________________
(३७) कहेशेजी कहाणी हरख घणे । जेहने श्रति घj मान ॥ सु ॥ मंगलकलशने तेड्यो ततकणे । जे बे गुणनो रे निधान ॥ सु ॥ सुंदरी ॥ १५ ॥ शेग्नो नंदन हो हरखें श्रावियो।नृप तनयाने पास ॥ सुनयनी ॥ रुडी परें हो रूप जोतां थकां । उलखी कुंवरी उदास ॥ सुनयनी ॥ सुंदरी० ॥ १३ ॥ ए राजकन्या हो कोश्क कारणे । पहेरी पुरुषनो वेश ॥ सुनयनी ॥ चंपापुरीमांहि में परणी हती। ते आवी एणे देश ॥ सुवदनी ॥ १५ ॥ सुंदरीश्रावे हो निज पियु निरखवा ॥ ढाल पूरी थक्ष रसीया वालमनी। प्रथम पूरो थयो खंग ॥ सु० ॥श्रवणें सुणतां हो अति सुख उपजे । पामियें लील अखंड ॥सु० ॥सुंग॥१५॥ रुडीने हो अति रलियामणी । सरस कथा सुविलास ॥ सु०॥ मंगल कहेशे हो बीजा खंडमां । सफल फली सवी श्राश ॥ सु० ॥ सुं० ॥ १६ ॥ श्री विजय मान सूरीसरगल धण।। श्रीमान विजय बुधराय॥सु० ॥ तेहनो विनयी दीप्तिविजय कहे। पुण्यथी बहु सुख थाय ॥ सु० ॥ सुं० ॥ १७ ॥ इतिश्री मंगलकलशरासे प्रथम खंडः संपूर्णः ॥ १॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org