Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ (१२) मले रे । जगमा वाधे वान ॥ सो॥ १॥ फूल लेश पाडगे फिस्यो रे। नगर तणी अंतराल ॥ सो० ॥ तव बोली कुलदेवता रे।एणि परें वयण विशाल सो॥ ॥॥ फूल नलां जस हाथमां रे। जे जे चतुर सुजाण ॥ सो॥ ते राजकन्या परणशे रे। नाडे सहि करी जाण ॥ सो० ॥२३॥ ॥दोहा॥ ॥ एह वयण श्रवणे सुएयुं । पण नव दीतुं कोय ॥ मंगल मनमां चिंतवे । ए केहेनी वाचा होय ॥१॥ अरहुँ परहुँ जोतो थको।मनमां घणो संज्रांत ॥मंदिर जश् निज तातने। कहेशुं एह वृत्तांत ॥॥ जणवा केरे कारणे । वीसरी गश् सा वात॥ बीजे दिवसें देवता। बोले एहीज वात ॥३॥चकित थ चित्त चिं. तवे । मंगल जोई जाम ॥वादल वाली थइ घणुं । घोर घटा घन ताम ॥४॥ वाजली ते जोरें चढी। अति उंची असमान ॥ कुमरने लेश नीसरी।जाणे देव विमान ॥५॥ चंपापुरने परिसरें। ते श्राएयो सुकुमाल ॥ मूकीने ते वही गई। ततदण थक्ष विसराल ॥६॥ नूख तृषा लागी घणुं । मंगलने तेणि वार ॥ जमतां नमतां पेखीयुं । सरोवर वनह मकार ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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