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________________ (४७) फूल ले जिनवरने नेटवा रे। जिन मंदिर जे ज्यांहि ॥ कु० ॥ १५ ॥ देव जुहारीने पाठी फरी रे । नाही निर्मल नीर ॥ जहेर पलाली वन फल वावरी रे । बेठी चंपक तीर ॥ कु० ॥ १३ ॥ ॥दोहा॥ . ॥ विद्याधर विद्याधरी। धणी धणीयाणी जोम॥ श्रावी जिनवर पाय नम्यां । स्तवन करे कर जोड ॥ २॥ गिरिथी श्राव्यां बेहु जणां । दीगं सरोवर पाल ॥ वनराजी फूली रही। फूली चंपक डाल ॥२॥ चं. पक तरु तलें तेहगें । देखी अजुत रूप ॥ विद्याधर पूछे तदा । कोण तमें कवण वरूप ॥३॥ बोलाव्यो बोले नहीं । हैडे फुःख अपार ॥ नयणे नीर करे घणुं । जाणे त्रूट्यो मोतीहार ॥ ४ ॥ रुदन करतो देखीने। विद्याधर तेणिवार ॥ मनमांहिं ते अटकले। ए कुंवरी निरधार ॥ ५ ॥ प्रायें एवं जाणियें । नारीने लघु बाल ॥ दुःख श्रावे नयणां करे। आंसुमां ततकाल ॥ ६ ॥ विद्याधर निज नारिने । कहे नारी निरधार ॥ कोश्क मोटे कारणे। कीधुं रूप कुमार ॥७॥ स्त्री जाणी विद्याधरी पूले सघली वात ॥धुरथीमांमीने कद्दे । पोतानो श्रवदात ॥ ७॥ यतः॥ हंसा रच्चं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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