Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१३)
॥ढाल पांचमी॥ गोयम घमिय म करे प्रमाद॥ए देशी॥
॥सरोवर पालें अति घणाजी। फल फूख्या सहकार ॥ सजल सरोवर देखिनेजी। पाम्यो हर्ष अपार ॥॥सुगुणि नर पुण्य करो सुखकार ॥ए श्रांकणी॥ पुण्यें सवि सुख उपजेजी जेम जलधरथी जल सार ॥सु॥२॥ नीर गलीने वावगुं जी। एश्रावक श्राचार॥कष्ट पडे धीरज धरेजी। धन्य तेहनो अवतार ॥सु०॥३॥ बेसीने फल वावस्यांजी। पाकी आंबा साख ॥ करणां दाडिमनी कलीजी। वली कसमसिया प्राख ॥ सु० ॥४॥ उजेणी नगरी किहांजी। किहां ते मालव देश॥ किहां जाऊं कोणने कहं जी। ए दीसे परदेश ॥ सु॥५॥ एम करतां रवि साथम्यो जी। चंदो करे सुप्रकाश ॥वमतरुवर उपर चढ्यो जी। जीववानी बहु आश ॥ सु० ॥ ६॥ ए उपर नही उपजेजी।वाघ सिंहनी रेनीति॥ए उपर रजनीरहुंजी। दैव थयो विपरीत ॥ सु॥॥ वमशाखा उपर चढ्यो जी। चिहुं दिशें निरखे रे तेह ॥ दीगे उत्तर दिशि जणी जी। विश्वानर गुणगेह ॥सु०॥७॥ वमवमतां रजनी गजी। परगटीयो परजात । वड तरुवरथी उतस्यो जी। ते ने शुरू सुजात ॥सुगाण
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