Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 46
________________ (४५) ॥६॥ बेटो के बेटी होशे । करमें लख्युं फल जेह॥ ॥रा॥पण वधामणी सुत तणी । मोकलज्यो धरी नेह ॥ रा० ॥ ७॥ दासीने नृप शीखवे । देखाडजो सुविवेक ॥राण॥ कुंवरी तणी बे बांगली। कुंवर तणी जली एक ॥ रा ॥७॥ राजसनामांहि राजवी। ज बेगे दरबार ॥ रा॥ शुज वेला शुभ मुहूरतें। पुत्री जणी तेणि वार ॥रा० ॥ ए॥ बे ांगली देखामती ।श्रावी नृपनी पास ॥रा॥ साहेब देज्यो वधामणी । पुत्र तणी कहे दास ॥ रा०॥ १० ॥ ॥दोहा ॥ ॥ मनमांहि समजी रह्यो। वजमावे नीशाण ॥दीधी लाख वधामणी। मेहव्या बंधीवान ॥१॥ घर घर हुआं वधामणां।बांधिबंधनमाल ॥सहेर सवि शणगारीयु। दीसे काक जमाल ॥२॥राजा ततण तिहां थकी। श्राव्या राणी पास॥औषध नेषज देकरी। शिथिल करीते दासि ॥३॥ राज्य रखोपा कारणे। बानी राखी वात ॥जोए बाहिर विस्तरे।तो नव श्रावे धात ॥४॥ गम गमना राजकी। मलवा श्राव्या जेह ॥ तेहने जिमाडी करी।पधरावे सुसनेह॥५॥ते राजा खिजमत करे । राणीनी दिन रात ॥ बाहिर राजा नीसरे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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