Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३३) डी बोब्यां नहीं। नाखे आंसु धार ॥११॥ कुंवरी कर जोमी कहे। द्यो मुजने नरवेश॥ कांहिक मोटे कारणे। हुं चालीश परदेश ॥ १५ ॥ राजा सिंह साहामुं जुवे। ए श्युं बोले बाल ॥ सिंह नणे खामी सुणो। ए न्याय वयण सुरसाल ॥१३॥ पुत्री हुश् राजा तणी । पहेरी पुरुषनो वेश ॥ निज कुंवरीने एम नणे । जो जो देश विदेश ॥१४॥ सिंह सामंत साथें दियो। दीधा धननंमार॥रुडी परें ए राखजो । वली दीधा असवार ॥१५॥ ॥ ढाल तेरमी ॥ घरें श्रावोजी आंबो मोहोरीयो
॥ए देशी ॥ . ॥राजकुंवरी शुज मुहूरतें। पहेरी पुरुषनो वेशो रे॥ तात जननी पाय लागीने । सिछि करी परदेशो रे ॥ रा॥१॥ कुंवरी को जाणे नहीं। एक जाणे सामंतो रे ॥ शूर वीरने साहसी । गिरुबोने गुणवंतो रे ॥रा ॥२॥ शिरबंध सोहे सोना तणो । गले मोतीनी मालो रे ॥ ढालज मेहेली ढलकती। नानडीयो सुकुमालो रे ॥ राण॥३॥ तरगस बहु तीरें नयुं । सोनेरी तरवार रे ॥ लाल कबान हाथें धरी। मोही रह्यां नर नार रे ॥रा ॥ ४ ॥ लीलडे घोडे ते चढ्यो। लीलो वेश बनाइ रे ॥ सामंतने पागल
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