Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४७) सही। करम प्रतें को चाले नहीं ॥३॥ श्रोसड वे. सड कीधां घणां । श्राराधन कीधां सुर तणां ॥ था. राधी वली कुलदेवता । पण नवि दुवो सुत सेवतां ॥४॥ तेह निमित्त धन खरच्युं बहु । सुतनी वांडा करे ते सहु॥सुत कारण नला उपचार।बहु नित्य करे नारी चरतार॥५॥ एम करतां हुवां वरषज बार । राजा वृक्ष हु तेणि वार ॥ रातें मध्य निता परहरे । पुत्र तणी चिंतामन धरे ॥६॥ मनमांहिं चिंते राजान । को राणीने न हुई संतान ॥ धनें करी बहु नस्या नंडार । अव्य तणो नवि लाने पार ॥७॥ कृपण पणुं हवे नवि आदते धन काढीने वावरु॥राणी सघलीने शणगार। पहेरावू मुक्ताफल हार ॥॥राणी. ने नित्य नवला वेश।वडी राणीने वली विशेष॥दान देखें मनधरी उत्साह।मानव नवनो लेउ लाह ॥ ॥ चतुराइते तेहनी खरी।जस उपराजे धन व्यय करी॥ एम चिंतवतां उग्यो सूर । तव वाग्यां मंगल वर तूर ॥१॥राजायें तेड्यो परधान। दीधुं तस बहु थादरमान॥लाख एक सोनश्या सार। नित काढो म म करजो वार ॥११॥ वामीमांहिं जिननो प्रासाद । उँचो गगनशुं मांडे वाद॥ श्रीकृषनदेवनी मूरति जिहां। पूजा र
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