Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४७) चांपा प्रांबाने बहुं थांबली रे । नालेरी नव रंग ॥ ताल तमाल अगर चंदन घणा रे । नागर वेली सुरंग ॥कुमाअखोग बदाम चारोली आरबी रे । सोपारी ने जाख॥ केलि खजुरी नारंगी दामिमी रे। करमदी केरा लाख ॥कुम॥५॥ ते वनमां हि वनचर अति घणा रे। कदेतां नावे पार ॥ नदीयें पाणी नित्य खलहल वहे रे । तरुवर नार अढार ॥कुम०॥६॥ ते वनमांहिं सावज अति घणारे। वाघ सिंह विकराल॥ऊरख सुवरने अजगर चीतरा रे। नाहार रीब शीयाल ॥ कुम० ॥७॥ ते गिरि उपरें एक जगवंतनो रे। मोहोटो ले प्रासाद ॥ मांहि मूरति श्रीआदिनाथनी रे। दीठे मन आल्हाद ॥कुमणाजा तिहां जर फूल लश् जावें करी रे। पूजी श्रीवितराग ॥ पड़ी ते सरोवर पालें आवीने रे । करवो देहित्याग ॥ कु०॥ ए॥ सावज वनना बहुं त्यां श्रावशे रे । सरोवर पीवा नीर ॥ ते वनचर गिरिगह्वर लेश्जशे रे। कोमल कुंवरी शरीर ॥ कुण् ॥ १० ॥ सांढ पलाणी रातें नीसरी रे । पहेरी नर शणगार ॥ राजा राणी कोश जाणे नहीं रे । नवि जाणे परिवार ॥ कु० ॥ ११ ॥ सूर उगमते ते नृप सुंदरी रे।श्रावी तेह वनमांदि।
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