Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 15
________________ (१४) उत्तर दिशि जणी श्रावतांजी। अग्नि तणे अनुसार ॥ चंपापुरी देखी करी जी । हरख्यो हैया मकार ॥सु॥१॥ घोडा तापे राउला जी। तेह तणा रखवाल॥पासें बेठो तापवा जी॥धूजंतोते बाल ॥सु॥१९॥ ॥दोहा॥ ॥हती नलामण जेहने । ते हरख्यो मनमा हि॥ को न देखे तेहने।तेम पाण्यो मंदिरमांहि ॥१॥ अवसर जाणि आणीयो । मंत्रीसरनी दृष्टि॥ उठीने उनो थयो, जलें पधारया श्रेष्ठ ॥२॥नूमि मंदिरमा तेमीने ।श्रति घण आदर कीध ॥ नवरावीने तेहने । मी जोजन दीध ॥३॥ गनो राख्यो तेहने। कोश्न जाणे नेद। पासें जश्ने एम कहे। मनमा म आणीश खेद॥४॥ एक दिन पूजे तातजी। बानो राख्यो केम ॥ कुल नवि जाणो मारुं । मुज उपर केम प्रेम ॥५॥ एक दिन पूजे मंत्रीने । कवण पुरि कोण देश ॥ कोण राजा कोण मंत्रवी । ए नांखो सुविशेष ॥६॥ ॥ ढाल बही॥ नणदलनी देशी ॥ तथा ॥ एणे अव सरें चंपक माला ॥ ए देशी॥ ॥अमीय समाणे वयणमे।बोले सुबुकि प्रधान हो ॥मंगल ॥वात सुणो एक माही। अंग देश चंपापुरी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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