________________
() अलखामणी तेह ॥ क०॥ माय विना को नवि धरे रे हां । तेहशुं अधिक सनेह ॥ क० ॥ १४ ॥
॥दोहा॥ ॥ परएयो पति मेली गयो। कलंक चढ्यु जगाहि ॥ एम बेठी फूरे घणुं । रात दिवस घरमांहि ॥१॥ पूरवले नव में किश्यां । कीधां कर्म अघोर ॥ किहां जावं कुणने कहुं । कर्म प्रतें नहीं जोर ॥२॥ ॥ ढाल अग्यारमी ॥ वीर वखाणी राणी चिक्षणा
जी ॥ ए देशी ॥ ॥मन विलखाणी नृप नंदनीजी॥मनमांहे घणुं दिलगीर ॥ मायने एणी परें वीनवेजी।नयणे करे बह नीर ॥मनः॥१॥नयणें न आवे निजमी जी । उदक न जावेजी अन्न ॥ चित्तमां आमण मणी जी। कोयशुं न वि मले मन्न ॥मना॥ निज देशना परदेशनाजी। लोको मलशे लाख ॥ मंत्रीनी वात सहुमानशेजी। माहारी कोण नरे साख ॥मन॥३॥ मात ने तात वैरी थयां जी। वैरी थयो परिवार ॥कमै कलंक चढावियुं जी। करवो कवण विचार ॥ मन॥४॥ कहो हवे कोण आगलें कहुं जी। ए फुःखडानी रे वात॥रातनी कपटनी वारता जी । सांजलो माहारी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org