Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ ( ७३ ) पोहोता रुषिराज तो ॥ ८ ॥ लाखा पण तप जप करी ॥ सा० ॥ पोहोती स्वर्ग मकार तो ॥ अवसर सघलो साचवे ॥ सा० ॥ सुणजो सदु नर नार तो ॥ ॥ गणिकाने कुल उपनी ॥ सा० ॥ पामी धन यौवन्न तो ॥ धन्य ते लाखा सुंदरी ॥ सा० ॥ राख्युं शील रतन्न तो ॥ १० ॥ उत्तमना गुण गावतां ॥ सा० ॥ प्रह जगमते सूर तो ॥ एम जाणी में वरणव्या ॥ सा० ॥ लाखाना गुण पूर तो ॥ ११ ॥ पंमितें ते वखाणीयें ॥ सा०॥ जे होय अवसर जाए तो ॥ अवसर आव्यो जालवे ॥ सा० ॥ ते कही एं चतुर सुजाण तो ॥ १२ ॥ कप्पम वाणिज्यमा रही ॥ सा० ॥ में कयुं पुरुष चरित्र तो ॥ लाखानी पण वारता ॥ सा० ॥ मंगलें कही सुवि चित्र तो ॥ २३ ॥ श्री विजयसेन सूरी सरु ॥ सा० ॥ तपगछनो शणगार तो ॥ तेने राजे रंगें करी ॥ सा० ॥ वात कही सुविचार तो ॥ १४ ॥ श्री विजयदान सूरीसरु ॥ सा०॥ उत्तम जेहनुं नाम तो ॥ मुनिवरमांदे वखाणी एं ॥ सा० ॥ जाग्यवंत गुणधाम तो ॥ १५ ॥ तेहना शिष्य सोहंकरु ॥ सा० ॥ श्रीराज विमल उवजाय तो ॥ तेना शिष्य वखाणी एं ॥ सा० ॥ श्री मुनि विजय उवकाय तो ॥१६॥ तेना शिष्य सोहामणा ॥ सा० ॥ संवेगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94