Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) मेरी ताल कंसाल ॥३॥ सघलां वाजां वाजियां। हा जणी जेणी वार ॥ मंगल वाणी उबली। हरख्यो सवि परिवार ॥॥ तंबू डेरा ताणिया,अति उंचा आकाश। लाल कथीपा चंथा। मोदोटा मंगप खास ॥५॥ बांध्या मोती फूमणां । गोखतणी वली श्रोल ॥ सखर समारी नूमिका । चिहुं दिश पोढी पोल ॥६॥ फूल घणां पथरावियां । मांड्या सोवन पाट ॥ वरराजा शहां बेसशे । मलशे माणस थाट ॥॥ चिहुँ दिशि गाये गोरमी । नाचे नवला पात्र ॥ सहु जोवाने त्यां मन्युं । करवा वरनी जात्र ॥ ॥ राजायें पण मांडियुं । विवाहनुं मंमाण ॥मच्या मोहोटा महिपति। माणस राणो राण ॥णा घर घर गुडी उबला । बांधी तोरण माल ॥ सहेर सविशणगारियुं। दीसे काक ऊमाल ॥ १० ॥ आडंबर सबलो करी। मांड्यो मोटो जंग॥(हवे) वर जोवाने कारणे । सहुने मन उबरंग ॥ ११॥ नवरावी निज हाथशुं। पहेरावी शणगार ॥ हवे पधरावी कुंवरने । साथै सहु परिवार ॥ १५ ॥
॥ ढाल सातमी ॥ मधुकरनी देशी ॥ ॥ ललनां रे वात सुणी मन हरखीयो । सुरसुंदर राजान॥ल॥वर जोवाने कारणे । मोकल्या निज प
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