Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 24
________________ (२३) ग्यो जाम रे ॥ सु०॥ धनदत्तशाहें नीमीयो रे लाल। उलखीयो सुत ताम रे ॥ सु॥ मं०॥४॥ माताने वली जर मल्यो रे लाल।वरसे थांसुधार रे॥सु॥ हरखें बोली नवि शके रे लाल । माता तेणी वार रे॥ सु० ॥ मं॥ ५॥ हरख्यां ते मनें अति घणुं रे लाल।नारीने जरताररे ॥ सुणा के मन जाणे आपणुं रे लाल । के जाणे किरतार रे॥ सु०॥ मं॥६॥ घोमा बांध्या पायगे रे लाल ।रथ मेल्यो शुन गमरे॥सु धनदत्तशाहने धन सोंपियुं रे लाल । जणवा बेगे ताम रे ॥ सु० ॥ मं ॥७॥ ॥दोहा॥ ॥वात कही निज तातनें। एकांतें धरी प्रेम ॥घोमा धन रथ राखजो। एहथी लेहेझुंखेम॥१॥ मन चिंते नृपनंदिनी। नाव्यो प्राण श्राधार॥शंकीतो नासी गयो। शुं की, किरतार ॥२॥ पेटपीक तणे मिशें । ते बेठी तिणगय । मनमां रे श्रति घjीयांसुमां उन्नराय॥३॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग केदारो॥ गोमी॥ ॥श्रेणिकराय एहवो हुँ रे निग्रंथ ॥ ए देशी ॥ पियु नागे जाण्यो जिस्य । वागीरे लहेर अपार ॥ पेट तणी वेदना मिशें । नाखे रे आंसुमां धार॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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