Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ (३४) कस्यो ।जली वागी सरणा रे ॥रा ॥५॥ काग करहा मजीठिया । गले घूघरनी मालो रे ॥मन मानी नूयें चालता । एक न लागे तालो रे ॥रा ॥६॥ राजकाज सवी साचवे । सिंह ते सिंह समानो रे ॥ वात विचार तेहशुं करे। ते जे बुछिनिधानो रे ॥रा॥ ॥७॥ अखंग प्रयाणे श्रावियां । क्षिप्रा नदीने तीरो रे॥ न्हा धो पावन थयां । जेहनुं निर्मल नीरो रे ॥रा॥॥ वैरीसिंह राजा सुणी । मोकल्या निज परधानो रे ॥ मन हरखें तेमी करी। दीधां श्रादर मानो रे ॥रा०॥ ए॥ कुंवर नले तुमें श्राविया । वूग अमीमय मेहो रे॥ सुरसुंदर राजा तणो। अम उपर बहु नेहो रे ॥ रा० ॥ १० ॥ उतारा सखरा दीया । मनमोहन आवासो रे ॥ गोंख जाली शत बारणां । ते जे अति सुप्रकाशो रे॥ रा०॥ ११ ॥ शुन लगनें शुन मुहूरतें । मोहलें करे प्रवेशो रे॥खबर लीये दिन दिन प्रतें । वैरीसिंह नरेशो रे ॥ रा० ॥१२॥ सत्तर नेद पूजा रची। नेव्या श्रीजगवंतो रे॥ अति हरखे पमिला जिया। सूधा साधु महंतो रे॥रा० ॥ १३ ॥ जीव बोडाव्या अति घणा । ये पंचविधनुं दानो रे ॥रात दिवस गुणिजनतणां । सांजले गीतने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94