं काम हो ॥ मं ॥ पण तुम प्रतें चाले नहिं । तुमने कीजें प्रणाम हो ॥ मं० ॥ २२ ॥ कर मेलावण राजवी । जे मुजने ये दान हो ॥ मंग॥ घोमा हा. थी रथने नेजा। बीजी वली वस्तुवान हो।मं०॥२३॥ ए तुमें मुजने श्रापजो।तो तुम करशुं काज हो॥॥ उजायणीने मारगें। ते तुमें मूकजो राज हो ।मंगाश्॥ तब मंत्री हरखें करी।कीधुं वयण प्रमाण हो।मावचमांदे घालीगोत्रजाते जे चतुर सुजाण हो।मं॥५॥ ॥दोहा॥ ॥ मंगलकलशे हा जणी। करवा उत्तम काज ॥ मनमां हरख्यो मंत्रवी । मुज बेगे माहाराज ॥१॥ उंचे शब्द हुतिसें । वली वाग्यां नीशाण ॥ गीत गाउ सोहासणी। विवाहनां मंडाण ॥२॥धे | नोबत गमगमी। वली वागी किरतालढोल ददामा दडदडी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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