Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 20
________________ (१५) रधान ॥॥ला मस्तक मुकुट हीरे जड्यो। कंठे ए. कावल हार लगाकरणानूषण फलहले । बाजू । मनोहार ॥२॥ल ॥ हाथे सोवर्ण सांकलां । मणिमय जडित जडाव ॥ ल० ॥ अंगें वाघो विराजतो। केशरमें गरकाव ॥३॥ लगानीली पटोली पहेरणें । पहेरी सवि शणगार ॥लाचरणे नेपुर रणकणे । घूघरना घमकार ॥४॥लण॥ कुमरने वेगें वधावीयो। मोतीडे जरी थाल लगागोरीगावे सोहले । नानडली सुकुमाल ॥५॥ ल० ॥ नर नारी मोही रह्यो । देखा कुंवरनु नूर ॥ला सामु जोशको नाव शके । जाणे ऊग्यो सूर ॥६॥ला साजन सवि जन नोतरी । जमाडी जरपूर ॥ ल० ॥ फोफल पान दिये घणां।वाजे मंगल तूर ॥जालाघोमा हाथीसज करी । जुगतें चलावे जान लारुमी परें धन वावरे। मन हरखे परधान ॥ ॥ल॥ श्रागल कीधी गजघटा । सांबेलां नहीं पार ॥ ल० ॥ पोतें वरघोडे चढयो । जाणे इंजकुमार ॥ ए॥ल ॥ जान जोवाने तिहां मख्यां । नरनारीनां वृंद ॥ल०॥ देखी रूप कुमारनुं । मन धरता आनंद ॥ १० ॥ल॥धन्य ते त्रैलोक्यसुंदरी । धन्य एहनो अवतार ॥ला पूरवने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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