Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 73
________________ (७२) ॥ ढाल अगीयारमी ॥ साहेलडीनी देशी ॥ ॥हवे श्रावी निज मंदिरें॥सादेलमी रे॥राणीने कहे सुविचार तो॥हंसराज मोहोटो थयो।साहवे सीजें व्रतनार तो ॥१॥ राज कि सुख जोगव्यां ॥ सा ॥ ते सवि पुण्य पसाय तो॥ धर्म कुटुंब थावी मल्युं ॥ सा० ॥राणी सुत सुखदाय तो ॥२॥ जे अवसर नव उलखे ॥ सा० ॥ ते नर कहीयें गमार तो ॥ अवसर श्राव्यो जालवे ॥ सा ॥ ते नर घर शणगार तो ॥३॥ शुज लग्ने शुभ मुहरतें। सा० ॥राज्य थापी हंस राज ता॥ धर्म धन खरची घj ॥ सा० ॥ व्रत लीए नृप वत्सराज तो ॥४॥ लाखा पण व्रत आदरे ॥ सा० ॥ बहु नारीनी साथ तो॥ माया ममता परदरी॥सा॥ लोच करे निज हाथ तो ॥५॥निज गुरुनी सेवा करे ॥ सा ॥जणी. यां अंग अग्यार तो॥ जूऊयां बूजयां उगस्यांसा॥ सफल कीधो अवतार तो ॥६॥ अति माहापण जाणी करी ॥ सा ॥ सोंप्यो गबनो जार तो ॥ बहु परिवारें परवस्या ॥सा ॥ करे अनियत विहार तो॥ ॥ ॥ चतुराश् एहनी खरी॥ सा०॥साध्युं श्रातम काज तो ॥ दडे अणसण श्रादरी ॥सा ॥ मुक्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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