Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 78
________________ (७) ॥सुं० ॥ धरम कुटुंब सहु मलिलं । परनवनुं पुण्य फलियुं हो ॥सुं॥१॥ ते सासु तणे परिवारें। दिन प्रतें देव जुहारे हो ॥ सुं० ॥ मुनिवरने दीए दान । शुरू नावें पढ़ें जमे धान हो।सुं॥११॥उत्तम कुल अनुसारें।धरणीधर लाज वधारे हो॥सुं॥दीप्तिविजय एम बोले। नहीं को गुणवंतने तोले हो ॥सुं०१२ ॥दोहा॥ ॥श्रापी सिंह सामंतने । पुरुष तणो ते वेश ॥ घोमा हाथी दत्तना । मोकलावे निज देश ॥१॥ मणिमय थाली वाटका । रथ नूषण जे दान ॥ए देज्यो मुज तातने । एम कही कुंवरी निधान ॥२॥ धनदत्त सुत कागल लखे। देशबहु उपमान ॥ सिंह कहे ते मानजो । तमें बो बुझिनिधान ॥३॥ संप्रेमवाने निसख्या । नारीने जरतार ॥ सिंह सामंतने सोंपीया । साथै बहु परिवार ॥ ४॥ कुंकुमनुं टीबुं करी। पापी श्रीफल सार ॥ नृप तनया एम वीनवे। नांखे आंसु धार ॥५॥ ॥ ढाल बीजी॥ नावननी ॥ कागलीयो किरतार नणी। शी परें लखुं रे ॥ ए देशी॥ ॥ चंपापुरीना देव जुहारजो रे । तिहां लेजो मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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