Book Title: Mangalkalash Kumar Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 16
________________ (१५) सुरसुंदर राजान हो।मंगल॥१॥राजछि अति तेहने,सुणतां अचरिज थाय हो।मासुबुद्धि नामें प्रधान ढुं। राजाने सुखदाय हो ।म॥२॥ नृपनी राणी गुणावली । रूपतणो जंडार हो ॥मं॥ बेटी त्रैलोक्यसुंदरी । रंजतणो अवतार हो ॥ मं॥३॥ एक दिन माहरी नारया। में दीठी दिलगीर हो ॥मं॥ः खनुं कारण पूबतां । नयणे करे बहु नीर हो।मंग ॥४॥ गदगद सादेंजी बोलती। तुम घर नहिं संतान हो॥मंणा बीजुं फुःख मुजने नहिं । ए उःख असमान हो ॥मं॥५॥ आराधी कुलदेवता। कीधा त्रण उपवास हो ॥ मं० ॥ प्रगट थर कुलदेवता ॥ बोली वयण विलास हो ॥ मंग॥ ६॥ समरण कीधुंजी माहरु । कोण कारण परधान हो ॥मं॥बोख्यो हुँ कर जोडीने।यो मुज पुत्रनुं दान हो ॥॥॥ वलतुं ते देवी जणे, नही तुज जाग्यमां पुत्र हो ॥ मंग कुल दीपक कुल मंगणो । जे राखे घरसूत्र हो ।मंग ॥७॥ एक लख्यो ने ताहरे । कोढीने कुरूप हो ॥ म॥ रक्तपित्त रोगे जस्यो । जाणे नूत स्वरूप हो ॥ मं० ॥ ए ॥ पोतानी महिला प्रतें । वात कही चित्त लाय हो । मं॥तेह कहे एहवो जलो । वांजणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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