Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(४४) अंगज उपजे । कर्म तणे संयोग॥॥ सीमामा सवि नूपति। चांपे तेहनी सीमामांहो मांहे नित्य लडे।जेम कौरवने नीम ॥ १० ॥ सिक एक नृपने मल्यो। श्राप्युं फल श्रीकार ॥ राणीने खवरावजो। गर्न होशे निरधार ॥१९॥ सिफ गयो निज थानकें । हरख धरी राजान ॥ राणीने खवरावीयुं । पेट रह्यं उधान ॥१॥
॥ ढाल बीजी ॥ हमीरीयानी देशी ॥ ॥ते राणीने नूपति । राखे नयरामांहि॥राजन जी॥ दासी एक पासें उव।। खिजमत करे उचाहि । राजनजी ॥१॥ वात सुणो एक अभिनवी, सुणतां अचरिज थाय ॥ राजनजी रसीया जन जे सांजले। तेहने बहु सुख थाय ॥रा ॥ ५ ॥ यत्न करे राणी तणां । सुतनो जाणी लाल ॥ रा॥ शोक्य घणी तेहने । रखे गलावे गान ॥ रा० ॥३॥राणी पासें ते राजवी। दिनमांहे बे वार राणाखबर लेवाने कारणे । हैडे हरख अपार ॥ रा॥४॥ चोकी मेली चिहुं दिशे । यत्न करे जली नांति ॥ रा० ॥ राजाने राणी तणी। दिन दिन अधिकी कांति ॥रा॥५॥ एक दिन राणी विनवे। पूरण हुश्रा नव मास ॥रा॥ प्राणनाथ तुम पुण्यथी। पूगी मननी श्राश ॥रा॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94