Book Title: Mangalkalash Kumar Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 8
________________ ल ॥ जमवा बेग बेह जणा। बाप बेटो सुरसाल ॥ ॥ ११॥ हवे मंगलकलश कुमार ते। नित्य नित्य वामी मांहि ॥ फूल लावे अति फूटरां । मन धरतो उत्साहि ॥ १२ ॥ एम धरम करम करतां थकां । दिन दिन अधिको वान ॥ आगल अचरज उपजे । ते सुणज्यो सावधान ॥ १३ ॥ आगल अति रलीयामणी । वात घणी रंग रोल ॥ सांजलतां चतुरा मने। उपजे अधिक कबोल ॥ १४ ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥जरतदेत्र तिहां चंपापुरी। धन कण कंचन सुनरेंजरी॥राजा तिहां सुरसुंदर नाम । राज्य करेजाणे श्रीराम ॥१॥ गुणें करीने अति अनिराम । राणी गुणावली जेहनुं नाम ॥ स्वप्नमांहि ते निज उत्संग। कल्पवेलि दीठी मन रंग॥॥देखीने जागी ततकाल। तिहां श्रावी जे ज्यांहि नूपाल। राजाने ते वाहाली घणुं । वयण कहे ते रलीयामणुं ॥३॥ स्वामी सुपन तणो सुविचार । मुजने कहेजो प्राण आधार ॥ राजा कहे सुपन परमाण । पुत्री होशे गुणनी खाण ॥४॥ नव मासे ते पुत्री जणी। आशा पूगी माता तणी॥ दिवस बारमे अति अनिराम । त्रैलोक्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 94