Book Title: Mangalkalash Kumar Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ ॥ दोहा ॥ ॥ सत्यनामा एकण समे। सूती सेज मोकार ॥ नीरजस्यो रूपातणो। कलश दोगे तेणि वार॥१॥अनुकरमें सुत जनमीयो। जिमामी परिवार ॥ नाम दीधुं रतीयामणुं। मंगलकलश कुमार ॥२॥ आठ वरपनो ते हु।तव मूक्यो निशाल ॥अति रूपें रतीयामणो। कोमल नयन विशाल ॥३॥ पुण्यथी बहु सुख उपन्युं । चिंते धनदत्त शाह ॥वली विशेषे आदरे । धरम करम उत्साह ॥४॥ फूल लेवाने कारणे । जाजं वामी मांहिं॥सज थश्ने नीसस्यो, तव वलग्यो बालक बांहि ॥५॥ पिताजी तमें दिन प्रतें। सिधावो शे काज॥ वामी मांहे फूलने। जिनवर पूजा काज ॥६॥ मंगल साथें नीसस्यो।जाणे देव कुमार ॥ बहु बाजरणे अलंकस्यो । अदजुत रूप अपार ॥७॥ माली देखी चिंतवे । बालक रूप अपार ॥कर जोडी कहे शेग्ने । कोण ए राजकुमार ॥७॥ शेठ जणे ए माहरो। बेटो कुल मंडाण ॥ शुन लक्षणे करी जाणियें । होशे चतुर सुजाण ॥ ए॥ माली वाडीमांहेथी। फल थाप्यां श्रीकार ॥ मंगल मनमां हरखीयो। पहेरी चंपक हार ॥१॥ जिनवरनी पूजा रची। मांडी मोहोटो था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 94