Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 12
________________ (११) हे लावज्या रे। ए कह्यो तुमने उपाय ॥ सो० ॥१२॥ एम कहीने गोत्रज वली रे। हरख्यो सुबुकि प्रधान ॥ सो ॥ विवाहनां कारण नणी रे।मंडप रचे असमान ॥ सो ॥१३॥ घोडाना रखवालने रे । जे डे विश्वावीश ॥सो॥ तेहने तेमीने कहे रे। शुज वयणें मंत्रीश ॥सो० ॥ १४॥ तुम पासें एक श्रावशे रे। बालक रूपनिधान ॥सो॥ते मुज मंदिर लावज्यो रे। एम बोले परधान ॥ सो० ॥ १५ ॥ मंत्रीश्वरनी गोबजा रे । रुडं रचीने विमान॥सो॥ वर जोवा आवी तिहां रे। उलेणी उद्यान ॥सो॥ १६ ॥ जिहां वामी राजातणी रे। फूल घणां महकाय ॥ सो॥ ते परिमल लेवा नणी रे। बेठी रुमे गय ॥ सो ॥१७॥ तेहने को देखे नहीं रे। ते देखे सब लोय ॥सो॥ तिहां आवे नरवर घणारे।जे जोगीसर होय ॥सो॥ ॥१॥ धमी बे घमी बेसी रही रे । दीग जनना बंद ॥ सो० ॥ एहवो को निरख्यो नहीं रे।जे हुए नयनानंद ॥ सो ॥ १५ ॥ मंगल आव्यो मलपतो रे। जाणे देव कुमार ॥सो॥ ततहण हरखी देवता रे । वर पाम्यो निरधार ॥सो॥२०॥ ए कन्याने योग्यता रे । ए वर रूपनिधान ॥ सो॥ जोडा वेमो सरिखो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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