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________________ (३) कटक सह ने करी। मंगलने नमवाय ॥१॥सिंह नाम सामंतने। कीधो वम राजान ॥आगल कीधो तेहने। देश बहु श्रादरमान ॥२॥ गुर्जर मरुधर मालवो। मेवाडना नूपाल ॥ धनदत्त सुतने सवि मदया। श्रापी सार रसाल ॥३॥ धनदत्त सुत वज. मावियो । नाव नाम निशाण ॥ थरहर कांपे तव धरा । कायर कंपे प्राण ॥ ४ ॥ मोरच रचिया नली परें । ऊंचा जुगर जेम ॥ नाल चढावी उपरें । शूर तणे मन प्रेम ॥५॥ पूजी श्रीनगवंतने । प्रणमी श्रीगुरुपाय ॥ ध्यान धरी जगवंतनुं । ते जे श्रावक राय ॥६॥ महामूख्य मोहोटो अ। घोडो जलधि तरंग॥ मंगल नृप उपर चढ्यो । आणी मननो रंग ॥ ७॥ फोजें फोज सामी मली। तव वाग्यां रणतुर ॥मंगल कलश तेणें अटकल्यो । जाणे जग्यो सूर ॥॥ रूप देखी मंगल तणुं । ते प्रणम्या नूपाल ॥ ततक्षण ते पाबा फस्या । श्रापी सार रसाला हवे श्रावी निज मंदिरें । ममाव्या प्रासाद ॥ शत्रुकार मंडाविया। हु तेजयजयकार ॥१॥श्री विजयसिंह सूरीसरु । समवसस्या उद्यान ॥ बहु परिवार परवस्या । ते जे ज्ञान निधान ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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