Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 77
________________ (७६) दिन गर्नु राख्युं । हवे मुज आगले तमें नाख्युं हो ॥ सुं० ॥ तमे मुजने जस बहु दीधुं, पोतानुं कारज सीधुं हो ॥ सुं॥२॥ तमें दासी लीउ दशवीश । जे खीजमत करे निश दीस हो ॥ सुं॥ हवे मेहलो तमे नरवेश, पहेरो कामिनीनो वेश हो ॥ सुं०॥ ॥३॥ तेणी वेला तेणी वार। सुंदरीये कीधोशणगार हो॥सुंगासासु ससरा पासें आवे । जरी थाल मोतीडे वधावे हो ॥ सुं०॥४॥देखी सासु ससरो मन हरणे । हरखें आंसुमां वरसे हो ॥सुं०॥ राजाएं करीय प्रसाद । दीधा मोहन प्रासाद हो।सुं॥५॥लही मातानो श्रादेश । ते मोहलें करे प्रवेश हो॥सुं०॥ हवे विषय तणा सुख विलसे । तन मन तेहy वली उबसे हो ॥ सुं॥६॥पुण्यें मन्यो संयोग । पुण्यें मन वंडित जोग हो ॥सुं०॥ कीजें पर उपगार । पाम्यानुं एहिज सार हो ॥ सुं० ॥ ७ ॥घर सारं दानज दीजें । मानवजव लाहो लीजें हो ॥सुं॥पुएयें श्रावे चतुराई। पुण्ये विलसे उकुरा हो।सुंाज॥धनदत्त सुत नित्यमेव । करे मात पितानी सेव हो ॥ सुं॥नृप तनया घर काज । करती नाणे मन लाज हो॥सु०॥ए॥ हवे धनवती धनो साह। नित धरम करे उछाह हो॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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