Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 28
________________ (२७) कहे माहाराजजीरे हां। तुम पुत्री नहीं दोष ॥॥ कर्मनी परिणति जाणीये रे हां । म करो तुमें बहु शोष ॥ कण् ॥ ६॥ कपट न जाणे नूपति रे हां। जेहनो सरल खन्नाव ॥ कण ॥ हलु करमो जीव जाणिये रे हां। धर्म उपरें बहु नाव ॥ कण॥ ७॥छषनदेवने जाणिय रे हां। वरसी तप उपवास ॥का महिनाथ नारीपणे रे हां। कर्म न मेहेले तास ॥ ॥ क० ॥ ॥ ढंढण नामें मुनीसरु रे हां । मेतारज वली जेद ॥ क॥ एला पुत्र वखाणिय रे हां । कमें नड्या बहु एह ॥ कण्॥ए॥ सीता सुनना औपदी रे हो । इषिदत्ता सुकुमार ॥ क॥ अंजना दमयंती सती रे हां। कलावंती वति नार ॥क०॥१०॥ तेम ए त्रैलोक्यसुंदरी रे हां । श्रावी तेहनी जोम ॥क० ॥ एहने कलंक ए उपन्यु रे हां । दैवें दीधी खोम ॥ कम् ॥ ११॥ सांजली मंत्री तिहांथकी रे हां। निज घर आव्यो तेह ॥ कण ॥राजा पण राणी जणी रे हां । श्राव्यो ते गुणगेह ॥॥१॥ तिहां कणे एहज सांजव्यु रे हां । बेगे थश्ने निराश ॥क॥ पुण्यथकी पुण्यवंतने रे हां । फलशे सघली आश ॥ क० ॥ १३॥ जे हती सहुने वालहीरे हां । हुश् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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