Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(६७) यारी ॥ १३ ॥ हवे ते चित्रक राय। निज चतुराश्करी री॥गजणी पासें गज रूप । लु पड्यानुं करे री॥ ॥ १४॥ एहवो जीते जाव।लखीने तेह गयो री॥निज मंदिर जणी तेह ।मनमां हर्ष थयो री ॥१५॥
॥दोहा॥ ॥विंध्याचल रेवा नदी । तेहनां करी चित्राम ॥ घरे श्राव्यो पोता तणे । विण मागे तस दाम॥॥हुई चरित्र करतां थकां। अनुकरमें एक मास ॥राज स. नायें श्रावीने। नृपने करे अरदास ॥२॥जाजं लाखा मंदिरें। जो तुम होय श्रादेश ॥ बीडं श्रापी तेहनें। हुकम करे सुनरेश ॥३॥श्राव्यो लाखा मंदिरें। जुगतीशंकरी जुहार ॥ लाख टका आगल धरी। बोल्योराज कुमार॥॥श्राव्या दक्षिण देशथी। जोता पुर वन गाम ॥ सोपारापुर पाटणे। सुएयु तमारं नाम ॥५॥तेणे कारण जोवा नणी । तुम घरे कस्यो प्रवेश ॥ दर्शन दीतुं तुम तणुं । अमने हर्ष विशेष ॥६॥मंदिर दीगं तुम तणां । दीळ तुम मुख नूर ॥ एम कहीने पालो फरे । अमने थाय असूर ॥ ७॥ लाखा मनमां चिंतवे । ए नर चतुर सुजाण ॥ घमी बे घडी जो ए रहे। तो मुज सफल विहाण ॥ ७॥ देखी तेहनी चातु
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