Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(५४) साही काढ्यो बार॥ बिरुद पोतार्नु राख्युं सही। शील थकी ते चूकी नहीं ॥ ३० ॥ कोकि टका लेई बह साज । बीजे दिने श्राव्यो धनराज ॥ दास दासीने श्रापी धन । सहुनुं राजी कीधुं मन ॥ ३५ ॥ तेहनी सहु प्रशंसा करे । कोमिटका तस आगल धरे॥ जेहने जे आप्यानी रीत । ते देतां मुज वाधे प्रीत ॥४॥ दासीने उलंजो दीध । आप्युं धन सवि पाळ लीध॥ लाख टका तस राखी करी। बीजं पाडं दी, फरी ॥४१॥ तेहने पण काढ्यो कर साहि । पोहोर एक राखी उहाहि ॥मोहिनी मंत्र धरावे जेह । कीर्तिराज श्राव्यो वली तेह ॥२॥ विद्या पाट परंपर तणी। नणी कीधी तेहनी रेवणी ॥ पोहोर एक राखी ते0 गय ।पठी पोताने मंदिर जाय ॥४३॥ ए त्रये सवि विलखा थया । राजाने दरबारें गया ॥राजा जाणी सघली वात । तेमाव्यो तव चोथो जात ॥४॥ वत्सराजने कहे राजान । तुम हाथे बहु विज्ञान॥ ते माटें तमने.कहुं अमें । लाखामंदिर जाज्यो तमें ॥ ४५ ॥ वत्स बोल्यो तव करी प्रणाम ।माहारे प्रनु मोहोटुं काम॥मास दिवसनी मेतल दियो । एम कहीने बीडो कर लियो ॥ ४६ ॥
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