Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 53
________________ ( ५२ ) राश || राजा कहे निसुणो मुज वात । नगरमा हि लाखा विख्यात ॥२०॥ रूपवंत धनवंत गुणगेह । गकिामांहि मी वे तेह | सात पोलिने सात प्राकार। हाथी घोमा पायक सार ॥ २१ ॥ घरमांहिं वाडी आराम | आंबा चांपा अति अभिराम ॥ गाम पांचरों ते जोगवे । ति यानंदें दिन जोगवे ॥ २२ ॥ सात भूमि तो आवास | लाखा तिहां रहे मन उल्लास ॥ मंदिर उपर ध्वज हलहले । सो दासी तस पासें रहे ||२३|| शीलतणो गुण तेहने बहु । राजा राणा माने सहु ॥ एक पोहोर राखे पुरुषने । लाख टंका लेइ तेहने ॥ २४ ॥ चार पहोर तस पासें रहे। राज्य पोतानुं ते सुत लदे ॥ ते दिवसें जयराज कुमार । तिहां रहेवानो करे विचार ||२५|| सात पोल समजावी करी । लाख टकानी थेली जरी ॥ लाखा वेश्याने दरबार, वी जो रह्यो तेणि वार ॥ २६ ॥ ढलकती ढाल करें किरपा | मोटां वजडाव्यां निशाण ॥ लाखाने कहे चंपकमाल | एक नर श्राव्यो जाक ऊमाल ॥ २७ ॥ लाखा कहे नरवाहन करी । ते नर लावो मन हित धरी ॥ ततक्षण सामी जश्ने दासि । थायो तेहने लाखा पास ||२८|| लाखा तेहने करी प्रणाम । श्रासन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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