Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 22
________________ ण कुंमरने । दीधा धन जंडार लमंगल कर मेले नहिं । मागे पंच तोखार॥२॥ लगा ते पण लीधा हरखशुं। दीधां आदर मान ॥लापरणीने उतावली । पानी फरी ते जान ॥ २२ ॥ ल० ॥ मंगल साथे पदमिणी । दासीने परिवार लागातां वातां श्रावीयां । प्रधानने दरबार ॥ २३ ॥ ॥दोहा॥ ॥ पंच तुरंगम जल पंथा।बीजा अर्थ नंमार॥न. जायणीने मारगें । ते मूक्या तेणि वार॥१॥ मंदिर श्राव्यां इकडां। (जव) पोलें कियो प्रवेश ॥ए नर श्हांथी काढियें । तो जाये परदेश ॥२॥ कुंवरी कर मेहले नही।चलचित्त जाणी जाम ॥ देह चिंता मुज उपनी। मंगल बोले ताम ॥३॥ रथथकी ते उतस्यो । साथै कुंवरी जाय ॥ पाणी नरी जारी ग्रही। मनमां चिंता थाय॥४॥क्षण बेसीने उठीयो ।आवे कुंवरी पास॥ ततक्षण श्रावी परवरी। ससरानी सवि दास ॥५॥ कुंवरी मनें धीरज धरी । पूजे प्राणाधार ॥ नूख लागी बे तुम तणे । में जाण्यं निरधार ॥६॥ सिंह केसरा लामुआ ।सुंदरीयें ततकाल ॥ आणी बाप्या प्रेमशुं। अति मीग सुरसाल ॥७॥ वावरतां ते लामुत्रा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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