Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(७) ज नाम ॥ पडे राजापासें जाश्ने रे । करजो चरण प्रणाम ॥ १॥ सिंह सामंतने कुंवरी वीनवे रे।कहेजो मुज आशीष॥पीयरीयां मुज कण कण सांजरे रे। ते जाणे जगदीश ॥२॥ सिं० ॥ ए आंकणी ॥ घोमा हाथी नजरें देखामजो रे । कहेजो सकल विचार ॥ वली कहेजो तमें मारा तातने रे। तम पुण्ये मल्यो जरतार ॥३॥ सिं०॥ माहारी माताने पगे लागीने रे। कहेजो एक संदेश॥मात प्रसादें मुज सुख उपन्युं रे। पुःखळुनहीं लवलेश ॥४॥ सिं० ॥ धन्य वेला वली धन्य तेहज घडी रे । जे नजरें देखीश माय ॥ संकट आवे राखी रुडी परें रे। ते केम मात विसराय ॥५॥ सिंग ॥ बीजी सघली उरमान मायने रे। कहेजो तमें आशीष ॥ तेह तणा गुण मुजने सांगरे रे । संनाहं निशदीस ॥६॥ सिंग ॥ सहियर सघली. ने सुख पूरजो रे । कहेजो कुशल ने खेम॥मुज हैडाथी तमें नवि वीसरो रे । तमें धरजो बहु प्रेम॥७॥ ॥ सिं० ॥ ढुं अनागिणी सरजी पापणी रे । नहीं मुज बांधव कोय । जे बांधव आवे मुज तेमवा रे। हरख धरीने सोय ॥ ॥ सिं० ॥ तमें तिहां जश आणुं मोकलावजो रे। पियर आवे चित्त॥सिंहजी सूडा
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