Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३ए) ॥अथ द्वितीयखंम प्रारंजः ॥
॥दोहा॥ ॥ मंगल कहे कथा तणा। नेद चार सुविचार ॥ कल्पित अकल्पित वली।अपरा पर सुविचार ॥१॥ मंगल कहे तुमें कुवरजी। सांजलजो धरी नेह॥ पुरुष चरित्रतणी कथा । सरस सुणावं तेह ॥२॥ पुरुषचरित्र माहे कह्यो। शील तणो गुण सार ॥ नर नारी सहु सांनलो। लाखानो अधिकार ॥३॥ कोण गामें कोण देशमां । केणी परें पादयुं शीलराज शछि पामी घणी। शीलें पामी लील ॥४॥ गणिकाने कुलें उपनी। पामी यौवन धन ॥ धन्य ए लाखा सुंदरी जेणे पादयुं शील रतन्न ॥५॥दीदा देशमुगतें गापामी केवलनाण॥ शील तणा गुण गावतां । होवे जय कल्याण ॥६॥
॥ ढाल पहेली ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥ काबेरी नामें एक पुरी। धण कण कंचन सुनरें जरी॥श्रजितसेन नामें राजानं । बहु गुणवंतो सुमति प्रधान ॥१॥ राजाने राणी शत चार । रूपें रंजा तणो अवतार ॥ पण अवगुण एक तेहने घणो। पुत्र नही को कुलमंडणो ॥ ५ ॥ तेणे कारण ते बहु फुःख धरे । मेह परेंते आंसु करे ॥ राणी सघली रे
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