Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 44
________________ (४३) ॥ ३० ॥ घमी बेघमी अणबोल्यो रही। बोले वाणी अमृत सही ॥ तमने देखिने मुज मन्न । थयुं सदा होजो सुप्रसन्न ॥३१॥ ॥दोहा॥ ॥किस कारण तमें राजवी। दीसो वदन विछाय ॥ ते कारण मुजने कहो ।मुज मन अचरिज थाय ॥ ॥ १॥ जोश्य बे प्रनु माहरे । बेटो रूप रसाल ॥ कुलदीवो कुल मंडणो । राज्य तणो रखवाल ॥२॥ श्राय उपाय कस्या घणा । पण नाव्यो एक पुत्र ॥ तेहनी आशा ने घण। जे राखे घरसूत्र ॥३॥ योगी बोल्यो चमवडो।सुण होतुं राजान॥पुण्ये शुद्ध विद्या लहे । पुण्यें यश संतान ॥४॥ मन हित आणीने करे।जे विद्यानो जाण ॥जेम रिपुमर्दन रायनें। वाध्यु कुल मंडाण॥५॥रिपुमर्दनते किहां हवो।केमहतस काम॥ महेर करी मुजने कहो।तेहनी कथा श्रनिराम ॥६॥ सिफ कहे नृप वागलें। रिपुमर्दननी वात ॥ राजा राणी सांजले । जेहनो यश विख्यात ॥७॥ चंदेरी नगरी धणी । रिपुमर्दन गुणखाण ॥ राणी एकशो तेहनें । जेहनी मधुरी वाण ॥७॥ मंत्र यंत्रा. दिक बहु कस्या। मान्या देवोने नोग ॥ पण नवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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