Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 25
________________ (२४) जीवनजी तुं मुज प्राण आधार । कांश मेहेलीरे मु. जने निरधार । तुं डेरे माहारा हैडानो हार ॥ जीव॥ तुज विण शूनो रे सहु संसार । तुं ले रे माहारो सवि शिणगार॥जी॥॥अदर लखिया परणतां।ते तें साचा कीध ॥ एणे अवसर मुज गेमतां । तें बहु पुःख रे अबलांने दीध ॥जी॥३॥ जल विना जेम माबली। टलवले तेह अपार ॥ ततक्षण दासी परवरी। त्यां आवीरे मंत्रिनी नार ॥ जी० ॥४॥ रसजर रह्यां रे माणसां। ते फुःख सबढुं थाय ॥ रस लेश कूचा करे । ते फुःख रे थोडेरं थाय ॥ जी० ॥५॥ उसड वेसड सवि कस्यां, शीतल बांट्यु नीर ॥ वींजणे वायु वीजतां, तस वान्युं रे चेतन शरीर ॥ जी०॥६॥रुदन करती बालिका । को नवि जाणे नेद ॥ विरह व्यथा तस जबसी। अति घणो रे मनें आणे खेद ॥ ॥जी॥७॥ गीरिवर उदर चढावीने । तें धरीनाखी ध्रसकाय ॥ जोजन सरस पीरसी करी । तें लीधी रे थाली उगय ॥ जी० ॥ ७॥ वात न को पूछि शकी। मुज हुती घणी आश ॥ को न करे ते तें कह्यु, तो तुजने देख रे साबाश ॥ जी० ॥ ए ॥ पालखीयें बेसारीने।श्राणी मंदिरमांहि ॥सासु ससरो त्यां करे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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