Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 30
________________ ( ए) मात ॥मन॥५॥लामुआ खातां मुजने कडं जी।जो होये क्षिप्रानुं नीर॥तो करे सरस ए लाया जी। ते सुणी हु दिलगीर ॥ मन ॥६॥ तेवारें में मन चिंतव्युं जी।किहां चंपाने उजेण॥मोशालादिक तिहां हशे जी । सांजघु कारण तेण ॥मन ॥॥ लाजें करी सुणो मामली जी। पूड़ी न शकी कां वात ॥ शरीर चिंतानो मिश करी जी। नागेजी तुज जामात ॥ मनः॥॥॥रजनी मध्य गया पली जी। आव्यो नर कोढियो एक ॥ ते देखी हुँ नासी गई जी।सुण जामणी सुविवेक ॥मनाए ॥ आप हत्या करी जो मरूं जी। तो जीव उर्गतें जाय ॥ पण ते कर्म न बुटीयें जी। एम नांखे जिनराय ॥ मन ॥१॥ क्षण सुवे क्षण रुवे बेठमी जी। कण एक धरे रे वैराग ॥ एम करी निज तनु आवटे जी । कांचलीयें आव्यो रे नाग ॥मन॥ ११॥ एम नित्य फूरतां तेपीयें जी। कांश्क वोख्या रेदीह ॥ उजेणी मांहे हो. शेजी। मुज परण्यो वरसिंह मन॥१॥ तो हवे जाजं उजेपीयें जी। जो हुवे तात आदेश॥ निज वरने जोवा जणीजी । पहेरी पुरुषनो वेश ॥मन० ॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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