Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 90
________________ (ए) ॥ ढाल ही ॥ साहेलडीनी देशी॥ ॥ देशना सुणी मन हरखीयो ॥साहेलडी रे। मंगलकलश नूपाल तो ॥ श्राजुनो मुज दिन नलो॥ सा० ॥ सांजल्यां वयण रसाल तो॥१॥ वांदी निज घरे श्रावीया ॥ सा ॥ मन आव्यो वैराग तो । ए संसार कारिमो॥ सा० ॥ साचो धर्म वीतराग तो ॥२॥ हरख धरी धन वावरी ॥ सा० ॥ करे पोतानुं काज तो ॥ जयशेखरने तव दीये ॥ सा ॥ चंपावतीनुं राज तो ॥३॥ सिंहसूरि पासें लीये ॥सा॥ पंच महाव्रत जार तो॥अति उत्सव बाबरें॥सा ॥ नर वली एक हजार तो ॥४॥ श्रीगुरुनी सेवा करे ॥ सा ॥ तेणें नण्यां अंग अग्यार तो ॥ योग्य जाणी पदवी दीये ॥ सा ॥ सिंहसूरि गणधार तो ॥५॥ सुखिया जीव ते सुख लहे ॥ सा॥ ते सही पुण्य प्रमाण तो ॥ पुण्यवंतनां सहु करे ॥ सा ॥ जगमां सबल वखाण तो ॥६॥ सुंदरी पण दीदा लीये ॥ सा ॥ हरखे नृपने साथ तो ॥ बहु नारीशु परवरी॥ सा॥ लोच करे निज हाथ तो ॥७॥ चतुर ते तेहने जाणीयें ॥ सा ॥ जे अव सरनो जाण तो ॥ संसारी सुख विलसी करी ॥ सा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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