Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(२५) श्रोसड वेसडरे वली मनने उत्साहि ॥जी॥१०॥
॥दोहा॥ ॥कोढी शय्या नपरें। आवी बेगे जाम ॥ततक्षण ते देखी करी। कुंवरी निरखे ताम ॥१॥ हवे कोढी ते सज थ। पहेरी मंगल वेशालडथमतो आवी तिहां। मोहोलें कियो प्रवेश ॥२॥ तिहां श्रावी उनी रही। जिहां वे सखी परिवार ॥ देखी श्रामणमणी। बोलावी तेणि वार ॥३॥रुदन करती बालिका । कहे ते सघली वात ॥ रजनी क्रूरतां गए। परगटियो परनात ॥४॥ रथ बेसी उतावली, श्रावी जिहां निज माय ॥ श्रावी केम तेड्या विना। मुज मन अचरिज थाय ॥५॥ पुःखजर बगती फाटती। रुए ते सरले साद ॥ माता कहे सुणो सुंदरी । एवडो श्यो विखवाद ॥६॥ गद गद सादें ते कहे । रात तणुं वृत्तांत ॥ ते निसुणी सवि वारता । मात हुश् नयनांत ॥ ७॥ बुचकारीने बालिका । बेसारी धरी नेह ॥ श्रासन वासन सहु करे । राणी गुणावली तेह ॥७॥ कोढी कुंवरने कारणे। एहवो करी प्रपंच ॥ परनर करतां पामुवो। नीच नाणे खलखंच ॥ए॥प्रात समे परधान ते।श्राव्यो राजा पास ॥ मुखें निसासा मेलतो।म
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