Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 51
________________ (५०) ही तुथा। चारे राणीने जूमुश्रां ॥२॥एम कहीने ते व्यंतर गयो।जाणे अति आनंदज थयो॥ श्रनुकरमें हुश्रा नव मास । राजाने मन पोहोती श्राश ॥ ३ ॥ एक वेला एक लगन जदार।कुल मंमण सत प्रसव्या च्यार ॥ जयराज ने धनराज कुमार । कीर्तिराज चोयो वत्सराज ॥४॥ चारे नाई सरखी जोग । अंगें को न दीसे खोम ॥ शोल वरसना ते जव थया। माता पिता परलोकें गयां ॥५॥ शूरो पूरो ने जयराज । धन संपूरण धनराज ॥ कामण टुमण मोहनराज । ते सवि जाणे जे कीर्तिराज ॥ ६॥ पुरुष तणी जे बहोतेर कला । जाणे शास्त्र तणा आमला ॥ नर नारी सहु करे वखाण । वत्सराज ते चतुर सुजाण ॥ ७ ॥ एकेको गुण तेहने होय । तेहने गंजी न शके कोय ॥एम जाणी नवि सोंप्युं राज। राजा साधे आतम काज ॥जा खांमाने बलें ले\ राज । एम बलथी बोले जयराज ॥ धनराज क्रोधे धडधडे । लेशुं राज अमें धन वडे ॥ ए ॥ कीर्तिराज बोल्यो मन हसी।मोहनी विद्या माहारे वसी॥तेहनें बलें अमें लेगुं राज । सुण हो ना तुं वत्सराज ॥ १० ॥ वत्सराज तव बोले बोल । तमें त्रण बो मूरख निटो. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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