Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३१) सि॥ जो लगन विचार। जोसियडो एणि परे जणे जी॥ बार काम होशे निरधार । शास्त्रे लख्युंजे अम तणे जी ॥४॥ जोसियमानी रुमी निसुणी हो वात ।श्राणी हो हरख हैये घणो जी ॥ जोसियमा जी ॥ उणीए मुज मन्न।जोवाने जननी सुणोजी ॥५॥ माडी मारी पहेस्या सवि शणगार । खयेर अंगार परें जाणजो जी ॥ मामी मोरी फूल ते शूल समान । जवन जाखसी सम मानजो जी ॥६॥ माडी मोरीते दिन सफल गणीश जे दिन तेहने निरख\ जी॥मामी मोरी ते दिन लेखे जाण।जे दिन कलंक उतारशुंजी ॥॥ मामीमोरी विण अवगुण विण वांक। सुमति प्रधाने मुज दाखवीजी॥मामी मोरी एकपखी सुणी वात। रोष राखे रुमो राजवीजी ॥ ॥ माडी मोरी ए फुःखमानी वात। कोश् श्रागले नविनांखीये जी ॥मामी मोरी एफुःख नांजे जेह । ते श्रागडे कुःख दाखियें जीए॥ माडी मोरी जेतां तरगस तीर। मुलतानी मुगल तणेजीमाडीमोरी तेतांपुःख शरीर। सहियें पण कही नहींजीरणामामी मोरी जोतां हो देश परदेशानणदीनो वीरो मुजजो मलेजी॥मामी मोरी कहे सुंदरी घणे नेहामनना मनोरथ सवि फलेजी॥
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