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________________ (६) ए धन माहारं तुं सहि ॥ सु० ॥ वावरजे शुनगम ॥ ला ॥ लान घणो ने तुमने ॥ सु०॥ ए जे उत्तम काम ॥ ला॥ १७ ॥ ते धन सोंपी मित्रने ॥ सु॥ तेणे सिकि करी परदेश ॥ ला॥ जिनदेव सरिखो को नहीं।सु॥ऐ ऐ पुरुष विशेष॥ ला० ॥१७॥मानव जव लाहो लीजीयें ॥ सु॥दे दान सुपात्र ॥ ला॥ सोमचं अनुमोदतो॥सुणाकरे निज निर्मल गात्र॥ बा॥१ए। सोमचं नर सारिखो। सुणा कोडिमांहि कोशएकलाप होय के न होय वली।सुते सुणजो सुविवेक ॥लागार॥ जिनदेवनुं धन वावरे॥सु॥ मन नाणे अहंकार ॥ ला ॥ निज मित्रने अनुमोदतो ॥ सु परने करे उपगार ॥ ला० ॥१॥ घर सारूं धन वावरे ॥ सु०॥ पोतानुं पण सार । ॥ ला॥ जैन धर्म वली आदरे ॥ सु०॥ नारीने जरतार ॥ ला ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ श्रीदेवी मन चिंतवे । धन्य ए मुज जरतार॥ धन्य जिनदेव वखाणीयें जैन धरम जग सार॥१॥ नंद शेग्नी दीकरी। देवदत्तनी नारि । ते पण एहिज पाटणे । जमानामें नारि॥॥ श्रीदेवीने सखिपएं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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